भ्रष्टाचार के खिलाफ जन आंदोलन
अब
नहीं दबेगी आवाज
सरकार ने चालाकी से अन्ना हजारे और उनके समर्थकों को साझा बढ़ाना चाहती समिति की मांग पर समझा लिया और इस पूरी प्रक्रिया को जनता की भावनाओं के उबाल को शांत करने के लिए 'सेफ्टी वाल्व' की तरह इस्तेमाल कर लिया। और अब लोकपाल बिल के मुद्दे पर उलटे-सीधे बयानों के द्वारा सभी को बहस में उलझा रही है। अगर सरकार को अनिर्वाचित लोगों की मांगों से परहेज था तो पहले उन्हें आश्वासन क्यों दिए गए? इसी तरह कांग्रेस की सरकार बाबा रामदेव को मनाने और उनकी मांगों को मानने का झांसा देकर उन्हें यह समझाने में सफल रही थी कि वे अपने समर्थकों के एक बड़े वर्ग को अपने से दूर रखें। सरकार हमेशा से प्रयास कर रही है कि सभी आन्दोलनों के नेतृत्व पर अनर्गल आरोप लगाकर जनता का उन पर से विश्वास खत्म कर दिया जाए
सरकार अनगिनत विवादों में फंसी हुई है। विदेशों में जमा काला धन और भ्रष्टाचार के मामले उजागर होने के साथ ही यह विवाद शुरू हुआ है। इसलिए सरकार संकट में है और इसका नेतृत्व अंचभित राष्ट्र और व्याकुल उद्योग जगत को संतुष्ट करने में विफल रहा है। संवेदनशील मूहों से निपटने में सरकार की नाकामी सबसे दुःखद है, साथ ही इसने सरकार के इरादों को लेकर संदेह पैदा कर दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय के
४ जुलाई के
निर्देश के बाद
यह भी स्पष्ट
हो गया है
कि सरकार काले
धन के विरुद्ध कोई
कदम नहीं बढ़ाना
चाहती थी। सर्वोच्च न्यायालय ने
स्पष्ट कर दिया
है कि अगर
सरकार की मंशा
साफ होती तो
यह कार्य असम्भव
नहीं था। सरकार
इसलिए भी कटघरे
में है क्योंकि वह
येन-केन-प्रकारेण विदेशों से
पूंजी भारत में
लाने का प्रयास
कर रही है।
चाहे इसके लिए
ऐसे विदेशी बैंक
को देश में
शाखा खोलने की
अनुमति देनी पड़े
जिसका स्पष्ट उद्देश्य काले
धन को छुपाना
है। हसन अली
के मामले में
भी सरकार सभी
सूचनाओं के आधार
पर आगे बढ़ने
का प्रयास नहीं
कर रही है।
इसलिए सर्वोच्च न्यायालय अब
इस पूरी जांच
प्रक्रिया को अपनी
निगरानी में करने
की घोषणा कर
चुका है। और
उसने कालेधन की
जांच-पड़ताल के
लिए विशेष जांच
दल (एसआईटी) गठित
कर दिया है।
स्पष्ट हे कि
सरकार भ्रष्टाचार के
विषय में देश
को गुमराह कर
रही है।
सरकार की संदिग्ध भूमिका
देश
में कानून को
लागू करने और
किसी भी व्यक्ति या
संगठन की गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने या उसकी जांच करने में सरकार
की जिम्मेदारी को कोई भी व्यक्ति चुनौती नहीं दे रहा है। वह जांच करने और दोषी को सजा
देने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन इसकी मांग करने वालों के बारे में निराधार बयानों के
द्वारा चरित्र हनन अकारण है। इस तरह की कोशिश को तत्काल रोका जाना चाहिए और सरकार को
पारदर्शिता एवं बेहतर प्रशासन पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए
विचारधारा के
मुद्दों पर आपकी
अलग राय है
तो इस पर
खुली बहस का
स्वागत है। एक
लोकतंत्र में कई
विचारों के लिए
जगह होती है,
भले ही आपस
में मतभेद हों।
लेकिन
प्रारंभ से ही
कांग्रेस योजनाबद्ध
तरीके से देश के सभी लोकतांत्रिक संस्थानों को नष्ट करती रही है। वर्तमान की घटनाएं
यह दिखाती हैं कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस की नीयत साफ नहीं है। उसका उद्देश्य
उन सभी लोगों की आवाज दबाने का है जो भी इसके विरुद्ध आवाज उठा रहे हैं। सरकार ने चालाकी
से अन्ना हजारे और उनके समर्थकों को साझा समिति की मांग पर समझा लिया और इस पूरी प्रक्रिया
को जनता की भावनाओं के उबाल को शांत करने के
लिए 'सेफ्टी वाल्व' की तरह इस्तेमाल कर लिया। और अब लोकपाल बिल के मुद्दे पर उलटे-सीधे
बयानों के द्वारा सभी को बहस में उलझा रही है। अगर सरकार को अनिर्वाचित लोगों की मांगों
से परहेज था तो पहले उन्हें आश्वासन क्यों दिए गए?
