वैश्विक आर्थिक विकास का इंजन बन रहा भारत
अभी हाल में मोदी जी की सफल अमेरिका एवं इजिप्ट
की दो देशीय यात्रा सपन्न हुई। जिस तरह का सम्मान प्रधानमंत्री जी को मिला यह
हमारे देशवासियों के लिए बहुत गर्व का विषय है एलन मस्क सुंदर पिचाई ने कहा कि
मोदी जी का डिजिटल इंडिया विजन अपने समय से बहुत आगे का है। रे डेलिओ ने भारत में
निवेश का आश्वासन दिया है।
नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल में भारतीय
अर्थव्यवस्था ने नई ऊँचाइयों को छुआ है। आज भारत देश वैश्विक आर्थिक विकास का इंजन
बन गया है। यह पूरे देश के लिए बेहद ही हर्ष का विषय है कि भारतीय सकल घरेलू
उत्पाद ५ ट्रिलियन अमरीकी डालर की ओर तीव्र गति से बढ़ रहा है। मोदी जी के नेतृत्व
में न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर कर रही है. बल्कि यह लगातार दो वर्षों से
दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन चुकी है और आने वाले वर्ष
में भी ऐसा ही रहने की उम्मीद है। भारतीय अर्थव्यवस्था में आए इस सकारात्मक
परिवर्तन ने देश में भी ऊर्जा का संचार किया है।
अर्थव्यवस्था पर झूठे आंकड़े प्रस्तुत करने
वाले और कयामत की भविष्यवाणी करने वाले अर्थशास्त्री और कुछ राजनेता लगातार जनता
की नजरो में गिर रहे हैं। मोदी सरकार के प्रयत्नों का फल सामने आना ही था।
२०१४ में सत्ता में आने के वक्त हमारी अर्थव्यवस्था द्विन बेलेंस शीट की समस्या का
सामना कर रही थी. बैंक बेहद कमजोर थे और कॉर्पोरेट क्षेत्र अत्यधिक कर्जदार था और
कर्ज चुकाने की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं था। मोदी सरकार की कई सुधारक पहलों के
कारण बैंकिंग और कॉर्पोरेट क्षेत्र मजबूत हुआ है। बैंकिंग क्षेत्र में सुधार जैसे
एनपीए का समाधान, आईबीसी, नई पूंजी निवेश
इसके प्रमुख स्तंभ में हैं। मोदी सरकार के दूर दृष्टिकोण से सक्षम मैक्रोइकॉनॉमिक
प्रबंधन पर लगातार जोर देती रही है। आज मुद्रास्फीति नियंत्रण में है, अर्थव्यवस्था
मंदी से बाहर हैं और राजकोषीय घटा नियंत्रित और अनुमानित पथ पर है। सफल आर्थिक
प्रबंधन का प्रमाण यह है कि भारत आर्थिक मोर्चे पर मजबूती से आगे बढ़ रहा है जबकि
हमारे पड़ोसी देश जैसे श्रीलंका कर्ज चुकाने में असफल हैं. बांग्लादेश आईएमएफ से
मदद मांग रहा है और पाकिस्तान बर्बादी के कगार पर है।
सरकार वित्तीय संस्थानों, विशेषकर
आरबीआई और वित्त मंत्रालय के साथ टीम भावना से काम कर रही है। किसी संस्था की
स्वतंत्रता की परीक्षा सरकार के साथ विरोधात्मक संबंध नहीं है बल्कि एक मजबूत
अर्थव्यवस्था बनाने के लिए मिलकर काम करना है। आरबीआई और अन्य मंत्रालय द्वारा
उठाए गए कदमों और राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज (PLI) एवं
आत्मनिर्भर भारत पैकेज जैसे दूरगामी परिणाम वाले कदमों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को
कोविड के बाद उबरने और महंगाई. मंदी और राजकोषीय घाटे का प्रबंधन करने में मदद की
है। मोदी सरकार के कार्यकाल में आर्थिक और नीतिगत सुधारों के कारण जैसे जीएसटी. ई
मूल्यांकन, डीबीटी, वित्तीय
समावेशन, आईबीसी, पीएलआई. फिनटेक, यूपीआई
डिजिटल इंडिया. ऑडिट ट्रेल की महत्वपूर्ण पहल सामने आई हैं।
मोदी सरकार के प्रयासों का ही यह परिणाम है कि
आज सम्पूर्ण विश्व में भारतीय अर्थव्यवस्था के दर्द है। वर्तमान में भारत में
मुद्रास्फीति की बात करें तो २०१४ में यह दोहरे अंक से अब ५% से कम पर आ गया है।
खुदरा मुद्रास्फीति दर ४. २३% पर एवं खाद्य मुद्रास्फीति दर मात्र २.९१% पर हैं।
यह एक दिन का प्रयास नहीं है। मोदी सरकार पिछले नौ वर्षों से इस पर काम कर रही है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में विपरीत परिस्थितियों के बावजूद आकड़ो के अनुसार भारतीय
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की विकास दर ७.२% है और Q4 सकल
घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर ६.१% YOY है। PMI सूचकांक
की यदि बात की जाए तो मई महीने २०२३ के दौरान भारतीय विनिर्माण क्षेत्र का पीएमआई
५८ ७ पर पहुंच गया। यह अक्टूबर २०२० के बाद विनिर्माण क्षेत्र की सबसे जबरदस्त
तेजी है। यह बताता है कि २०२३ के मई महीने के दौरान भारत में कारखानों का आउटपुट
करीब ढाई साल में सबसे बेहतर रहा है। ऐसे ही PMI सर्विस
सेक्टर के डाटा में बताया गया कि अप्रैल में पीएमआई ६२.० पर पहुंच गया है जो कि
मार्च में ५७.८ था। २०१० के बाद पिछले १३ सालों में अब तक दर्ज की गई ये सबसे अधिक
बढ़ोतरी है। यह लगातार २१वां महीना है. जब सर्विस सेक्टर के डाटा में उछाल देखने
को मिला है। जो निरंतर हो रहे औद्योगिक विकास को दर्शाता है।
आरबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार औसत जीएसटी दर
अब ११.६% के कम स्तर पर होने के वजूद अप्रैल महीने में जीएसटी संग्रह १.८७ लाख
करोड़ रुपये रहा। इसका सीधा अर्थ है कि आर्थिक विकास का हमारा लक्ष्य सार्थक हुआ
है। मोदी सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स में कमी और व्यक्तिगत कर में छूट की है उसके
बावजूद वर्ष २०२२-२३ में प्रत्यक्ष कर में १६६८ लाख करोड़ रुपये का हुआ जो पिछले
वर्ष के अनुपात में १७.६३% अधिक है। इसका ही प्रतिफल है कि आर्थिक मंदी से देश
सुरक्षित रहा है। करों में छूट देने से देशवासियों का भार कम हुआ है और करदाता और
सरकार की जिम्मेदारी से करो के संग्रह में वृद्धि हुई।
इन्फा डेवलपमेंट खर्च में ३३% की भारी-भरकम वृद्धि हुई है। यह कुल जीडीपी
का ३३ प्रतिशत है। सरकार ने लगातार तीसरे साल इस क्षेत्र में पूंजीगत निवेश में
बड़ी बढ़ोतरी की है। इस क्षेत्र को मोदी सरकार कितना अधिक महत्व दे रही है. इसका
प्रमाण यह है कि २०१९-२० में किए गए कुल खर्च के मुकाबले पिछले दिनों माननीय वित्त
मंत्री निर्मला सीतारमण जी ने इसपर लगभग तीन गुना खर्च का वादा किया है। इन्फ्रा
पर यह खर्च सरकार के इस दृष्टिकोण का प्रमाण है कि मोदी सरकार निरंतर मंदी जैसी
चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है और भविष्य में बड़े पैमाने पर इससे रोजगार
सृजन भी होंगे ही।
आंकड़ों पर यदि हम ध्यान दें तो यह पूरी तरह से
मजबूत अर्थव्यवस्था की ओर इशारा कर रहे हैं। वर्ष २१-२२ में एफडीआई ८४.८ बिलियन
अमेरिकी डालर रहा है। सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में एफडीआई के मामले में भारत ने बड़ी
छलांग लगाई है और यहां यह सिर्फ अमेरिका से पीछे है। अमेरिका की सेमीकंडक्टर
इंडस्ट्री में ३३.८ बिलियन डॉलर एफडीआई के मुकाबले भारत को २६.२ बिलियन डॉलर का
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मिला है। वहीं चीन की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में एफडीआई
गिरकर महज ०.५ बिलियन डॉलर रह गया है।
२०२२-२३ के दौरान देश का निर्यात लगभग ६
प्रतिशत बढ़कर रिकॉर्ड ४४७ बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। देश का आयात भी २०२२-२३ में
१६.५ प्रतिशत बढ़कर ७१४ बिलियन अमेरिकी डालर हो गया है। मोदी सरकार ने अपना प्रतिद्वंद्वी स्वयं को ही माना
है। पिछले २ साल में स्टार्टअप्स की संख्या में भारी वृद्धि देश में देखी गई है।
बहुत कम वर्षों में ही भारत, अमेरिका
और चीन के बाद ११५ यूनिकॉर्न के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप
इकोसिस्टम बन गया है। आज विश्व में सर्वाधिक डिजिटल भुगतान की बात करें तो भारत का
एकतरफा डंका इस क्षेत्र में बज रहा है। सरकारी वेबसाइट के अनुसार २०२२ के कुल
डिजिटल लेनदेन का ४६ फीसदी हिस्सा रियल टाइम पेमेंट से हो रहा है। यह भी वैश्विक
स्तर पर सबसे अधिक है। रियल टाइम पेमेंट में यूपीआई की मदद से भारत में
क्रांतिकारी बदलाव हुए हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि इनोवेटिव समाधानों को बड़े
स्तर पर अपनाने से यह बदलाव आया है और देश कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है।
कोविड के कारण जब लॉकडाउन लगा और स्मार्टफोन की
पैठ भारत में बहुत बढ़ी तो देश में डिजिटल भुगतान प्रणालियों में भी उछाल आया।
आरबीआई ने २०२२ में ई-रुपया का पायलट प्रोजेक्ट भी लॉन्च किया था। २०२२ में ८९.५
मिलियन डिजिटल लेनदेन के साथ भारत पांच देशों की सूची में शीर्ष पर है। भारत के
बाद ब्राजील में २९.२ मिलियन, चीन
में १७.६ मिलियन, थाईलैंड
में १६.५ मिलियन और दक्षिण कोरिया में ८ मिलियन डिजिटल लेनदेने हुआ है। अगर बाकी
के चारों देशों के आंकड़ों को मिला भी दिया जाए, तो भी भारत इनसे आगे है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी कह चुके हैं
कि भारत के डिजिटल भुगतान से देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्थ भी बदल रही है।
भारत उन देशो मे है. जहा मोबाइल डाटा सबसे सस्ता है और इसका सकारात्मक प्रभाव भी
अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। पिछले वर्ष १५.४६८ लाख करोड़ रुपये मूल्य का डिजिटल
लेनदेन हो चुका है। पीडब्ल्यूसी इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष
२०२६-२७ तक प्रतिदिन एक अरब यूपीआई लेन-देन होगे और कुल डिजिटल भुगतान में इसका
हिस्सा बढ़कर ९० फीसदी हो जाएगा। वर्तमान में यह सालाना ५० फीसदी की दर से बढ़ रहा
है।
पिछले पांच वर्षों में भारत में ६७ प्रतिशत से
अधिक फिनटेक कंपनियों की स्थापना की गई है। भारत के फिनटेक विभाग मे फंडिंग में
जबरदस्त वृद्धि देखी गई है. २०२१ में निवेश के विभिन्न चरणों में ८ बिलियन अमेरिकी
डॉलर से अधिक के निवेश प्राप्त हुए। इसने भारत में फिनटेक बाजार विकास क्षमता ओ
बेहतर बनाया है। २०२२ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत पहले से ही दुनिया का तीसरा
सबसे बड़ा फिनटेक बाजार है। वाणिज्य मंत्रालय के हवाले से मैं आपको यह बता दूँ कि
भारत की फिनटेक अपनाने की दर ७% है. जबकि वैश्विक औसत ६४% है, जो चीन के बाद
