किसी भी देश की नितियां निवेशकों को निवेश के लिए प्रेरित करती
है। भारत के संदर्भ में भी यह बात उतनी ही लागू होती है जितना अन्य देशों के लिए।
इन्हीं नितियों में शामिल है बजट घाटे पर किया गया वादा। प्रधान मंत्री नरेन्द्र
मोदी और भाजपा सरकार ने 4.1% बजट घाटा संख्या रखा। साथ ही यह भी प्रतिबद्धता दिखाई
है कि इसे घाटाकर 3% करने की पुरी
कोशिश की जाएगी। देखा जाए तो सरकार सही दिशा की तरफ कदम रख रही है। सरकार देश में
होने वाले व्यय को गंभीरता से देख रही है ताकि जहां अधिक आय व्यय हो रहा है वहां कटौती
कर महत्वपरूर्ण जगहो पर निवेश किया जा सके।
सरकार द्वारा ऐसी कई आर्थिक सुधारों के लिए उठाए गए
कदमों को लेकर उत्साहित वर्ल्ड बैंक का कहना है कि भारत 2016-17 में चीन की विकास दर के समान
विकास दर हासिल कर लेगा। पिछले कुछ समय में यह पहली बार
होगा, जब भारत की विकास दर एशियाई दिग्गज चीन की अर्थव्यवस्था
के पास पहुंच जाएगी। वर्ल्ड बैंक ने वर्ष 2014 के
लिए विकास दर के 5.6 रहने
का अनुमान जताया था और वर्ष 2015 में
उसने विकास दर 6.4 रहने
का पूर्वानुमान जताया है, जबकि
उसने वर्ष 2014 में
चीन की विकास दर 7.4 (अनुमानित)
और वर्ष 2015 में उसकी 7.1 प्रतिशत
रहने का पूर्वानुमान जताया।
तो वहीं वर्ल्ड बैंक की आई रिपोर्ट में यह चेतावनी
है कि आने वाला साल ग्लोबल इकॉनमी के लिए मुश्किलों भरा साबित हो सकता है। इस
नाजुक वैश्विक सुधार के नीचे कई तरह के परस्पर विरोधी रुझान भी चल रहे है जिनका
वैश्विक सुधार पर उल्लेखनीय असर होगा। अमेरिका और ब्रिटेन की अर्थव्यवस्थाएं
रफ्तार पकड़ रही है क्योंकि श्रम बाजार में सुधार हो रहा है और मौद्रिक नीति बेहद
अनुकूल है। लेकिन यूरो क्षेत्र और जापान में आर्थिक स्थिति में सुधार अभी रुक-रुक
कर बढ़ रही है क्योंकि वित्तीय संकट का असर अब भी महसूस किया जा रहा है। हालांकि, इस बीच विश्व बैंक ने यह कहा है कि भारतीय इकॉनमी के लिए यह बेहतर दौर साबित होगा। भारतीय
अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान 6.4 फीसदी की वृद्धि दर हासिल कर सकती है। दक्षिण एशिया के साथ भारत का
व्यापार काफी बढ़ सकता है। दक्षिण एशिया के कुल उत्पादन में भारतीय अर्थव्यवस्था
की हिस्सेदारी 80 फीसदी है।
भारत
के लिए मौके
रिर्पोट
की माने तो पिछले समय में किए गए समायोजनाओं ने वित्तिय बाजार की अस्थिरता के कारण
पैदा होने वाली असुरक्षा को कम किया है। बैंक
के अनुसार, भारत में सुधारों और विनियमन के क्रियान्वयन से
एफडीआई में वृद्धि होनी चाहिए। रिपोर्ट में कहा, 'निवेश के जरिए वर्ष 2016 तक विकास दर में मजबूती और वृद्धि आनी चाहिए और यह 7 प्रतिशत तक पहुंचनी चाहिए। हालांकि, यह सुधारों की मजबूत और सतत प्रगति पर निर्भर करता
है। सुधार की गति जरा सी भी धीमी होने का नतीजा मंदी से उबरने की रफ्तार को पहले
से कहीं अधिक अवरुद्ध कर सकता है।'
इसमें कहा गया,
'भारत में अर्थव्यवस्था का धीमी गति से पटरी पर लौटना
जारी है, इसके साथ ही महंगाई में तेज गिरावट आई है। व्यापारिक
क्षेत्र के एक बडे सहयोगी अमेरिका में मांग बढ़ने के चलते निर्यात की गति में तेजी
आई है।' विकास की हालिया गति को बनाए रखने के लिए सुधारों की गति
और राजनीतिक स्थिरता को बनाए रखना जरूरी है।'
इसी
गति को लगतार बनाए रखने के लिए सरकार चाहती है कि वर्ल्ड
बैंक और एशियन डिवेलपमेंट बैंक जैसे संस्थान उसकी राय पर काम करें। नए साल में
जारी गाइडलाइंस के मुताबिक, इन
संस्थाओं को सभी अहम सेक्टरों की स्टडी के लिए सरकार की औपचारिक मंजूरी की जरूरत
होगी। यह नियम इन डिवेलपमेंट बैंकों की भारत से जुड़ी और रीजनल स्टडीज पर लागू
होता है।
कुल
मिलाकर आने वाले बजट पर भारत एंव विश्व के उद्योगपतियों की नजर गड़ी हुई है कि
भारत आर्थिक सुधार के साथ समावेशी विकास के मार्ग पर कितनी सफलता से बढ़ सकता है।
वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली की परिक्षा की घड़ी है। लेकिन देश को इतना सक्षम
वित्त मंत्री शायद ही कभी मिला होगा।
आने
वाला समय हम सब के लिए शुभ संदेश लाएगा।
No comments:
Post a Comment