Wednesday, 26 June 2019

अच्छा आर्थिक विकास ही अच्छी राजनीति है


मोदी सरकार को अभूतपूर्व बहुमत के साथ सत्ता में वापस का मौका मिला है। मोदीजी न केवल भाजपा या राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के निर्विवाद नेता हैं, बल्कि पूरे देश के एक लोकप्रिय नेता हैं। यह भी उम्मीद है कि 2020 तक एनडीए के पास राज्यसभा में भी बहुमत होगा और परिस्थितियां पिछली सरकार की तुलना में और अनुकूल होगी। जिसके कारण आने वाले समय में श्री नरेन्द्र मोदी के निर्णायक नेतृत्व में कई सुधारों को लागू करने के लिए एक माकूल वातावरण का निर्माण होगा।
आर्थिक प्रबंधन के मामले में मोदी सरकार का पहला कार्यकाल बेहद सफल रहा। जीडीपी में वृद्धि, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण, राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण और भुगतान संकट को लेकर जरूरी पहल ऐसे ही कुछ सफल प्रयास हैं। मोदी सरकार का पहला कार्यकाल सिस्टम को साफ करने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में काम किया गया। व्यापक आर्थिक मापदंडों को अगर देखें तो वे सभी बहुत अच्छी स्थिति में हैं। मुद्रास्फीति लगभग 4.5% है। जीडीपी विकास दर उच्च पथ पर, लगभग 7.5% है। राजकोषीय घाटा 3.5% है। चालू वित्तीय खाता घाटा भी स्वस्थ है। जीडीपी के अनुपात में टैक्स संग्रह में भी सुधार हुआ है, जो अब 12% है।

मोदीजी ने सबका साथ, सबका विकासमंत्र के साथ प्रधानमंत्री के रूप में पांच साल तक कड़ी मेहनत से अपने दायित्व को निभाया है। यदि हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो हमारी सरकार ने प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT), ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवा, किफायती घर, शौचालय और अन्य बुनियादी सुविधाओं को सफलतापूर्वक लागू किया है। ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक खर्च में वृद्धि हुई है। सरकार ने 115 जिलों को आकांक्षात्मक जिला घोषित किया है और 65000 गांवों को पिछड़े क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया है और पुश मॉडल पर काम कर रही है। इन जगहों पर जिला कलेक्टरों को उज्ज्वला, उजाला, मुद्रा, आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री आवास योजना आदि सात प्रमुख सरकारी योजनाओं के हर लाभार्थी तक वितरण के लिए जिम्मेदार बनाया गया है ताकि संबंधित क्षेत्रों में प्रत्येक लाभार्थियों पात्र को इन योजनाओं का लाभ पहुंचाया जा सके।

जनसंघ के शुरुआती दिनों से अंत्योदयहमारी विचारधारा रही है, जिसके तहत समाज के अंतिम व्यक्ति को लाभ देना हमारा लक्ष्य है। हमारे वित्तीय समावेशन कार्यक्रम को विश्व बैंक ने भी बहुत सराहा है। पहले कार्यकाल के अंत में मोदी सरकार 22 करोड़ लोगों तक अपनी योजनाओं के साथ पहुंची है, जिसमें समाज के सभी वर्ग शामिल हैं। इस कार्यक्रमों के माध्यम से पार्टी ने जाति और धर्म से ऊपर एक नया समर्थक वर्ग तैयार किया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह के इन करोड़ों लाभार्थियों से सीधे जुड़ने के आह्वान के वांछित परिणाम चुनावों में मिले हैं।
भारत का महत्वाकांक्षी मध्यम वर्ग आगे बढ़ रहा है, यह नयी अवसरों की तलाश और अच्छे जीवनयापन के रास्ते तलाश रहा है। यह मध्यम-आय वर्ग मांग बढ़ाने वाला और व्यवसाय स्थापित करने में सक्षम है। हम गर्व से याद करते हैं कि पिछले 2000 वर्षों के इतिहास में भारत और चीन ने लगभग 60% वैश्विक व्यापार पर प्रभाव किया था।