दूसरे स्थान पर है। हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि जिस मोबाइल के बिना हमारे
काम नही हो पाते भारत उन्हीं मोबाइल फोन का दुनिया का दूसरा शीर्ष निर्माता है।
भारत मे अब तक २०० से अधिक मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स सेट अप हो चुकी हैं।
भारत में ३३० मिलियन से ज़्यादा मोबाइल हैडसेट्स बनाए जा चुके हैं। साल २०१४ से
अगर इसकी तुलना की जाए तो उस वक्त देश ने ६० मिलियन स्मार्टफोन बनाए गए थे और
सिर्फ दो मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग प्लांट भारत मे थे। वहीं २०१४ में भारत में बने
मोबाइल फोन की वैल्यू भी मात्र ३ बिलियन डॉलर थी जो कि अब ३० बिलियन डॉलर से भी
अधिक हो चुकी है।
एयर इंडिया का विनिवेश पूरा होने पर सरकार को
विनिवेश में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त हुई हैं जिससे अर्थव्यवस्था की नींव को और
भी मजबूती प्राप्त हुई है। कई तथाकथित विशेषज्ञों ने यह अनुमान लगाया था कि जीडीपी
विकास दर आगे जाकर नीचे आएगी, लेकिन
वे गलत ही साबित हुए हैं क्योंकि आंकड़े स्पष्ट बता रहे हैं कि भारतीय
अर्थव्यवस्था सही दिशा में आगे बढ़ रही है और इसमें काफी गति है।
२०२२-२३ की पहली छमाही में, कृषि, वानिकी और
मत्स्य पालन का उत्पादन पूर्व महामारी के स्तर १०.८ प्रतिशत अधिक था। सरकार के
क्रेडिट प्रोत्साहन पैकेज को कृषि क्षेत्र में वृद्धि का कारण कहा जा सकता है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि से इस क्षेत्र को और बढ़ावा मिला है।
खेती बाड़ी की विकास दर ४.५ फीसदी दर्ज की गई तो वहीं सेवा क्षेत्र ने बेहतरीन
प्रदर्शन किया जिसमें ट्रेड, होटल्स, ट्रांसपोर्ट एंड
कम्युनिकेशन में सबसे ज्यादा २५.७% की वृद्धि दर्ज की गई
देश की तरक्की में ऑटोमोबाइल सेक्टर का भी बड़ा
हाथ है। दरअसल बीते वर्ष ही भारत जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का तीसरा सबसे
बड़ा ऑटोमोबाइल मार्केट बन गया था। भारत में साल २०२२ में कुल ४२.५ लाख नई
गाड़ियां बिकी हैं जबकि जापान में २०२२ के दौरान कुल ४२ लाख यूनिट्स गाड़ियों की
बिक्री हुई। वैश्विक ऑटो बाजार में भारत ने जापान के दबदबे को पीछे छोड़कर दुनिया
का तीसरा सबसे बड़ा ऑटो मार्केट होने का रुतबा भी हासिल किया है, यह हम सबके लिए
गर्व की बात है।
भावास बाजार में भी बदलाव देखे गए हैं, आवास ऋण की मांग
में तेजी आई है, और
इसने असंख्य बैकवर्ड
और फारन का प्रोत्साहित किया है। आवास के अलावा, निर्माण गतिविधि, सामान्य
रूप से वित्त वर्ष २०२३ मे उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है क्योंकि केंद्र सरकार और
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के बढ़ाए गए पूजीगत बजट (केपेक्स) का तेजी से उपयोग
किया जा रहा है। आने वाले समय में देश का उत्पादन पूजीगत व्यय के कारण से कम से कम
चार गुना और बढ़ेगा। राज्य भी अपनी पूंजीगत व्यय योजनाओं के साथ अच्छा प्रदर्शन कर
रहे है। राज्यों के पास पूंजीगत कार्यों के लिए केंद्र की अनुदान सहायता और ५०
वर्षों में चुकाने वाला ब्याज मुक्त ऋण का एक बड़ा बजट है।
भविष्य निर्माण को लेकर बजट में एआई, अक्षय ऊर्जा, ब्लॉक चेन, ग्रीन हाइड्रोजन, कनेक्टिविटी.
सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था (कला, संस्कृति, संगीत, नृत्य, भोजन, त्योहार, वास्तुकला, पर्यटन) इत्यादि
को ध्यान में रखकर बजटीय प्रावधान किया गया है, जिसका दूरगामी परिणाम आ रहा हैं।
जब २०१४ में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की
सरकार आई तो वैश्विक जीडीपी में भारत का हिस्सा २.६ फीसदी पर था। आज इसे देखें तो
ये बढ़कर ३.५ फीसदी पर आ चुका है। ये आंकड़ा देश का हौसला बढ़ाने का काम कर रहा
है। पिछले दिनों निजी खपत में मजबूती भी देखी गई जिसमें उत्पादन गतिविधियों को
बढ़ावा दिया है।
सार्वभौमिक टीकाकरण कवरेज ने संपर्क आधारित
सेवाओं के लिए लोगों को सक्षम किया है। श्री नरेंद्र मोदी की प्रमुख उपलब्धि कोविड
महामारी का प्रबंधन और उसके बाद आर्थिक सुधार पैकेज रही है। महामारी ने प्रमुख
अर्थव्यवस्थाओं के बीच वैश्विक व्यवधान पैदा किया है। दुनिया की सबसे बड़ी
अर्थव्यवस्था अमेरिका अभूतपूर्व बढ़ी हुई मुद्रास्फीति का सामना कर रहा है, जो पिछले ४०
वर्षों के इतिहास में नहीं देखी गई। यूरोप में एक के बाद एक देश मंदी की चपेट में
हैं। चाहे वह इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस आदि हों
और यहां तक कि चीन भी कोविड- १९ के दौरान लॉकडाउन से मिले सदमे से बाहर नहीं आ
पाया है। जबकि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जो सबसे अधिक
एफडीआई आकर्षित कर रहा है। अमेरिका और यूरोप में एक के बाद एक बैंक विफल हो रहे
हैं और दिवालियेपन की ओर बढ़ रहे हैं। वहां केंद्रीय बैंकों के पास स्थिति से
निपटने के लिए कोई रोड मैप नहीं है। उनके पास संकट की निगरानी के लिए संस्थागत
क्षमता की कमी है। जबकि हमारी सरकार और केंद्रीय संस्थाओं ने इन समस्याओं को
बेहतरीन तरीके से निपटाया है। ददर्शी दृष्टि कोण और संकटों से निपटने के लिए
संस्थागत प्रयासों के कारण, सभी
तीन प्रमुख मैक्रो इकोनॉमिक पैरामीटर जैसे मुद्रास्फीति, मंदी और
राजकोषीय घाटा भारत में नियंत्रण में हैं
मॉर्गन स्टैनले की रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले समय
में भारत में आर्थिक विकास, सरकार
की सही नीतियों के कारण और तेजी से बढ़ेगा। गूगल ए-कोनोमी रिपोर्ट भी इंटरनेट
इकॉनमी को देश की जीडीपी में १२-१३% का योगदान करने का लक्ष्य दर्शाती है। जिसके
लिए आधार UPI, डीजी
लॉकर. ONDC, यूनिफार्म
हेल्थ इंटरफ़ेस, इंडिया
स्टेक, NPCI, रुपे
कार्ड, ये सभी
देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान करेंगे। अगले एक दशक में भारत विश्व की तीसरी
सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। भारत की अर्थव्यवस्था में लचीलापन है, क्योंकि देश की
आर्थिक स्थिति काफी सुदृढ़ है। भारत का मकसद है कि अगले पांच वर्षों में दुलाई (Logistic) की लागत
को १४% से घटाकर आठ फीसदी तक लाया जाए। इससे भी विकास में तेजी आने की उम्मीद है।
इससे भारत के २०४७ तक विकसित देश बनने के सपने को निश्चित ही बल मिलेगा। एशियाई
देशों में आर्थिक महाशक्ति वाला पहला देश चीन इस समय आर्थिक मोर्चेपर कठिनाइयों से
जूझ रहा है। ऐसे में भारत की एशियाई देशों में वर्तमान में सबसे अच्छी स्थिति है।
भारत में वैश्विक रुचि इसलिए बढ़ रही है कि आने वाले दशकों में भारत आर्थिक
गतिविधि का प्रमुख केंद्र होगा। भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करेगा।
यह सब इसलिए होगा क्योंकि हमारे पास श्री नरेंद्र मोदी जी के रूप में एक दृढ और
दूरदर्शी नेतृत्व है।
गोपाल
कृष्ण अग्रवाल,
राष्ट्रीय
प्रवक्ता भाजपा