क्यों बेसार है भ्रष्टाचार विरोधी कानून
हमारे यहां भ्रष्टाचार का कोई भी मामला उजागर होने के बाद लंबी
कानूनी लड़ाई में फंस जाता है, जिसे पूरा होने में बरसों लग जाते हैं। सबूतों के अभाव
में प्रायः आरोपी बच जाता है और लूट के धन के साथ आनंद से जीवन बिताता है। हमारी भ्रष्टाचार
निरोधक व्यवस्था नख-दंतविहीन है।
देश में हुए विभिन्न घोटालोके खुलासे और उन पर तत्परता से कार्रवाई करने में सरकार की विफलता ने हमारी अर्थव्यवस्था को नाजुक स्थिति को सामने ला दिया है। भ्रष्टाचार हमारे राष्ट्रीय ताने-बाने को जड़ों से कुतर रहा है। वे दिन गुजरे ज्यादा समय नहीं हुआ है जब हमारे देशवासी विश्वास से लबरेज थे और पूरी दुनिया के साथ हम उभरते भारत की बात कर रहे थे। सबकुछ ठीक था और हम गुंजायमान लोकतंत्र, युवा ताकत सेवा क्षेत्र में तेजी, ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के विकास, विशाल घरेलू बाजार और हम दुनिया भर में कुछ करके दिखा सकते हैं की बात करते थे। हममें विश्व से मुकाबला करने का जोश था।
हम 2020 तक
विश्व की आर्थिक शक्ति बनने वाले थे। फिर क्या ऐसा हो गया कि हमारी धारणा कमजोर हो
गई। व्यावसायियों का विश्वास डगमगा गया। दुनिया भारत में भ्रष्टाचार के उच्च स्तर को
लेकर दुख प्रकट कर रही है। भ्रष्टाचार विश्वभर में मौजूद है, लेकिन विश्व में कहीं
भी एक बार भ्रष्ट व्यक्ति पकड़ा जाता है तो उसे बुरी तरह दंडित किया जाता है, उसकी
संपत्ति जब्त कर ली जाती है। लेकिन भारत में वह इस्तीफा मात्र देता है और मामला लबी
कानूनी लड़ाई में फंस जाता है जिसे पूरा होने में बरसों लग जाते हैं और अंतत सबूत की
कमी से वह दोषी साबित नहीं हो पाता है और इस तरह वह लूट के धन के साथ आनंद से जीवन
बिताता है। हमारी भ्रष्टाचार रोधी व्यवस्था दंतविहीन है।
केंद्रीय
स्तर पर देश में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग, सतर्कता विभाग
और केंद्रीय जांच ब्यूरो हैं। सीबीआई एक पुलिस स्टेशन की तरह कार्य करती है। वह जांच
कर सकती है। एफआईआर दर्ज कर सकती है। वह केंद्र सरकार के किसी भी विभाग से संबंधित
केस की जांच कर सकती है या उन केसों की जो कोर्ट या राज्य सरकार द्वारा निर्देशित होते
हैं। चूंकि सीबीआई केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण में होती है। इसलिए इसकी विश्वसनीयता
प्रभावित हुई है।
राज्यों
में तो स्थिति और भी खराब है। राज्यों के सभी सतर्कता विभाग या एजेंसी और भ्रष्टाचार
निरोधी एजेंसियां सीधे तौर पर राज्य सरकार के अधीन हैं, इसलिए वे अपने राजनीतिक आकाओं
के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की निष्पक्ष जांच में प्रभावहीन रहते हैं। कुछ राज्यों
में लोकायुक्त जैसी संस्था भी है। परंतु ये लोकायुक्त अपने आप कोई भी जांच नहीं शुरू
कर सकते। एक निश्चित स्तर के ऊपर के अधिकारियों के खिलाफ जांच के लिए इन्हें राज्य
सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है।
आज
समाज में भ्रष्टाचार के खिलाफ व्यापक गुस्सा है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रवाह के क्षेत्र
में भी स्थिति बुरी है। द हिंदू में जीएफआई की रिपोर्ट के मुताबिक, हर 24 घंटे औसतन
करीब 240 करोड़ रुपए अवैध धन भारत से बाहर जा रहा है। हमारे पास कोई उचित कानून या
ऐसी अंतरराष्ट्रीय संधि नहीं है जिससे विदेशों में जमा अवैध धन वापस लाया जा सके या
विदेशों में धन जमा करने पर अंकुश लगाया जा सके। सरकार में न केवल इच्छाशक्ति की कमी
है बल्कि वह छलावा कर रही है और दोषी लोगों को बचा रही है। । यह मात्र कर चोरी का मुद्दा
