Sunday, 3 May 2015

देश और किसानों के हित में है नया विधेयक

 देश और किसानों के हित में है नया विधेयक

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,
सदस्य, भाजपा भूमि अधिग्रहण समिति ,

सरकार ने किसानों की हित को पूरी तरह संरक्षित करते हुए जटिलताओं को कम करने का काम किया है और इससे सिर्फ विकास की प्रक्रिया तेज होगी, बल्कि विकेंद्रीकरण होगा और ग्रामीण भारत विकास की प्रक्रिया में कदम ताल मिला कर चल सकेंगे

संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में देशहित में समय-समय पर कानून बनाये जाते हैं, उनमें फेरबदल होता है. हमारे देश का विकास तभी संभव है, जब सभी राजनीतिक दल एक सकारात्मक बहस के द्वारा देश में बदलाव और विकास की आवश्यकता को। ध्यान में रखकर उसे आगे बढ़ायें और जो कानून भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को रोकने में सहायक। हो, उन्हें संसद में पास करायें. भूमि का सवाल और इसके अधिग्रहण से जुड़े मसले हमेशा से ही विवाद को जन्म देते रहे हैं. वर्तमान सरकार ने इसी विवाद को सुलइराने और अधिग्रहण की प्रक्रिया को चिना किसानों के हित को नुकसान पहुंचाये या यह भी कह सकते। हैं कि किसानों के हित में में भूमि अधिग्रहण बिल 2015 लेकर आयी. वर्ष 2013 के कानून में अध्यादेश के के जरिये कुछेक फेरबदल कर इसे विकास की प्रक्रिया के अनुकूल बनाने की कोशिश की.

विपक्ष किसानों की समस्याओं और उनके समाधान के प्रति तो सजग नहीं है और ही आगे बढ़ना चाहता है, बल्कि किसानों की समस्याओं पर सिर्फ राजनीति की जा रही है. इस देश में किसानों की स्थिति क्या है, यह समाज के किसी भी तबके से छुपा हुआ नही है. किसान को उसके उत्पादन का पूरा मूल्य नहीं मिलता. न्यूनतम सर्मथन मूल्य की घोषणा सरकार द्वारा की जाती है, उसे प्राप्त करने के लिए भी किसान को स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है. प्राकृतिक आपदा से उसकी फसल नष्ट हो जाती है. उसे समय रहते मुआवजा नहीं मिलता. उसको खाद और बीज की जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाती. उसे पर्याप्त सब्सिडी नहीं मिल पाती, ही उसके द्वारा उत्पादित अनाज को के संरक्षण की व्यवस्था है. उसे फसल बीमा का पूरा लाभ नहीं मिल पाता. नतीजा सामने है. इस देश में ऐसा माहौल बनता जा रहा है कि खेती लाभकारी नहीं है और किसान खेती के बजाय अन्य पेशे की ओर भाग रहा है. इन समस्याओं का समाधान क्या है?

समाधान यही है कि खेती को लाभकारी बनायें. कृषि भूमि पर दवाव कम हो. किसानों की बुनियादी आवश्यकता पूरी हो इस देश की लगभग 66 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है जमीन के छोटे से टुकड़े पर परिवार के पूरे लोगों के भरण-पोषण का दबाव है 65 फीसदी आबादी देश के कुल घरेल घरेलू उत्पादन में मात्र 14 फीसदी का योगदान देती है जब तक यह भागीदारी 14 फीसदी से बढ़ कर 20-25 फीसदी तक नहीं पहुंचेगी, तबर तक नया रास्ता लिए वैकल्पिक रोजगार के संसाधन जुटाने होंगे ग्रामीण क्षेत्र में ही कुटीर उद्योग, लघु उद्योग, ग्राम आधारित उद्योग तैयार करना होगा ताकि लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार मिले और पलायन में कमी हो यह तभी संभव हो पायेगा जब सरकार, विपक्ष और नागरिक संगठन किसानों की समस्या पर समग्रता में विचार करें नहीं निकलेगा. हमें 65 फीसदी आबादी के लिए वैकल्पिक रोजगार के संसाधन जुटाना होंगे ग्रामीण क्षेत्र में ही कुटीर उद्योग लघु उद्योग ग्राम आधारित उद्योग तैयार करना होगा ताकि लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार मिले और पलायन में कमी हो यह तभी संभव हो पाएगा जब सरकार विपक्ष और नागरिक संगठन किसने की समस्या पर समग्रता में विचार करें.

भूमि अधिग्रहण विधेयक के द्वारा सारी समस्याओं का समाधान हो, ऐसा नहीं है यह विधेयक समस्या के एक ही पक्ष का समाधान करता है इसका उद्देश्य क्या है? इसका उद्देश्य है कि देश के आर्थिक ढांचे के विकास के लिए जो भूमि की आवश्यकता है, सरकार उसे अधिगृहीत कर सके सरकार जिसकी भूमि अधिगृहीत करती है, उसे उसका उचित मुआवजा मिले. यही नहीं, उस क्षेत्र में और भी जो काश्तकार हैं, जिनका रोजगार भूमि अधिग्रहण की वजह से छिनेगा, उनके वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था हो. उनके आवास, पुनर्स्थापन, और पुनर्व्यवस्थापन की व्यवस्था हो. सरकार जो भी भूमि अधिगृहीत करे, उसका उद्देश्य जनहित में हो. जब हम इन मापदंडों को सामने रखते हुए इस विधेयक को देखेंगे तो यह स्पष्ट होगा कि 2015 का भूमि अधिग्रहण विधेयक अपने उद्देश्यों में सफल हुआ कि नहीं. किसान मुआवजे की राशि से संतुष्ट है या नहीं. उनके पुनर्स्थापन और पुनर्व्यवस्थापन की व्यवस्था में तो कोई फेरबदल नहीं हुआ. किसानों की इसे लेकर कुछ समस्याएं थी, उन्होंने अपनी बात सरकार के सामने रखी और सरकार ने उन बातों को संशोधित बिल में समाहित भी किया.