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ईओडीबी) तालिका में 77वें पायदान पर होना हमारे उन प्रयासों को रेखांकित करता है जिसके तहत विनिर्माण क्षेत्र और एमएसएमई क्षेत्र की परेशानियों को चयनित और हल करने का काम हमने किया है। ऐसे ही ई-आकलन व्यवस्था, प्रत्यक्ष कर ढांचे में व्यापक भ्रष्टाचार को दूर करने में प्रभावी साबित हो रहा है। यह प्रक्रिया को सुचारू करेगा और व्यक्तिपरकता को हटा देगा। इन सभी प्रयासों के माध्यम से करदाताओं के लिए प्रभावी कर को कम करने का प्रयास किया जा रहा है।

जीएसटी का कार्यान्वयन एक बड़ा सुधार है। यह कर संरचनाओं जैसे केंद्रीय, राज्य और स्थानीय करों को समावेश करता है, जिसके परिणामस्वरूप उपभोक्ता के लिए अप्रत्यक्ष करों के दरों में कमी होती है, यह पंजीकरण, रिटर्न भरने, रिफंड आदि में आॅनलाइन उपायों के माध्यम से व्यापार करने में आसानी लाता है। यह प्रणाली उपभोक्ता के लिए विनिर्मित वस्तुओं की कीमतों को कम करेगा, सरकार को अधिक कर संग्रह करने में सुविधा होगी, राजकोषीय व्यवस्था जीएसटीएन नेटवर्क के माध्यम से अधिक सुचारू रूप से प्रशासित होगा।

40 लाख रुपये तक के कुल वार्षिक आय वाले छोटे व्यवसायों को जीएसटी से छूट प्राप्त है। ऐसे ही 1.5 करोड़ रुपये तक सालाना टर्नओवर वाले लोग कंपोजिट स्कीम का लाभ उठाकर मात्र 1 प्रतिशत टैक्स देकर जीएसटी की औपचारिकताओं से छुटकारा पा सकते हैं।

पिछले 5 वर्षों में हमारी सरकार ने समस्याओं को हल करने के लिए संस्थागत तंत्र पर ध्यान केंद्रित किया है। आईबीसी, एनसीएलटी और अन्य कानूनी सुधार लागू किए गए। दिवालियापन और एनपीए का सामना करने वाली कई बड़ी कंपनियों में फंसे बैंकों के पैसों की समस्या को अब हल किया जा रहा है। मोदीजी प्रगतिकार्यक्रम के तहत अटकी हुई नई परियोजनाओं के पुनरुद्धार पर भी काम कर रहे हैं।
भूमि और श्रम देश के औद्योगिकीकरण के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए केंद्र सरकार भूमि मालिकाना रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण पर और भूमि पट्टे समझौते के लागू करने पर भी जोर दे रही है। यह भूमि के स्वामित्व को स्थापित करने में मदद कर रहा है। श्रमिकों के मोर्चे पर हम इस क्षेत्र के श्रमिकों को औपचारिक परिधि में लाने का प्रयास कर रहे हैं। हमारी श्रम शक्ति का 93% अनौपचारिक क्षेत्र में है।

इस क्षेत्र में काम करने वालों की स्थिति बहुत खराब है। यूनिवर्सल अकाउंट नंबर (यूएएन) और औद्योगिक अधिनियमों में सरलीकरण के माध्यम से सरकार ने भविष्य निधि (पीएफ), ईएसआई, नौकरी की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा आदि को लागू करने का काम किया है।

किसान की आय को दोगुना करने के उद्देश्य से हमारी कृषि नीतियां तैयार की जा रही हैं। एमएसपी को उत्पादन की लागत से 150 प्रतिशत तक बढ़ाया गया है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के माध्यम से किसानों को बीमा कवर मिल रहा है। हमारी आयातनिर्यात नीति यह सुनिश्चित करती है कि किसानों को उसकी उपज का बेहतर मूल्य मिले। सरकार ने कई अन्य पहल भी की हैं।

हमारे पास वर्ष 2024 तक 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के लिए स्पष्ट नजरिया है। हम भारत को एक आर्थिक महाशक्ति बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। श्री नरेन्द्र मोदी के निर्णायक नेतृत्व ने यह सुनिश्चित किया है कि सभी आवश्यक कदम शीघ्रता से लिए जाए।