नहीं है जैसा कि सरकार पेश करने की कोशिश कर रही है बल्कि एक आपराधिक करतूत है। सरकार
को सही
मंशा होती और वह इस पैसे को वापस लाना एवं इसे बढ़ावा देने से रोकना चाहती तो ने वह
इस दिशा में कदम उठा सकती थी। अमेरिका और कई अन्य देशों ने सिद्ध कर दिया । है कि घूसखोरी
की समस्या से सफलतापूर्वक । निपटा जा सकता है। अमेरिकी अदालतों ने ऐसे कानूनों का इस्तेमाल
किया है और बड़ी कंपनियों को घूसखोरी का दोषी पाया है।
जबरदस्त
जन आक्रोश के चलते ब्रिटेन को भी 2010 में एक कानून बनाना पड़ा जिसे दुनिया में सबसे
सख्त रिश्वत-रोधी कानून कहा जाता है।
विदेशी बैंकों व देशों में जमा भारतीय धन को वापस लाना एक थकाउ प्रक्रिया है जिसके लिए एक मजबूत राजनीतिक इच्छा, अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने के कड़े प्रयासों की जरूरत है। इसके अलावा, मुद्दा केवल विदेशी बैंकों में पहले से जमा भारतीय धन को वापस लाने का नहीं है बल्कि भारत से आगे यह धन और न निकले, इसकी व्यवस्था करने का है। चूंकि अंतरराष्ट्रीय परस्पर कानूनी सहयोग सबसे अहम है, भारत को भ्रष्टाचार पर यूएन संधि, अंतरराष्ट्रीय कारोबारी लेन-देन में विदेशी सरकारी अधिकारियों की घूसखोरी से लड़ने पर ओईसीडी संधि जैसी विभिन्न संधियों में सुधार कर भ्रष्टाचार के खिलाफ वैश्विक आंदोलन में शामिल होना पड़ेगा। दूसरा, हमें इन संधियों की जरूरतों के मुताबिक, अपने संबंधित कानूनों में संशोधन करना पड़ेगा।
भारत को निजी क्षेत्र में घूसखोरी पर अब भी कानून बनाना बाकी है जिसमें कारोबार या पेशे को आगे बढ़ाने के लिए जानबूझकर घूस देने या लेने को एक आपराधिक गतिविधि मानो जाए। ऐसा देखा गया है कि भारत में कारोबारी इकाइयों ने कर चुराने के लिए कर-चोरी की पनाहगाह बने देशों का इस्तेमाल किया है। अमेरिका ने अपने नागरिकों द्वारा इस तरह के दुरुपयोग से सख्ती से निपटने के लिए हाल ही में एक कानून पारित किया है। एनजीओ एवं निजी क्षेत्र में घूसखोरी रोधक
कानून भ्रष्टाचार एवं कालेधन के कई आयाम हैं, जिसमें महत्वपूर्ण पहलू है इसका सृजन। भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र की समिति ने भी हमारी भ्रष्टाचार रोधी प्रणाली में कई खामियां पाई हैं। निजी क्षेत्र और एनजीओ में घूसखोरी रोकने के लिए हमारे पास कोई कानून नहीं है। ठेके और लाइसेंस आदि के मूल्यांकन के संबंध में तीसरे पक्ष के जरिए तुष्टिकरण और घूसखोरी, सरकारी नीतियों पर चर्चा के जरिए लामबंदी एवं निजी क्षेत्र द्वारा घूसखोरी पर अंकुश लगाने के संबंध में हमारे प्रावधानों में भी खामियां हैं। हमारे कानूनी
फ्लोटिंग वारंट अवधारणा कर-चोरी की पनाहगाह बने देशों में जमा धन के अपराधीकरण के संबंध में भी प्रावधानों की कमी है। कर चोरी टैक्स हैवेन देशों में अपराध नहीं है। इसलिए इस मोचें पर सूचना के आदान-प्रदान के लिए हमारे पास अधिकारों की कमी है। जब दोषी की पहचान नहीं हो पाती तो हम अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ एक फ्लोटिंग वारंट जारी कर सकते हैं और इस वारंट के आधार पर विदेशों में खाता रखने वाले उस व्यक्ति को जिसे हम नहीं जानते हैं. अपराधी घोषित किया जा सकता है और उसके बारे में जानकारी मांगी जा सकती है। इस तरह से यह वारंट बाद में व्यक्ति की पहचान स्थापित होने पर उसके नाम लागू हो जाता है।
भ्रष्टाचार के कई एवं कालेधन आयाम हैं। निजी क्षेत्र और एनजीओ में
घूसखोरी रोकने के लिए हमारे पास कोई कानून नहीं है।
भाजपा प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल
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