Friday, 22 November 2019

सबरीमाला मंदिर विवाद - धर्म या राजनीति


भारतीय संविधान के अनुसार हिन्दु मंदिरो में स्थापित मूर्तियों को जुडिशियरी परसन का दर्जा दिया गया है। प्राण प्रतिष्ठित मंदिरों में मुर्तियो को जमीन आदि का मालिकाना हक भी प्राप्त है। उनके अपने अधिकार एवं नियम है। जो हिन्दु धर्म में आस्था रखते है उन्हे उन नियम कानूनो को मानना चाहिए, अगर हिन्दु धर्म में आस्था नहीं है तो मंदिर में जा कर क्या दर्शाना चाहते है। इस तरह के आंदेलन कर हिन्दु मान्यताऔं, संस्कृति और परम्पराओं को ठेस पहुचाने का उदेश्य ही नजर आता है। दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि धर्म के आधार पर व्यक्तिगत आस्था की स्वतन्त्रता केवल वहीं तक सीमित रहती है जब वह अन्य किसी के अधिकार क्षेत्र में बाधक ना हो। सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के विशेष नियम अन्य किसी के कार्यो में कोई रुकावट नही डालते है। इसलिए सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के विषय को पारसी महिलाओं के विवाहेतर अधिकार और बहावी मुसलमानो में Female Genital mutilation जैसी प्रथाओं से तुलना नहीं की जा सकती। क्योकि उन विषयों में जोर जबरदस्ती का मामला आता है।

भारत में कई ऐसे मंदिर है जहां पुरुषों का प्रवेश नहीं है, गुरुद्वारा में सर पर कपड़ा बांध कर जाया जाता है। सभी धर्मो में कई ऐसी मान्यताए है जिनका हटाना अच्छा नहीं होगा क्योकि उनके पिछे धार्मिक  मान्यताएं है और इनको छेड़ने से सिर्फ अशांति फैलती है। सबरीमाला मंदिर ऐसी ही पौराणिक मान्यताओं को दर्शाता है जिससे छेड़ छाड़ नहीं होना चाहिए। ऐसे कई लोग सामने आए है जिनका धर्म में तो विश्वास नहीं है और फिर भी इस मंदिर में प्रवेश करने की जिद कर रहे है। ठीक है आपका धर्म में विश्वास नहीं है लेकिन दूसरो के विश्वास को ठेस पहुचाने का अधिकार भी आपको नहीं है। हिन्दु धर्म में सभी देवी देवताओं को उनके मूल रुप में ही पूजा जाता है जैसे मथुरा में भगवान कृष्ण की पूजा बाल गोपाल के रुप में होती है क्योकि वे उसी रुप में वहां स्थापित हुए है। ठीक उसी प्रकार भगवान अयप्पा बाल ब्रह्मचारी थे इसीलिए उनकी पूजा पुरुषो द्वारा की जाती है। इन सभी बातों को लोगों को समझना एवं मानना होगा।

कहा जाता है कि मक्का मदिना के बाद सबरीमाला मंदिर विश्व का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ है। तो क्या इसकी परम्पराओं को मानने वाले जनमानस को ठेस पहुचाना सही है। सूप्रीम कोर्ट ने 7 सदस्यो वाली  संविधानिक बैंच को केस रेफर करके ठीक हि किया है। कोर्ट इन सभी विषयो को ध्यान में रखकर ही अपना फैसला देगी ऐसी हम आशा करते है।

गोपाल कृष्ण अग्रवाल
राष्ट्रीय प्रवक्ता भाजपा

Monday, 7 October 2019

BJP Discusses RCEP deal with stakeholders, will submit report to government

 BJP discusses RCEP deal with stakeholders, will submit report to government

By Gopal Krishna Agarwal, 

As India prepares for the final phase of negotiations on the RCEP (Regional Comprehensive Economic Partnership) free-trade agreement, the Bharatiya Janata Party (BJP) on Monday held a consultation with sundry stakeholders on the issue.

Party sources said it was a first-of-its-kind exercise by the BJP. The meeting. With nearly 20 stakeholders was held at the BJP national headquarters in the national capital. From the BJP, its national general secretary (organisation), BL Santhosh, and spokesperson on economic affairs, Gopal Agarwal, attended.

Representatives of the PHD Chamber of Commerce, exporters, activists, and experts attended the meeting. Swadeshi Jagran Manch, the Rashtriya Swayamsevak-affiliated- iated think tank on economic affairs, also attended the meeting. The BJP will now submit its report on the meeting to the government.

The BJP's effort comes in the wake of Commerce and Industry Minister Piyush Goyal set to attend the eighth RCEP ministerial meeting in Bangkok from October 10 to 12. On Friday, Home Minister Amit Shah, External Affairs Minister S Jaishankar, Finance Minister Nirmala Sitharaman, Goyal, and Minister of State for Commerce and Industry Hardeep Singh Puri had met here to discuss RCEP.