सरकार करदाता के पैसे के महत्व को समझती है, इसलिए चुनावों में कोई लोकलुभावन घोषणा नहीं की गई। ऐसे ऐलान केवल मुद्रास्फीत को खराब करते है। हमारा ध्यान हमेशा सरकारी खर्च की उपयागिता एवं दक्षता बढ़ाने पर रहा है। हमने अपने घोषणा पत्र में कृषि ऋण माफी की घोषणा नहीं की और फिर भी इतने बड़े बहुमत से जीत गए। यह हमारी सामाजिक कल्याण योजनाओं पर बेहतर लक्ष्यीकरण का ही परिणाम है।

आर्थिक संदर्भ में हम उच्च विकास दर के साथ कम मुद्रास्फीति वाली एक आदर्श स्थिति में हैं। हम मानते हैं कि अच्छा आर्थिक विकास ही अच्छी राजनीति है।

Wednesday, 5 June 2019

Employment – The Indian Perspective

India had 51.52 per cent of population in the working age (15-64 years) in the year 2016 according to the World Bank. This high ratio of working to non-working age population, places our country in the position to reap the demographic dividend, if we are able to gainfully employ this population. Keeping this in mind and also the fact that employment is poverty alleviating, employment generation has been one of the biggest focus areas of the current government. 

Data collection on employment and job growth in India is not satisfactory. The National Sample Survey Organisation (NSSO) conducts primary survey on various indicators of labour force and is the most important source of data but this survey is conducted after a gap of five years. Thus, it cannot serve as an effective input for policy making in the areas of labour and employment. There are other primary and secondary sources that provide a snapshot of the employment situation during the I We see that a number of steps have been initiated by the government, which together, are likely to have a tangible impact on the employment situation in the country YOJANA September 2018 63 interim period but they are not comprehensive in nature. 

Labour Market: Structural Rigidities

Any assessment of the performance of government must be done in the background of the unemployment challenge that our economy faces. According to official statistics, proportion of persons in the labour force declined from 43 per cent in 2004-05 to 39.5 per cent in 2011-12, with a sharp drop in female participation rate from 29 per cent to 21.9 per cent. Unemployment problem is challenging in India because it emerges from structural rigidities of our labour market, scarcity of capital and low skill levels of our labour force. The present government has tried to tackle each one of these problems

Critical Issues

Indian labour laws are considered complex and restrictive. One of its defining characteristics is job security of workers covered under it. Complexity also implies huge compliance burden for the companies. As a consequence of this, the labour to capital ratio is low despite the fact that India is a labour abundant and capital scarce country. Rigidities in the labour market have also ensured that the employment elasticity of Indian economy has remained low. According to an International Labour Organisation (ILO) report, the employment elasticity of Indian economy is 0.15 per cent. Therefore, GDP growth does not lead to commensurate employment generation without focused approach. Overhang of labour supply also results in lower wage rates, affecting the quality of employment. We also suffer from disguised employment in the farm sector, therefore providing alternative employment in rural areas is very important, along with time bound target of doubling of farmer’s income.

 Addressing Labour Market Rigidities 

In order to address the problem of labour market rigidity, the government initiated a series of steps The most important is the introduction of ‘Fixed term contract’ employment in certain employment intensive industries like textiles. It allows employers to hire workers for a pre-defined fixed term with a proportionate share of all the benefits to which any permanent worker is entitled, boosting employment in industries that experience seasonality in production and the employment generated would be formal in nature. Under the new ‘Pradhan Mantri Rojgar Protsahan Yojna’ Government of India is paying the full employer’s contribution towards EPF and EPS from 1stApril 2018 onwards thus encouraging new employment.

 India has an entrepreneurial culture, which is stultified due to non-availability of capital. According to the NSSO survey of 2013, there are 5.77 crore small businesses, mostly proprietorships, running manufacturing, trading or service activities but only 4 per cent of such units are able to access institutional finance. The government launched its ambitious scheme of MUDRA (Micro Units Development Refinance Agency) to provide collateral free loan of Rs. 50,000 to 10 lakhs for non-agricultural purpose. As on 29thJune, 2018 the total loan disbursed under the scheme is Rs.5,95,056.15 crore to over 13 crore individuals. 

Employment Generation through Ease of Doing Business 

Under the rubric of ‘ease of doing business’ (EODB) the Labour Ministry has undertaken a number of steps to reduce the compliance burden of the industry. According to the Economic Survey for the year 2017-18, government has numerous technology-enabled transformative initiatives such as Shram Suvidha Portal, Universal Account Number 64 YOJANA September 2018 and National Career Service Portal in order to reduce the complexity burden and better accountability for enforcement. Under Ease of Compliance, the government has pruned the number of registers mandatory for all establishments to maintain under nine central acts to just five from 56, and the relevant data fields to 144 from 933. 

