Saturday, 7 January 2017

सरकार की कल्याणकारी घोषणाओं में बुराई क्या है ?

 सरकार की कल्याणकारी घोषणाओं में बुराई क्या है ?

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

ऐसा तो नहीं है कि सरकार ने बजट पेश करने की परंपरागत तिथि में ऐन पहले बदलाव किया है। बजट को अब तक के समय से पहले पेश करने की यह प्रक्रिया काफी समय पहले से चल रही थी। इसके पीछे मंशा भी यह रही है कि बजट पेश होने के बाद एक अप्रैल से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष के पहले सरकार की घोषणाओं के मुताबिक आवंटित बजट संबंधित विभागों के पास पहुंच जाए। अब तक यह होता था कि बजट पास करने की प्रक्रिया में देरी की वजह से आवंटित किया गई धनराशि समय पर नहीं पहुंच पाती थी। इसकी वजह से विकास योजनाओं के शुरू करने और इनके पूरे होने में देरी होती थी। अब एक फरवरी को ही बजट पेश होने पर सरकार के पास पर्याप्त समय मिल जाएगा। 

जैसा कि मैंने बताया कि यह प्रक्रिया काफी समय से चल रही थी और सरकार ने बजट को फरवरी के अंत के बजाए पहले ही पेश करने के बारे में चुनाव आयोग को पहले बता भी दिया था। चुनाव आयोग ने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा इसके बाद की है। वैसे भी जिस तरह से चरणों में मतदान कराया जा रहा है उसके चलते बीच में मतदान तिथियों का आना स्वाभाविक था। इसे किसी पार्टी विशेष को चुनाव में फायदा पहुंचाने की मंशा से जोड़कर देखा जाना उचित नहीं कहा जा सकता। होना तो यह चाहिए कि बजट को परंपरागत समय से पहले पेश करने का स्वागत किया जाता।

वैसे भी बजट पेश करना किसी भी सरकार का संवैधानिक दायित्व है और भारत सरकार इसी दायित्व की पालना कर रही है। रेल बजट को आम बजट में समायोजित करने का काम भी सरकार की इसी मंशा का हिस्सा है ताकि सभी को बजट घोषणाओं के हिसाब से विकास कार्य शुरू करने का पूरा समय मिल सके। एक बात यह भी है कि बजट कब पेश किया जाए यह सरकार का अधिकार है। चुनाव आयोग के क्षेत्राधिकार में सिर्फ समय पर और निष्पक्ष चुनाव कराना होता है। मतदान तिथियों के बीच बजट पेश होने का विपक्ष जो विरोध कर रहा है उसका कोई औचित्य नहीं है। 

कोई भी सरकार जनकल्याण के काम करने के लिए ही होती है। ऐसे में स्वाभाविक है कि वह जनता के हितों से जुड़े हुए काम करती है। विपक्ष को डर है कि चुनाव में लोकलुभावन घोषणाओं के जरिए मतदाताओं को केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी को फायदा मिल सकता है। 

सरकार वैसे कोई भी अच्छा काम इसलिए करती है ताकि जनता के बीच उसके कामकाज का संदेश बेहतर जाए। हां, बजट घोषणाओं का साइड इफैक्ट हो सकता है लेकिन इसमें भला गलत क्या है? क्या कुछ कठोर फैसलों को घोषणाएं करने का नुकसान नहीं हो सकता? जो लोग सरकार के इस जनहितकारी फैसले का विरोध कर रहे हैं वे सिर्फ विरोध के लिए ही विरोध कर रहे हैं। उनके पास अपनी बात कहने का उनके पास कोई ठोस आधार नहीं है।

सरकार ने बजट को फरवरी के अंत के बजाए इस माह के शुरू में पेश करने के बारे में चुनाव आयोग को पहले ही बता भी दिया था। चुनाव आयोग ने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा इसके बाद की है

आर्थिक मामलो पर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता 

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