अलोकतांत्रिक
तौर-तरीके
इसी तरह कांग्रेस की सरकार बाबा रामदेव
को मनाने और उनकी मांगों को मानने का झांसा देकर उन्हें यह समझाने में सफल रही थी कि
वे अपने समर्थकों के एक बड़े वर्ग को अपने से दूर रखें। इसके लिए बन्द कमरे में दबाव
की राजनीति के के द्वारा उनसे आश्वासन का पत्र भी लिखवा लिया। फिर ४ जून की रात्रि
में अमानुषिक एवं अलोकतान्त्रिक तरीके से प्रहार करके उनके आन्दोलन को विफल करने का
प्रयास किया। सरकार हमेशा से प्रयास कर रही है कि सभी पहलू यह है कि भ्रष्ट कारोबारी
वर्ग, रियल एस्टेट डेब्लपर, भ्रष्ट नेता, नौकरशाह और इनकी सार्वजनिक निजी साझेदारी
(पीपीपी) वाली परियोजनाओं एवं गैरसरकारी संगठनों (एनजीओ) के बीच साठगांठ को रोका जाए।
इससे भी कालाधन जमा होता है। यदि यह नहीं किया गया तो आने वाले समय में हमारी अर्थव्यवस्था
में अप्रत्याशित समस्याएं पैदा होंगी। हाल ही में रायटर्स ने भी एक रपट में लिखा है
कि भारत जैसर्सी उभरती अर्थव्यवस्था को राजकोषीय अस्थिरता का सामना करना पड़ेगा और
वैश्विक मंदी के समान संकट से बचना मुश्किल होगा।
कई बड़े संगठन एवं व्यक्ति भ्रष्टाचार
की इस महा-बीमारी को रोकने का भरसक प्रयत्न कर रहे हैं। मैं इनमें से अनेक आन्दोलनों
से करीब से जुड़ा रहा हूं। इन सभी गतिविधियों से जुड़े रहने के कारण मुझे लगता है कि
निम्नलिखित दो प्रावधान हमारे उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रभावी हथियार का
रूप लेंगे।
निजी
एवं गैरसरकारी क्षेत्र में घूसरोधी विधेयक
भ्रष्टाचार एवं कालेधन के कई आयाम हैं
जिसका महत्वपूर्ण पहलू है इसका सृजन। भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र की सभा
(यूएनसीएसी) ने भी हमारी भ्रष्टाचाररोधी प्रणाली में कई खामियां पाई हैं। निजी क्षेत्र
और एनजीओ में घूसखोरी रोकने के लिए हमारे पास कोई कानून नहीं है। ठेके और लाइसेंस आदि
के मूल्यांकन के संबंध में तीसरे पक्ष के जरिए तुष्टिकरण और घूसखोरी, सरकारी नीति पर
चर्चा के जरिए लामबंदी, निजी क्षेत्र द्वारा घूसखोरी पर अंकुश लगाने और विदेशी - नागरिकों
को घूस देने पर रोक लगाने के संबंध ■ में हमारे
कानूनी प्रावधानों में भी खामियां हैं। इन मुद्दों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए
हमने ■ निजी क्षेत्र एवं एनजीओ क्षेत्र में घूसरोधी
विधेयक के रूप में विशेष कानूनी प्रावधान सामने रखे हैं, जिसमें सभी शब्दों, मुद्दों
और प्रावधानों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। हमारी इन्हें लागू करने की पुरजोर
मांग है।
'फ्लोटिंग
वारंट' अवधारणा
कर चोरी के शरणदाता देशों में जमा कालाधन
के अपराधीकरण के संबंध में भी प्रावधानों की कमी है। कर चोरी उन देशों में अपराध नहीं
है इसलिए इस मोर्चे पर सूचना के आदान-प्रदान के लिए हमारे पास अधिकारों की कमी है।
हमने एक ऐसे 'फ्लोटिंग वारंट' की अवधारणा प्रस्तुत की है जैसा कि अमरीका में 'जान डॉ
ला सूट
राष्ट्रव्यापी
बहस का ध्यान भ्रष्टाचार से हटाया जा रहा है
आन्दोलनों के नेतृत्व पर अनर्गल आरोप लगाकर
जनता का उन पर से विश्वास खत्म कर दिया जाए। यह साफ तौर पर इस बात का संकेत है कि राष्ट्रव्यापी
बहस का ध्यान भ्रष्टाचार से हटाया जा रहा है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विश्व के
सभी देशों में हमारे देश के लिए एक बहुत मजबूत और सकारात्मक धारणा बन रही थी। पर इस
सुअवसर का लाभ उठाने का कोई प्रयास नहीं हो रहा है। सरकार और वरिष्ठ नौकरशाहों में
एक सन्नाटा पसरा है और वे हतप्रभ अवस्था में हैं।
पिछले कुछ वर्षों में भ्रष्टाचार के आयाम
बदल गए हैं। वैश्वीकरण और तेजी से बढ़ते आर्थिक विकास ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है।
इस कारण कालाधन कई लोक लुभावन कल्याणकारी योजनाओं में भारी सरकारी खर्च के दुरुपयोग
से पैदा हो रहा है। दूसरा महत्वपूर्ण के नाम से प्रसिद्ध है। उसमें जब तक दोषी की पहचान
न हो जाए तब तक हम अज्ञात व्यक्तिा के खिलाफ एक फ्लोटिंग वारंट जारी कर सकते हैं और
इस वारंट के आधार पर, विदेश में खाता रखने वाले उस व्याक्ति को, जिसे हम नहीं जानते
हैं, अपराधी घोषित किया जा सकता है और उसके बारे में जानकारी मांगी जा सकती है। इस
तरह से यह वारंट बाद में व्यक्ति को पहचान साबित होने पर उसके नाम हो जाता है।
हम पहले हो उद्योग संगठनों, वकीलों, पेशेवरों,
सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ इस संबंध में कई दौर की बातचीत कर चुके हैं. जहां इन प्रावधानों
को समर्थन मिला है। इसे काफी अनुसंधान एवं चर्चा के बाद तैयार किया गया है। मुझे लगता
है कि एक व्यापक जनआन्दोलन के द्वारा ही सरकार इस विषय में कोई ठोस कदम उठाएगी।
राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा