चुनाव आयोग नियुक्ति कानून जरुरी ?
क्या सत्ता में बैठे लोगों को इतना भी अधिकार नहीं होना चाहिए कि वे योग्य व्यक्तियों को चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं में नियुक्त करें?
चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाने वालों को हमारे चुनावों का इतिहास भी देखना चाहिए
चुनाव आयोग का स्वच्छंद होना इतना आसान नहीं
वैसे तो हर सिस्टम में सुथार की हमेशा गुंजाइश रहती है। लेकिन कोई बदलाव तब ही किया जाना चाहिए जब मौजूदा सिस्टम में कोई दोष नजर आ रहे हों। हमारे देश में चुनाव आयोग और इस जैसी दूसरी कई संस्थाओं का स्वतंत्र अस्तित्व है। यानी इनके कामकाज पर सस्कार का सीधे तौर पर कोई दखल नहीं है। चुनाव आयोग की बात करें तो उसे वित्तीय संसाधनों के लिए सरकार का मुंह नहीं ताकना पड़ता। आयोग के पास इसके लिए अलग से कोष होता है। इतना ही नहीं आयोग के पास व्यापक शक्तियां हैं जिससे वे चुनाव प्रयोजन के लिए किसी को भी निर्देशित व नियंत्रित कर सकता है। हमने यह भी देखा है कि चुनाव आयोग ने अपनी निष्पक्षता को सदैव प्रमाणित किया है। अब चुनाव आयुकों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कानून बनाकर निश्चित प्रक्रिया से करने की बातें हो यहीं है। इससे ऐसा लगता है कि हमारा चुनाव आयोग निव्यध नहीं है और आयोग के सदस्य व मुख्य निर्वाचन आयुक्त की चयन प्रक्रिया पर राजनीतिक आधार पर हो रही है। सवाल यह है कि क्या सत्ता में बैठे लोगों को इतना भी अधिकार नहीं होना चाहिए कि वे योग्य व्यक्तियों का चयन कर चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं में नियुक करें?
जो लोग चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे है उनको हमारे चुनावों का इतिहास भी देखना चाहिए। टीएन शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त रहने के दौरान हुए चुनाव सुधार आज भी लोगों की जुबान पर है। उनका भी चयन सरकार ने ही किया था।
फिर, हमारे देश में चुनाव आयोग के कामकाज पर नजर रखने के लिए पहले ही कई तंत्र मौजूद हैं। इनमें राजनीतिक दलों व मीडिया के साथ-साथ सबसे ऊपर न्यायपालिका भी है। हमें आपातकाल के पहले का दौर भी याद करना चाहिए जब श्रीमती इंदिरा गांधी के निर्वाचन को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अवैध करार दे दिया। तब भी चुनाव प्रक्रिया में गड़बड़ी के सवाल उठे थे। मेरा यह कहना है कि सरकारें भी निर्वाचन आयोग में नियुकियां श्रेष्हों में से सर्वश्रेष्ठ को छांटकर करती है।
चुनाव आयोग के कामकाज में सस्कार का कहीं हस्तक्षेप होता हो ऐसा लगता नहीं है। उल्टे आयोग के पास सस्कारों को पाबंद करने की कई शक्तियां हैं। क्या कोई आज के दौर में यह सोच सकता है कि चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पथपातपूर्ण होगी? जवाब होगा, कदापि नहीं। जैसा मैंने पहले ही कहा जिस देश में जागरुक राजनीतिक दल, सचेत मीडिया व प्रभावी न्यायपालिका हो वहां चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं का स्वच्छंद होना इतना आसान नहीं जितनी कि चर्चाएं की जा रहीं है। रही बात, चुनाव आयोग में नियुक्तियां कानून बनाकर करने की, मेरा मानना है कि फिलहाल इसकी आवश्यकता नहीं है क्योंकि आयोग में काबिल लोग तैनात है।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता,
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