Thursday, 17 February 2022

हरित अर्थवयवस्था के लिए प्रेरक बनेगी राष्ट्रीय हाइड्रोजन पॉलिसी

विभिन्न नीतियां लागू करने के साथ ही रोडमैप बनाए जा रहे हैं। जब उद्देश्य स्पष्ट हैं, स्वच्छ और हरित ऊर्जा के लिए उच्चतम स्तर की प्रतिबद्धता है, ऐसे में भारत निश्चित रूप से अपने लक्ष्यों को हासिल करने में सक्षम होगा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के लिए वैश्विक अगुवाई से निपटने के करने का भार अपने ऊपर ले लिया है और वे अक्षय ऊर्जा के लिए प्रतिबद्ध है। जाहिर है कि अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए शीर्ष नेतृत्व स्तर पर इच्छाशक्ति है। इसी प्रतिबद्धता के कारण, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी-21) के बाद, भारत ने उत्सर्जन मानदंडों को पूरा करने के लिए कुछ साहसिक कदम उठाए हैं। नतीजतन, पेरिस जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन के बाद, भारत के उलार्जन में वर्ष 2005 के स्तर पर 28 फीसदी की कमी आई है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2030 तक उत्सर्जन को 30 फीसदी तक कम करने के लक्ष्य को हासिल करने के लगभग निकट है। भारत ने सौर ऊर्जा को वैश्विक रूप से अपनाने में तेजी लाने के लिए फ्रांस के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन बनाया है, जिसका प्रधान कार्यालय भारत में है। भारत की एक अन्य पहल में 2050 तक 80-85 प्रतिशत तक बिजली की मांग को नवीकरणीय स्रोतों के माध्यम से पूरा करना है। भारत, संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के लिए भी प्रतिबद्ध है और उसके सभी 17 लक्ष्य सरकार की नौतियों में शामिल हैं। भारत ने हाल ही गैर-जीवाश्म स्रोतों से 40 फीसदी बिजली उत्पादन क्षमता का लक्ष्य हासिल किया है।

बिजली उत्पादन में हिस्सेदारी

भारत में बिजली उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी 44 फीसदी से अधिक है जबकि तेल का योगदान लगभग 25 फीसदी है। बायोएनर्जी और सीएनजी हिस्सा क्रमशः 21 और 5.8 प्रतिशत हैं, जबकि परमाणु और सौर ऊर्जा का हिस्सा काफी कम है। कोयला जलवायु के लिए खतरे की वजह है, जबकि तेल की कीमतें आसमान छू रही है। जैसे-जैसे भारत औद्योगिकीकरण की ओर बढ़ रहा है, लगता है प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत, वर्तमान में जो 30 फीसदी है, बढ़कर 2040 में लगभग दोगुनी हो जाएगी। इसका श्रेय इस तथ्य में निहित है कि भारत अब विश्वस्तर पर विनिर्माण उद्योग स्थापित करने के लिए दूसरा सबसे आकर्षक देश बन गया है।

हालांकि बड़ी पनबिजली परियोजनाओं को लेकर कुछ चिंताएं भी हैं, लेकिन भारत में इसकी काफी संभावनाए हैं। छोटी जलविद्युत परियोजनाएं महत्त्वपूर्ण पहल हो सकती है. हालाकि ये प्रोजेक्ट्स वर्तमान में लगभग न के बराबर है। पर ठीक इसी वक्त भारत अप दुनिया में सौर ऊर्जा क्षमता में पांचवां और पवन ऊर्जा क्षमता में चौथा सबसे बड़ा देश है। इस ऊर्जा का इस्तेमाल हरित हाइड्रोजन (शुन्य कार्बन उत्सर्जन ईंधन) के उत्पादन के लिए किया जा सकता है जो पूरे ऊर्जा क्षेत्र में बड़ा गेमचेंजर साबित होगा।