कुछेक मामलों में बिल को बेहतर बनाया गया है. जैसे वर्ष 2013 के बिल में यह प्रावधान था कि भूमि अधिग्रहण के मामले में कोई विवाद होता है. उसे सिर्फ न्यायालय के जरिये ही निपटाया जा सकता है. जबकि इसमें यह भी व्यवस्था की गयी है कि इस समस्या के समाधान के लिए जिला स्तर पर ही ट्रिब्यूनल की स्थापना की जायेगी, जिसमें किसानों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे. इस तरह से विवादों का निपटारा जिले में ही संभव होगा इसका एक दूरगामी परिणाम देखने को मिल सकता है इसके साथ ही किसान यदि ट्रिब्यूनल के निपटारे से संतुष्ट नहीं है तो वह चाहे तो कोर्ट में भी जा सकता है जबकि ऐसा प्रचार किया जा रहा है कि किसान को अदालत जाने का अधिकार नहीं है एक और भ्रम फैलाया जा रहा है कि सरकार ने सहमति की आवश्यकता को खत्म कर दिया है वर्ष 2013 के बिल में ऐसे 12 क्षेत्र थे जिसमें खंड 2 2 के अंतर्गत और शेड्यूल 4 में भी भी शामिल किया गया था उसमें 13 ऐसे कानून थे जिसमें सरकार लगभग 70 से 80 फीसदी भूमि अधिगृहीत कर सकती थी इसमें वर्तमान सरकार ने सिर्फ 5 क्षेत्र और जोड़े हैं, जिनमें सरकार जनहित और देश की आवश्यकता के लिए जरूरी मानती है. सुरक्षा, गरीबों को आवास, आधारभूत संरचना का विकास, ग्रामीण विद्युतीकरण, ग्रामीण क्षेत्र में सिंचाई के साधान और इंडस्ट्रियल कॉरीडोर. बाकी चीजों के लिए सहमति की आवश्यकता अब भी बनी हुई है. कहा जा रहा है कि सरकारी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत करने का अधिकार इस नये बिल में खत्म किया गया है, जबकि संशोधित विधेयक में भी भारतीय दंड संहिता की धारा 197 के तहत ये प्रक्रिया सुनिश्चित की गयी है कि वे सरकारी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकते हैं किसी प्रोजेक्ट के पांच वर्ष की अवधि में शुरू होने पर किसानों को भूमि वापसी का अधिकार पहले के बिल में था इस नये विल में भी यह अधिकार है सिर्फ समयावधि में थोड़ा फेरबदल किया गया है कुछ प्रोजेक्ट ऐसे हैं, जिसमें पांच वर्ष से ज्यादा का समय लगता है, उनके अंतर्गत यदि समयावधि के भीतर प्रोजेक्ट नहीं लगता है, तो भूमि किसानों को वापस करना था

किसानों को पांच साल की के बाद बाद भी मुआवजा मिलेगा, यह प्रावधान अब भी है, सिर्फ यह फेरबदल किया गया है कि यदि मामले में अदालत ने स्थगनादेश दिया है तो इस काल के समय में पांच साल और जोड़ दिया जायेगा, इस समय के पूरे होने नये रेट से मुआवजा मिलेगा. इस बिल में भी है कि आदिवासी और वनवासी भूमि पर यह नया कानून लागू नहीं होगा, बल्कि आदिवासी अधिकार कानून ही लागू होगा, पीपीपी और इंडस्ट्रियल कॉरीडोर को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है यह कॉरीडोर राष्ट्रीय राजमार्ग और रेलवे लाईन के दोनों ओर एक किलोमीटर के दायरे की भूमि ली जानी है. एक किलोमीटर के दायरे में कोई बड़ा प्रोजेक्ट नहीं लग सकता जबकि पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप के लिए जिस जमीन का अधिग्रहण सरकार बिना सहमति के करेगी, उस प्रोजेक्ट का मालिकाना हक सरकार के पास होगा यदि सरकार भूमि का हस्तांतरण करना चाहती है तो उसे सहमति की जरूरत होगी.

इन सब बिदुओं पर गौर करेंगे, तो यही तथ्य सामने आता है कि सरकार ने किसानों की हित को पूरी तरह संरक्षित करते हुए जटिलताओं को कम करने का काम किया है और इससे सिर्फ विकास की प्रक्रिया तेज होगी, बल्कि विकेंद्रीकरण होगा और ग्रामीण भारत विकास की प्रक्रिया में कदम ताल मिला कर चल सकेंगे.