Focus on MSME

The biggest beneficiary of the improved EODB is the Micro, Small and Medium Enterprise (MSME) Sector. This sector produces 40 per cent of India’s GDP and employs a higher number of people per unit of capital employed. One of the first steps that the present government took after coming to office was to form a taskforce to recommend steps to facilitate the growth of MSMEs. Number of its suggestions like, easier registration and exchange-traded platform for bill discounting has already been implemented. The problems of delay in payments have been addressed by ‘MSME Samadhan’, allowing registering complaints online and through Delayed Payment Act. Government e-market portal (GeM) and public procurement website is providing better access to markets. Credit is being facilitated by Prime Minister’s Employment Generation Programme (PMEGP), Credit Guarantee Trust Fund for Micro and Small Enterprises (CGTMSE), ASPIRE Fund of Funds and Small Industrial Development Bank of India (SIDBI). As a result of these steps, the MSME sector is doing well and generating considerable employment. India’s potential for growth in the services sector, catering to such a large population is being encouraged by Atal Innovation Mission hand holding through Start-Up portal.

 Skilling the Work Force 

India faces a paradoxical situation; it has a large labour force, engaged in low productivity jobs and the industrial sector complaining that it is unable to meet its requirement because of the skill gap. Skilling had been on the radar of governments for the last few years but the present government has taken the goal of skilling India’s labour force to a completely different level. Ministry of Skill Development and Entrepreneurship launched i t s f l a g s h i p s c h e m e Pradhan Mantri Kaushal Vikas Yojana (PMKVY) in 2015, under which close to 50 lakh candidates (19 lakhs under PMKVY 1 + 27.5 lakhs under PMKVY 2016-2020 so far) have been trained across the country. PMKVY targets to train one crore youth by 2020. 

Most of the discussion around the unemployment Mudra Fact Box Mudra Fact Box YOJANA September 2018 65 situation in India is based on anecdotal evidence, as the data collection about it is not very comprehensive. Government of India is also working on generating high frequency data on employment generation and other mechanisms to plug the information gap. Towards this end Employees’ Provident Fund Organisation (EPFO), Employees’ State Insurance Corporation (ESIC) and the Pension Fund Regulatory and Development Authority (PFRDA) released monthly payroll data for the first time for the formal sector to facilitate analysis of new and continuing employment. 

Quantity VS Quality of Jobs 

A lot of debate has been on the quantity of jobs but much less on the quality of it, which is equally important. 93 per cent of India’s labour force works informally. About 80 per cent of it works in the informal sector and the remaining is employed informally in the organised sector of the economy. This means that the worker has little access to social security and hence these jobs are rightly considered to be poor quality jobs. Due to steps like demonetisation, GST, reduced regulatory burden and financial assistance for PF and ESI, a large part of the informal sector is getting formalised, improving the quality of jobs.

The noise about lack of jobs does not square with facts that have bearing on employment generation. For example: the government has spent massive amount on infrastructure, which generates highest employment per unit of money spent. Government’s estimated budgetary and extra budgetary expenditure on infrastructure for 2018-19 has been increased to Rs 5.97 lakh crore against estimated expenditure of Rs 4.94 lakh crore in 2017-18. The Union budget for the year 2018-19, for the first time, had discussed number of job- man days that would be created under various government spending schemes like construction of toilets under Swachh Bharat Mission, rural and urban houses under Pradhan Mantri Awas Yojna, rural roads under Pradhan Mantri Gram Sadak Yojna and National Highways etc. In his budget speech, the Finance Minister said that the total amount to be spent by various ministries would be Rs 14.34 lakh crore (including extra-budgetary and non-budgetary resources of 11.98 lakh crore) and this expenditure would create employment of 321 croreperson days. 

We see that a number of steps have been initiated by the government, which together, are likely to have a tangible impact on the employment situation in the country.


