Friday, 22 November 2019
सबरीमाला मंदिर विवाद - धर्म या राजनीति
Friday, 16 August 2019
भारत में पारदर्शी और सुव्यवस्थित कृषि पद्धार्थ बाजार की अवश्यकता
भारत में पारदर्शी और सुव्यवस्थित कृषि पद्धार्थ बाजार की अवश्यकता
गोपाल कृष्ण अग्रवाल,
अर्थशास्त्र का मूल
सिद्धांत यही
कि मूल्य
निर्धारण किसी
वस्तु की
मांग और
आपूर्ति पर
निर्भर करता
है। यदि
मांग में
लचीलापन है
तो यह
आपूर्ति के
स्तर पर
पहुंच है
जिससे मूल्यों
में स्थिरता
100 कती
है। पूरे
विश्व में
मांग और
आपूर्ति का
लचीलापन सभी
वस्तुओं की
कीमतों को
स्थिर रखने
का संतुलित
तंत्र बना
रहता है।
परन्तु कृषि
पदार्थों के
आधारभूत रूप
में खाद्य
पदार्थों के
मामले में
मांग का
लचीलापन बहुत
कम रहता
है। माग
में एक
प्रकार से
लचीलापन बना
रहना मुश्किल
होता है।
खाद्य पदार्थों
के मामले
में आपूर्ति
की जरा
सी भी
हेराफेरी से
खाद्य पदार्थों
में बेहद
तेजी आ
सकती है।
एक और बात ध्यान देने लायक है कि आपूर्ति को भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर कृत्रिम रूप से हेराफेरी के चक्कर में डाला जा सकता है जिससे खाद्य पदार्थों की कीमतों में बहुत अंतर पैदा हो सकता है इसलिए परिणाम यह होता है कि बाजार में आपसी मोलतोल में बहुत बड़ा अंतर पैदा हो जाता है। इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण हमें तथाकथित चावल घोटाले में देखने को मिलता है।
भारत विश्व
में चावल
का एक
बहुत बडा
उत्पादक और
आपूर्तिकर्ता देश
है। चावल
उत्पाद की
कीमतें विश्वभर
में सुस्थिर
होना शुरू
हो गई।
भारत सरकार
ने भारत
में कीमतें
बढ़ने से
रोकने के
लिए चावल
के निर्यात
पर प्रतिबंध
लगा दिया।
स्वाभाविक है
कि निर्यात
के प्रतिबंध
से भारत
में चावल
की कीमतों
में गिरावट
आना शुरू
हो गई
परन्तु अंतर्राष्ट्रीय
रूप से
प्रमुख स्रोत
से चावल
की आपूर्ति
न होने
के कारण
चावल का
नियांत और
अधिक निश्चल
हो गया।
इस कदम
के कारण
भारत और
विश्व बाजार
में कृत्रिम
रूप से
आपूर्ति का
अंतर पैदा
कर दिया
जिससे विश्व
के दोनों
भागों में
कीमतों में
बहुत बड़ा
अंतर पैदा
हो गया।
इस कारण
विशाल मोलभाव
करने का
अवसर पैदा
हो गया
है। जानकार
लोगों ने
घरेतु बाजार
में सस्ते चावलों
का संग्रह
करना शुरू
कर दिया
जिसे यूरोपीय
तथा अमरीकी
बाजार में
बहुत बड़ी
मांग होने
के कारण
भारी कीमत
प्राप्त करने
के लिए
निर्यात किया
जाना चाहिए
था। इन
लोगों ने
अमरीकन सम्पर्कों
को साथ
कर हमारी
सरकार से
राजनयिक चैनल
के माध्यम
तलाशने शुरू
कर दिए
ताकि उन्हें
अनुग्रह आधार
पर इन
देशों को
निर्यात करने
की अनुमति
मिल जाए।
इसके बाद
उन्होंने इस
चावल की
बिक्री का
इस्तेमाल कर
विभिन्न यूरोपीय
बाजारों को
किया जाने
लगा जिससे
इन कुछ
चुनिंदा लोगों
को बड़ा
भारी लाभ
कमाने का
मौका मिल गया।
इसी प्रकार
इसी तंत्र
का उपयोग
हमारे व्यापक
भौगोलिक विभाजन
को देखते
हुए हमारे
घरेलु बाजार
में भी
कई बार
किया जाता
है।
भारत में
कृषि उत्पादों
के लिए
असंगठित तथा
अनियमित बाजार
उपलब्ध है।
दूसरे देश
के विभिन्न
गागों में
व्यापक स्तर
पर डब्बा
व्यापार फैला
है जहां
ऊपर से
लेकर नीचे
तक दलालों
की भरमार
है। दलालों
की इस
श्रृंखला में
बाजार में
विभिन्न उत्पादों
की खुली
स्थिति कुछेक
आपरेटरों के
पास रहती
है। इस
संवेदनशील सूचना
की जानकारी
रहने से
वे लोग
कई कृषि
उत्पादों के
बाजार मूल्यों
में बड़े
स्तर पर
हेराफेरी करने
की स्थिति
में रहते
हैं। तीसरे,