Sources said the meeting on Monday had those who voiced concerns about the fallout of the trade deal on Indian domestic industry. particularly on agriculture and dairy industries, while some others said it could benefit Indian industry by making it more competitive and help exports.

In recent days, Swadeshi Jagran Manch's Ashwani Mahajan has cautioned against New Delhi joining RCEP, which could have "disastrous impact" on Indian manufacturing, dairy and agriculture. The Manch has warned joining the trade deal would cause job losses to the tune of 50 million in rural areas, and Prime Minister Narendra Modi's promise of doubling farmers' incomes will remain a pipe dream. "Indian dairy farmers' income will actually be halved. India's $100 billion dairy industry is a prized market for New Zealand and Australia.

 (The writer is National Spokesperson of BJP)

Friday, 16 August 2019

भारत में पारदर्शी और सुव्यवस्थित कृषि पद्धार्थ बाजार की अवश्यकता

 

भारत में पारदर्शी और सुव्यवस्थित कृषि पद्धार्थ बाजार की अवश्यकता


गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

अर्थशास्त्र का मूल सिद्धांत यही कि मूल्य निर्धारण किसी वस्तु की मांग और आपूर्ति पर निर्भर करता है। यदि मांग में लचीलापन है तो यह आपूर्ति के स्तर पर पहुंच है जिससे मूल्यों में स्थिरता 100 कती है। पूरे विश्व में मांग और आपूर्ति का लचीलापन सभी वस्तुओं की कीमतों को स्थिर रखने का संतुलित तंत्र बना रहता है। परन्तु कृषि पदार्थों के आधारभूत रूप में खाद्य पदार्थों के मामले में मांग का लचीलापन बहुत कम रहता है। माग में एक प्रकार से लचीलापन बना रहना मुश्किल होता है। खाद्य पदार्थों के मामले में आपूर्ति की जरा सी भी हेराफेरी से खाद्य पदार्थों में बेहद तेजी सकती है।

एक और बात ध्यान देने लायक है कि आपूर्ति को भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर कृत्रिम रूप से हेराफेरी के चक्कर में डाला जा सकता है जिससे खाद्य पदार्थों की कीमतों में बहुत अंतर पैदा हो सकता है इसलिए परिणाम यह होता है कि बाजार में आपसी मोलतोल में बहुत बड़ा अंतर पैदा हो जाता है। इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण हमें तथाकथित चावल घोटाले में देखने को मिलता है।

भारत विश्व में चावल का एक बहुत बडा उत्पादक और आपूर्तिकर्ता देश है। चावल उत्पाद की कीमतें विश्वभर में सुस्थिर होना शुरू हो गई। भारत सरकार ने भारत में कीमतें बढ़ने से रोकने के लिए चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। स्वाभाविक है कि निर्यात के प्रतिबंध से भारत में चावल की कीमतों में गिरावट आना शुरू हो गई परन्तु अंतर्राष्ट्रीय रूप से प्रमुख स्रोत से चावल की आपूर्ति होने के कारण चावल का नियांत और अधिक निश्चल हो गया। इस कदम के कारण भारत और विश्व बाजार में कृत्रिम रूप से आपूर्ति का अंतर पैदा कर दिया जिससे विश्व के दोनों भागों में कीमतों में बहुत बड़ा अंतर पैदा हो गया। इस कारण विशाल मोलभाव करने का अवसर पैदा हो गया है। जानकार लोगों ने घरेतु बाजार में सस्ते चावलों का संग्रह करना शुरू कर दिया जिसे यूरोपीय तथा अमरीकी बाजार में बहुत बड़ी मांग होने के कारण भारी कीमत प्राप्त करने के लिए निर्यात किया जाना चाहिए था। इन लोगों ने अमरीकन सम्पर्कों को साथ कर हमारी सरकार से राजनयिक चैनल के माध्यम तलाशने शुरू कर दिए ताकि उन्हें अनुग्रह आधार पर इन देशों को निर्यात करने की अनुमति मिल जाए। इसके बाद उन्होंने इस चावल की बिक्री का इस्तेमाल कर विभिन्न यूरोपीय बाजारों को किया जाने लगा जिससे इन कुछ चुनिंदा लोगों को बड़ा भारी लाभ कमाने का मौका मिल गया। इसी प्रकार इसी तंत्र का उपयोग हमारे व्यापक भौगोलिक विभाजन को देखते हुए हमारे घरेलु बाजार में भी कई बार किया जाता है।

