Wednesday, 1 April 2015

 भूमि-अधिग्रहण का सच एवं भ्रम

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,
आर्थिक मामलों पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता

भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर विपक्षी दलों ने देशभर में जो माहौल बनाया है उससे भ्रम अधिक फैला है। जबकि सच्चाई दब कर रह गई है।

भूमि अधिग्रहण संसोधन विधेयक पर विपक्ष के तेवर उक्रामक हैं। उनका दावा है कि वर्तमान संशोधनों से इस विधेयक का स्वरूप किसान विरोधी हो जाएगा। ध्यान होगा कि जब भारतीय जनता पार्टी ने एक अध्यादेश के तहत दिसंबर 2014 में संशोधन लेकर लाई थी तो चारों तरफ इसका विरोध हुआ था। इसी को ध्यान में रखकर यह बताना आवश्यक है कि अध्यादेश लाना कानूनी अवश्यकता थो। 'भूमि अधिषहण विधेयक 2013' में एक क्लॉज था, जिसके तहत 13 पूर्व ऐक्ट ऐसे थे, जिन पर नवा भूमि अधिग्रहण कानून लागू नहीं होता। इसलिए उन 13 कानून के बहत अधिग्रहित की गई भूमि पर मुआवजा पुराने दर से ही किसानों को मिलता, यदि उसको 31 दिसंबर, 2014 तक इस नए कानून के तहत नहीं ल्या जाता। नए कानून कानून के तहत किसानों को ज्यादा मुआवजा मिले, इसके लिए अध्यादेश लाना जरुरी या। अध्यादेश के बाद जन संशोधन विधेयक संसद में लाया गया तो हर जगह इस पर तीखी प्रतिक्रिया हुई। यह कहा गया कि यह संशोधन किसान विरोधी है। जबकि स्थिति ऐसी नहीं है। जो भ्रम फैलाया गया, उसे दूर करने के लिए भाजपा ने छह सदस्यीय भूमि अधिग्रहण समिति का गठन किया। किसान संगठनों के प्रतिनिधि और सीधे किसानों से मुलाकात कर समिति ने एक रिपोर्ट थी।

 इसके बाद सरकार ने संशोधन विधेवक में कुल नौ संशोधन पेल कर लोकसभा में पारित करवाए। समिति ने रिपोर्ट में कुछेक व्यावहारिक समस्याएं गिनाई थीं। दरअसल, देश की 60 प्रतिशत से अधिक जनता खेती पर निर्भर है, जिसकी देश की सकल घरेलू उत्पादन में मात्र 13 प्रतिशत भागीदारी है। पू-स्वामी की औसत भूमि कर पट्टा बहुत छोटा हो गया है, जो व्यापारिक खेती के लिए पर्याप्त नहीं है। इन सब लोगों को वैकल्पिक रोजगार के संसाधन ढूंढ़ने पढ़ेंगे। साथ ही यदि इनको भूमि की कीमत सही नहीं मिली तो परिस्थिति विफ्ट हो जाएगी। अधिग्रहण से कम से कम उसका मूल्य ठीक-ठाक मिल जाता है। साय हो जिस क्षेत्र में आधारभूत ढांचे का निर्माण होता है, उसके आस-पास की भूमि के दाम भी बढ़ जाते हैं। यह समहाना होगा कि भू-अधिग्रहण के बाद ही तो देश के सभी कोने में आधारभूत संरचना को तैयार किया जा सका है।

 

अगर इन संशोधनों को हम बारीकी से देखें तो पता चलेगा कि लोगों की चिंवा भूमि अधिग्रहण कानून में भू-स्वामी की सहमति से जुड़े एक क्लॉज को लेकर थी, जिसे भाजपा ने हटा दिया। भूमि अधिग्रहण बरनून 2013 के बारे में सभी की मान्यता है कि यह किसानों के हित में है। यह जानना आवश्यक है कि उसमें भी सरकारी परियोजनाओं के लिए भू-स्वामी की सहमति का बलॉज नहीं था। केवल दो प्रकार के अधिग्रहणों के लिए किसानों की सहमति की बात थी। पहला अगर सरकार पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहित करती है तो 70 प्रतिशव भू-स्व्वामियों से सहमति लेने की आवश्यकता थी। अगर सरकार किसी प्राइवेट परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहित करती है वो 80 प्रतिशत भू-स्यामियों की सहमति की जरूरत थी। इसके अतिरिक्त यदि सरकार अपने लिए लगभग नौ क्षेत्र की परियोजनाओं में किसी भूमि पर अधिग्रहण करती तो उसमें सहमति वाले क्लॉज नहीं थे। यह अधिधाहण सरकारी परियोजना के लिए था, जिसमें किखनों की सहमति की आवश्यकता नहीं थी। पुराने कानून के नौ क्षेत्र जिसमें सहमति जरूरी नहीं थी, उसमें अब सरकार ने केवल पांच आवश्यक क्षेत्रों को रखा है।

 

बगैर सहमति के भूमि अधिद्याहित किए जाने वाले जो पांच क्षेत्रों को जोड़ा है, उसमे आधारभूत संरचना, औद्योगिक क्षेत्र के विकास जैसे को शामिल किया गया है। इसमें सरकार ने कहा है कि औद्योगिक क्षेत्र के दोनों तरफ एक-एक किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र अधिग्रहित नहीं किया जाएगा। 'पीपीपी' परियोजना में भूमि का स्वामित्व सरकार के पास ही रहेगा, उसमें भी सामाजिक ढांचागत परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहित करने का अधिकार सरकार ने अपने पास से हटा लिया है। निजी अस्पताल और निजी शिक्षण संस्थाओं के लिए भूमि अधिग्रहित नहीं की जाएगी। वे सुझाव हमें मिले थे, जिसे सरकार ने माना भी है। मुआवजे की रकम मिलने में वर्षों लग जाते हैं, ऐसी समस्या भी सामने आई। इससे निपटने के लिए जिला स्तर पर समाधान केन्द्र स्थापित करने की यात को सरकार ने माना। इस तरह ज्यादातर सुझावों को सरकार ने मान लिया है। जब इस बिल को लोकसभा में आया गया था, तब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के कुछ घटक दान भी इसके पक्ष में नहीं थे, लेकिन उनके सुदयवों को शामिल किया गया। मुझे लगता है कि राज्यसभा में आने तक राजग के घटक इसके पक्ष में तो आ ही जाएंगे। अन्य राजनीतिक पार्टियों को भी सरकार के साथ आना चाहिए। ऐसे गंभीर मसले पर राजनीति साधना ठीक नहीं है, क्योंकि इससे देश का विकास बाधित होगा। 

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