एक्सवेजों द्वारा
चार्ज किए
गए विभेदक
लेन-देन
सम्बंधी प्रभार
के कारण
भी कुछ
बड़े-बड़े
आपरेटर बड़ी
मात्रा में
जमाखोरी कर
लेते हैं
क्योंकि अन्य
बाजारी दलालों
की तुलना
में इन
लोगों की
री करने
की स्थिति
में रहते
हैं। लेन-देन
करने की
लागत कहीं
कम रहती
है. इसलिए
बाजार के
ये भागीदार
इस तरह
का व्यापार
करने के
लिए 'डब्बा
व्यापारी को
अधिक पसंद
करते हैं।
इससे भी
कुछ ही
लोगों के
पास यह
खुली स्थिति
की जानकारी
रहती है।
ये लोग
बाजार मूल्यों
में बडा
हेर फेर
डाल सकते
हैं और
दूसरे लोगों
को भी
अपने नुकसान
की स्थिति
को बराबर
करने पर
मजबूर कर
सकते हैं।
अन्यथा, यह
बात कैसे
हो सकती
है कि
मुद्रास्फीति की
दर शून्य
से नीचे
के स्तर
पर चली
जाए और
अर्थव्यवस्था मंदी
की स्थिति
में हो,
फिर भी
देश में
खाद्य पदार्थों
की कीमतें
आसमान में
पहुंच जाएं।
जहां इतने
अधिक दलाल
न रहते
करें भाजपा
के प्रकोष्ठ
स वहां
पूरे भौगोलिक
क्षेत्र में
खाद्य पदार्थों
की कीमतें
एक दम
पारदर्शी रहती
है। सभी
मूल्य सम्बंधी
संवेदनशील सूचनाएं
लोगों के
सामने रहती
है। बाजार
की खुली
स्थिति की
जानकारी भी
लोगों को
रहती है
और पदाधिकारियों
को पंजीकृत
किया जाता
है और
बाजार के
दलालों का
नियमितीकरण होता
है।
सरकारी नीति घोषणाओं से विभिन्न क्षेत्रों में आपूर्ति की कृत्रिम स्थिति पैदा नहीं होनी चाहिए, सम्पूर्ण भोगोलिक क्षेत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से आवाजाही रहनी चाहिए और बिक्रीकर की विसंगतियों को भी दूर किया जाना चाहिए। एक स्वस्थ राष्ट्रव्यापी बाजार के विकास के लिए राज्यों के स्तर पर खाद्य पदार्थों की विभेदात्मक बिक्री करों की दरों का होना भी ठीक नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का प्राधान्य है और लगभग सत्तर प्रतिशत लोग इसी पर निर्भर करते है। किसानों और उपभोक्ताओं के बीच एक पूर्ण पारदर्शी और नियमित श्रृंखला का स्थापित होना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही साथ हमारे समुचित कृषि विकास के लिए सुविकसित परिवहन व्यवस्था और वेयरहाऊसिंग सुविधा भी अत्यंत आवश्यक है। बुनियादी ढांचे में इसके लिए एक बहुत बड़े निवेश की आवश्यकता है।
इन सभी
उद्देश्यों की
पूर्ति तभी
सम्भव है
जब हम
पूरे बाजार
को एक
शक्तिशाली एवं
पारदर्शी नियामक
के अतर्गत
रख पाए
जिसमें किसी
प्रकार का
हत्त्तक्षेप न
हो। नियामक
के पास
समुचित शक्ति
रहनी चाहिए
और वह
भावी एव
स्पाट कोमोडिडीज
मार्केट दोनों
का विकास
करने के
लिए स्वतंत्र
रूप से
काम कर
सके। जरूरत
इस बात
की है
कि असंगठित
बाजार पर
पूर्णतः रोक
लगा दी
जाए. डब्बा
व्यापार पर
मारी नियंत्रण
बनाया जाए
किसानों और
उपभोक्ताओं को
सेमिनारों तथा
लिक्विड मार्केट
के लाभों
की जानकारी
और सूचनाएं
मली माति
पहुंचाई जाए।
अत में
कहना चाहूंगा
कि किसानों
और उपभोक्ताओं
का सशक्तिकरण
केवल पारदर्शिता
एवं सूचनाओं
के माध्यम
से ही
किया जा
सकता है।
भारत में
कृषि उत्पादों
के लिए
असंगठित तथा
अनियमित बाजार
उपलब्ध हैं।
दूसरे, देश
के विभिन्न
भागों में
व्यापक स्तर
पर 'डब्बा'
व्यापार फैला
है, जहां
ऊपर से
लेकर नीचे
तक दलालों
की भरमार
है। दलालों
की इस
श्रृंखला में
बाजार में
विभिन्न उत्पादों
की खुली
स्थिति कुछेक
आपरेटरों के
पास रहती
है। इस
संवेदनशील सूचना
की जानकारी
रहने से
ये लोग
कई कृषि
उत्पादों के
बाजार मूल्यों
में बड़े
स्तर पर
हेराफेरी करने
की स्थिति
में रहते हैं।