Tuesday, 4 June 2019

Modi 2.0 Challenges

Modi Government has been voted back to power with an unprecedented majority. Modi is an undisputed leader of not only the BJP or the National Democratic Alliance (NDA) but of the whole country. It is also expected that sometime in 2020 the NDA will also have a majority in the Rajya Sabha as well, something which eluded it during its last term in the government. This puts the incoming government in a very comfortable position to undertake structural economic reforms. Under the decisive leadership of Narendra Modi, the incoming government will take all the necessary measures.

The first term of Modi government was a success so far as macro-economic management was concerned. GDP growth was revived, inflation was tamed, the fiscal deficit was controlled and the balance of payment crises was averted. We will go for traditional economic reforms of lowering real interest rates, improving consumption demand and encouraging private investments. We have an aspirational middle class with an entrepreneurial zeal which can do wonders if the constraints are removed.   

The economy continues to operate sub-optimally due to lack of reforms in all the factor market: land, labour and capital which is very important for the industrialisation of the country. Indian labour laws are considered complex and restrictive. One of its defining characteristics is the job security of workers covered under it. Complexity also implies a huge compliance burden for the companies. As a consequence of this, the labour to capital ratio is low despite the fact that India is a labour abundant and capital scarce country. Rigidities in the labour market have also ensured that the employment elasticity of Indian economy has remained low. Therefore, GDP growth does not lead to commensurate employment generation. Thus, a major challenge before the government is to reform and consolidate the labour laws. This reform will also be the most challenging politically and need to be handled deftly. 

Land acquisition is a big problem for the industry and infrastructure project. The States have not come up with land lease agreement laws based on the Model Act of NITI Aayog and the government will have to encourage them to do so. Though it is a state subject, the Centre must also push for digitisation of land records. This will create better ownership of lands. Even in Ease Of Doing Business (EODB), transfer of title is an important consideration. 

Cost and mobility of capital is another challenge. Unless, we reduce the rate of interest rate, our economy and industry etc. cannot grow. Monetary Policy Committee (MPC) of the Reserve Bank of India (RBI) has consistently overestimated the future inflation in the economy as a result of which RBI has kept the benchmark interest rate at an elevated level. This is clearly not warranted by the level of economic activity in the country. Moreover, whenever the RBI cuts the repo rate, it is not fully transmitted by the banking sector. As a result of these two factors, the investors in India face one of the highest real interest rates in the world. The Government and the RBI have to converge on monetary policy issues. 

Cost of capital is also high because of some structural factors that the government can address on its own. The cost of funds of our banking industry comprises of the cost of deposits and the risk premium. Fixed interest rates on saving schemes like Post Office Deposits, PPF and EPF affect the cost of deposits for the banking institutions. The government needs to further rationalise them and control its own borrowings from the market.  

The second important component of the lending rate is the risk premium determined by the probability of loan not being repaid due to various factors. Over the last five years, the government has focused on institutional mechanisms like IBC and NCLT to ensure that capital is not stuck in unviable and bankrupt projects.  As a result of this, the risk premium is expected to come down. Certain bottlenecks and shortcomings in the IBC and NCLT have become evident which needs to be addressed. 

Employment is an important catalyst for economic growth.  With India being a fast growing economy of new jobs seekers, the focus has been on entrepreneurship and self-employment but the issue cannot be tackled without focusing on the manufacturing sector which has not performed as per government’s expectation. It is hoped that the above factor will give a boost to the manufacturing sector. The challenge before the government will be to ensure that our manufacturing sector is internationally competitive so that it does need to hide behind protective tariffs.

Government’s commitment to doubling of farmer’s income by 2022 (from 2015-16 level), which has been reiterated in the 2019 manifesto of the Bharatiya Janata Party (BJP), remains a big challenge. The biggest problem in this sector is that all the agricultural policies are being formulated with a deficit management mindset. We had a deficit in food production since independence, but now our food grain production is in surplus. All our agriculture import-export policies are aligned with the requirement of the consumers; now the policy will ensure that the farmers get a better price for his produce. There is ample scope here as we have low inflation and high growth. 

 Most of the Financial Sector Legislative Reform Commission (FSLRC) recommendations have been implemented by the Modi government. However, the government’s attempt to pass the Financial Resolution and Deposit Insurance (FRDI) Act had failed due to strong political opposition. There was a lot of misinformation about the Act that was deliberately spread. The incoming government will have to enact this law because without it the financial sector reforms will not be complete. 