हाइड्रोजन ऊर्जा का बड़ा स्रोत है। हालाकि वर्तमान में कई चुनौतियां हैं और भारत इस क्षेत्र में बड़ा योगदानकर्ता भी नहीं है। पर जिस तरह से निजी निवेश और सरकार आगे बढ़ रही है, उससे देश को बड़ा लाभ ए मिल सकता है। ऊर्जा सुरक्षा, डोकावर्बोनाइजेशन और की कम कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को पूरा करने में श्रम हाइड्रोजन मदद करेगा। एक अनुमान के अनुसार, भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए इस पर 500 बिलियन डॉलर से अधिक निवेश की जरूरत होगी। कई निजी कंपनियों और एनटीपीसी जैसी कुछ सरकारी कंपनियों ने भी बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2030 तक 316 बिलियन डॉलर के निवेश प्रतिबद्धता की उम्मीद है। सरकार की नीतियां सहायक है और भारत इस क्षेत्र का बड़ा खिलाड़ी चन सकता है।

अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र

मौजूदा वक्त में, हाइड्रोजन टेक्नोलॉजी के लिए लागत बड़ी चुनौती है। चीन से सौर ऊर्जा क्षेत्र मामले में भी बड़ी प्रतिस्पर्धा है। एक बड़ी चुनौती जो निजी क्षेत्र की तरफ से मिल सकती है, वह हालाकि सरकार व्याज लागत को लगातार कम कर ने रही है, पर चुनौती से निपटने के लिए ऊर्जा के अधिक स्रोतों और धन की जरूरत है। अगर नई पहल और अनुसंधान के साथ नई एवं बेहतर तकनीक अमल में ई जाए तो उत्पादन चुनौतियों लाई सकता है। का सामना किया जा सकता है।

चुनौतियों को समझने और उसके समाधान पर भी सरकार काम कर रही है। परिवहन और काव्ये माल की उपलब्धता जैसी चिंताओं के मद्देनजर सरकार नाई औद्योगिक और संचालन क्रियान्वयन नीतियों पर काम कर रही है। सरकार का मैन्युफैक्चरिंग बेस बनाने पर भी फोकस है। आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना के तहत सरकार ने बिजली क्षेत्र के उयन ग्रिड में सुधार, ट्रांसमिशन को बेहतर बनाने और डिस्कॉम में वृद्धि आदि के लिए 90,000 करोड़ रुपए की भी प्रतिबद्धता जताई है। निजी कंपनियां और सरकार दोनों इस तथ्य से सहमत है कि हाइड्रोजन और सिलिकॉन ऐसे नए क्षेत्र है जो देश के लिए बहुत अधिक सम्पदा उत्पत्र कर सकते हैं। सरकार ने राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की स्थापना के लिए लगभग 1500 करोड़ रुपए की प्रतिबद्धता जताई है। विभित्र नीतियां लागू करने के साथ ही रोडमैप बनाए जा रहे हैं। अंततः जब उद्देश्य स्पष्ट है, स्वच्छ और हरित ऊर्जा के लिए उच्चतम स्तर की प्रतिबद्धता है, ऐसे में भारत निखित रूप से अपने लक्ष्यों को हासिल करने में सक्षम होगा।

सामग्री व्यापार को बढ़ावा देने के लिए रसद समर्थन मामले में सरकार न्नई नेशनल लॉजिस्टिक पॉलिसी लेकर आ रही है। यह एकीकृत रसद केंद्रों, हाइड्रोजन भंडारण, परिवहन, भंडारण और बंदरगाहों से जुड़े मुद्दों का समाधान करेगी। इसी तरह, कॉरपोरेट क्षेत्र की बैलेंसशीट में पर्यावरणीय लागत के समावेशन से परियोजना मूल्यांकन में उचित मदद मिलेगी। बैलेंसशीट में पर्यावरण के इन नवाचारों को अभिलेखबद्ध करना महत्त्वपूर्ण मुद्दा है जहां अधिक शोध और उत्थान हो सकता है। इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आइसीए‌आइ) के फाइनेंस अकाउंटिंग प्रोफेशनल्स यह नवाचार कर सकते हैं। हाइड्रोजन इकोनॉमी के बढ़ावे के लिए कम लागत वाली फडिंग के ज्यादा स्रोत होने चाहिए और सरकार इस दिशा में कदम उठा रही है।

गोपाल कृष्ण अग्रवाल, (लेखक बीजेपी के आर्थिक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय प्रवक्ता है।)


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