भारत में कृषि उत्पादों के लिए असंगठित तथा अनियमित बाजार उपलब्ध है। दूसरे देश के विभिन्न गागों में व्यापक स्तर पर डब्बा व्यापार फैला है जहां ऊपर से लेकर नीचे तक दलालों की भरमार है। दलालों की इस श्रृंखला में बाजार में विभिन्न उत्पादों की खुली स्थिति कुछेक आपरेटरों के पास रहती है। इस संवेदनशील सूचना की जानकारी रहने से वे लोग कई कृषि उत्पादों के बाजार मूल्यों में बड़े स्तर पर हेराफेरी करने की स्थिति में रहते हैं। तीसरे, एक्सवेजों द्वारा चार्ज किए गए विभेदक लेन-देन सम्बंधी प्रभार के कारण भी कुछ बड़े-बड़े आपरेटर बड़ी मात्रा में जमाखोरी कर लेते हैं क्योंकि अन्य बाजारी दलालों की तुलना में इन लोगों की री करने की स्थिति में रहते हैं। लेन-देन करने की लागत कहीं कम रहती है. इसलिए बाजार के ये भागीदार इस तरह का व्यापार करने के लिए 'डब्बा व्यापारी को अधिक पसंद करते हैं। इससे भी कुछ ही लोगों के पास यह खुली स्थिति की जानकारी रहती है। ये लोग बाजार मूल्यों में बडा हेर फेर डाल सकते हैं और दूसरे लोगों को भी अपने नुकसान की स्थिति को बराबर करने पर मजबूर कर सकते हैं। अन्यथा, यह बात कैसे हो सकती है कि मुद्रास्फीति की दर शून्य से नीचे के स्तर पर चली जाए और अर्थव्यवस्था मंदी की स्थिति में हो, फिर भी देश में खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान में पहुंच जाएं।

जहां इतने अधिक दलाल रहते करें भाजपा के प्रकोष्ठ वहां पूरे भौगोलिक क्षेत्र में खाद्य पदार्थों की कीमतें एक दम पारदर्शी रहती है। सभी मूल्य सम्बंधी संवेदनशील सूचनाएं लोगों के सामने रहती है। बाजार की खुली स्थिति की जानकारी भी लोगों को रहती है और पदाधिकारियों को पंजीकृत किया जाता है और बाजार के दलालों का नियमितीकरण होता है।

 सरकारी नीति घोषणाओं से विभिन्न क्षेत्रों में आपूर्ति की कृत्रिम स्थिति पैदा नहीं होनी चाहिए, सम्पूर्ण भोगोलिक क्षेत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से आवाजाही रहनी चाहिए और बिक्रीकर की विसंगतियों को भी दूर किया जाना चाहिए। एक स्वस्थ राष्ट्रव्यापी बाजार के विकास के लिए राज्यों के स्तर पर खाद्य पदार्थों की विभेदात्मक बिक्री करों की दरों का होना भी ठीक नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का प्राधान्य है और लगभग सत्तर प्रतिशत लोग इसी पर निर्भर करते है। किसानों और उपभोक्ताओं के बीच एक पूर्ण पारदर्शी और नियमित श्रृंखला का स्थापित होना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही साथ हमारे समुचित कृषि विकास के लिए सुविकसित परिवहन व्यवस्था और वेयरहाऊसिंग सुविधा भी अत्यंत आवश्यक है। बुनियादी ढांचे में इसके लिए एक बहुत बड़े निवेश की आवश्यकता है।

इन सभी उद्देश्यों की पूर्ति तभी सम्भव है जब हम पूरे बाजार को एक शक्तिशाली एवं पारदर्शी नियामक के अतर्गत रख पाए जिसमें किसी प्रकार का हत्त्तक्षेप हो। नियामक के पास समुचित शक्ति रहनी चाहिए और वह भावी एव स्पाट कोमोडिडीज मार्केट दोनों का विकास करने के लिए स्वतंत्र रूप से काम कर सके। जरूरत इस बात की है कि असंगठित बाजार पर पूर्णतः रोक लगा दी जाए. डब्बा व्यापार पर मारी नियंत्रण बनाया जाए किसानों और उपभोक्ताओं को सेमिनारों तथा लिक्विड मार्केट के लाभों की जानकारी और सूचनाएं मली माति पहुंचाई जाए। अत में कहना चाहूंगा कि किसानों और उपभोक्ताओं का सशक्तिकरण केवल पारदर्शिता एवं सूचनाओं के माध्यम से ही किया जा सकता है।

भारत में कृषि उत्पादों के लिए असंगठित तथा अनियमित बाजार उपलब्ध हैं। दूसरे, देश के विभिन्न भागों में व्यापक स्तर पर 'डब्बा' व्यापार फैला है, जहां ऊपर से लेकर नीचे तक दलालों की भरमार है। दलालों की इस श्रृंखला में बाजार में विभिन्न उत्पादों की खुली स्थिति कुछेक आपरेटरों के पास रहती है। इस संवेदनशील सूचना की जानकारी रहने से ये लोग कई कृषि उत्पादों के बाजार मूल्यों में बड़े स्तर पर हेराफेरी करने की स्थिति में रहते हैं।