Increasing the efficiency of government expenditure is another major challenge before the government. The government must ensure that its borrowings are not used to finance revenue expenditure and are used for asset creation and infrastructure investments. Loss-making public sector enterprises are to be divested. It is heartening to see that steps for disinvestment of Air India are being taken up. The government will address the above challenges and make economic growth more broad-based, leading to a positive cycle of higher growth and higher demand, and put the Indian economy on a permanently high economic growth trajectory.

Saturday, 1 June 2019

आदरणीय नितिन गडकरी जी के साथ संस्मरण


आदरणीय गडकरी जी से मेरा सम्बंध दिल्ली में जब वे भाजपा के अध्यक्ष बने सन 2009 में आया । तब मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता था।

उससे पहले भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक नागपुर में हुई थी तब मैं वहां गया था जिस, प्रकार  की अभूतपूर्व व्यवस्था , कार्यकर्ताओं का सेवाभाव देखा तो प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। नागपुर की कार्यकारिणी से सभी पदाधिकारी प्रसन्न थे । गडकरी जी के व्यवस्था कौशल्य और कार्यकर्ताओं से स्नेह ने हमें आत्मविभोर कर दिया।

दिल्ली वे जब आए और अध्यक्ष बने तो लगा कि, नए व्यक्ति हैं कैसा स्वभाव है, कार्यप्रणाली कैसी है , कार्यकर्ताओं का आंकलन कैसे करेंगे लेकिन थोड़े ही दिनों में उंहापोह खत्म हो गई। कभी लगा नहीं कि महाराष्ट्र से आए व्यक्ति हमसे अलग हैं । उनके निवास पर कभी भी जाओ तो समयानुसार आथित्य बिना किसी ऊपरी बनावट के सबको प्राप्त था , कभी नहीं लगा कि हम छोटे कार्यकर्ता हैं अध्यक्ष जी से बालहट कैसे  कर रहे हैं।

राजनैतिक कार्यकर्ताओं की आकांक्षा और अपेक्षाएं हर वक्त रहती हैं। राजनीति में हमारी महत्वकांक्षा  का योगदान रहता है सत्ता में अपनी हिस्सेदारी की इच्छा के बारे में मेरे मन में कभी दुविधा नहीं रही । इसमें दो राय नहीं है कि नेतृत्व सभी के अपने आंकलन से सहमत नहीं हो सकता और उसके अपने समीकरण होते हैं। राजनीति में समीकरणों को साधने की मजबूरी भी होती है लेकिन गडकरी जी से कहने में कभी हिचक नहीं हुई। मना करने के बाद भी प्रेम उसी प्रकार बना रहा, व्यवहार का खुलापन ,सभी से मित्रभाव, अपनापन उनकी विशेषता है।

उनके साथ काम करने में ऐसे कई मौके आए जब उनके व्यक्तित्व ने मुझे प्रभावित किया। श्री श्री रविशंकर जी से मेरा व्यक्तिगत सम्बंध है। जब आर्ट ऑफ लिविंग ने एक विशाल कार्यक्रम जर्मनी में आयोजित किया तो उनकी इच्छा थी कि गडकरी जी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते वहां मुख्य अतिथि के रूप में आएं। गडकरी जी को निमंत्रण देने के लिए मैं और डॉ. गुप्ता गए उन्होंने सरलता से स्वीकार कर लिया। जब हम लोग जर्मनी गए तो इनके सहयोगी वैभव जी इनके साथ नहीं गए। गडकरी जी ने अपनी टिकट खुद ही ली थी मैंने भी अपनी टिकट खुद ली । तीन दिन हम वहां साथ रहे। बर्लिन पंहुचते ही होटेल पंहुचकर इन्होंने कहा मैं पराठे,  अचार और कच्चा प्याज लाया हूं तुम मेरे कमरे में आ जाओ खाना खाएंगे। मैं कमरे में पंहुचा बनियान लुंगी में इनके साथ खाना खाया । मेरे लिए सुखद आश्चर्य था । सांयकाल हमने कार्यक्रम में भाग लिया और रात्रि भोज में भी गए।

गडकरी का पैशन था कि जर्मनी की एथेनॉल टेक्नोलॉजी के कार्य को देखें वहां के अम्बेस्डर से मिल कर उस टेक्नोलॉजी को इतने उत्साह से जानने और समझने की उत्सुकता थी कि इन्होंने पूरा दिन इस विषय पर लगाया। देश की एनर्जी की और गन्ना किसानों की समस्याओ को कितने अच्छे तरीके से हल किया जा सकता है इसी पर पूरा फोकस था।

जब हम बाजार गए, वे अपने परिवार के लिए समान खरीद रहे थे मुझे कहा गोपाल तुम भी कुछ लो मैं झिझक रहा था पर इंसिस्ट करने पर मैंने अपनी छोटी बेटी के लिए एक कपड़ा लिया , मेरे बहुत कहने पर भी पैसे मुझे नहीं देने दिए। मेरी भतीजी है उसके लिए मैं उपहार दुंगा, अभी तक मेरी छोटी बेटी को वह गिफ्ट याद है मेरा कोई बहुत पूर्व परिचय नहीं था लेकिन इनका अपनापन बहुत था।

भारत आकर कोई कार्यक्रम करना है तुरंत प्रोत्साहन मिलता था, कार्यक्रमों का मुझे शौक है, वैचारिक गोष्ठी ,एक्टिविस्ट मीट , सोशल इश्यूज पर पॉलिसी इंटरवेंशन आदि इन्होने कभी भी हमें रोका नहीं।

नई दिल्ली में हमने प्राकृतिक संसाधनों पर दो दिवसीय अधिवेशन किया था ,पूरे देश से लोग आए थे । मुझे याद है कि उद्घाटन सत्र में गडकरी जी ने बोला  “Politics has to be the means to socio-economic transformation Politics has to be a by-product of your  social Activity”  यह वाक्य आजतक मुझे याद है। मेरे अपने विचार से कितना सामंजस्य लगा, जैसे मेरे अव्यक्त भावों को अभिव्यक्ति प्रदान कर दी हो ।

सड़कें बनानी है , देश का आर्थिक विकास करना है , गरीबो के कल्याण में रत रहना है । कई बार हम आपस में मजाक भी करते थे गडकरी जी के पास जाएंगे तो Ethanol और सड़क की बात जरूर होगी । आज भी उनका इतना ही Enthusiasm  इन विषयों पर है और उस पैशन का मूर्तरूप देश के सामने है। बढ़िया सड़कें , उन्नत राज्य इनके ध्येय वाक्य की तरह है। ये हरदम Quote करते हैं कि  “American Roads are good not because American is rich but America is rich because American roads are good”  मैं आर्थिक विषयों से जुड़ा हुआ हूं लेकिन मुझे विश्वास नहीं होता था कि विकास के लिए संसाधनों की कमी कभी नहीं होती। लेकिन गडकरी जी कहते हैं कि आत्मविश्वास और लक्ष्य के प्रति समर्पण चाहिए संसाधन आ जाएंगे। आज कई कई लाख करोड़ के इन्वेस्टमेंट के प्रोजेक्ट को गड़करी जी ऐसे पूरा करा रहे हैं जैसे कोई अपना घर बना रहा है।

मेरे जीवन के पचास वर्ष पूरे होने पर मैं एक रात्रि भोज का आयोजन ग्रेटर नोएड़ा में करना चाहता था और इन्हें आमंत्रित किया इन्होंने स्वीकार ही नहीं किया बल्कि उस दिन नागपुर में आवश्यक कार्य आ जाने पर भी वहां से आकर ग्रेटर नॉएडा के मेरे कार्यक्रम में आकर अपने आश्वासन को पूरा किया।

जब उनके भाजपा  का अध्यक्षीय कार्यकाल पूरा हो रहा था और निश्चित था कि पुनः अध्यक्ष बनेंगे उस वक्त लॉ कॉस्ट हाउसिंग के इनके नागपुर के प्रोजेक्ट को देखने का हमारा कार्यक्रम तय हुआ था,  दुर्भाग्यवश इन्होंने अध्यक्ष पद अस्वीकार कर दिया। अगले दिन हम साथ में नागपुर गए, कार्यकर्ता दोगुने उत्साह से एयरपोर्ट पर लेने आए थे । एयरपोर्ट से अपने घर भोजन के लिए ले गए उनकी पत्नी एवं बिटिया ने भोजन कराया। इन्होंने कॉपरेटिव के तहत कई हजार लॉ कॉस्ट हाउस बनाए थे, उन प्रोजेक्टस को पूरा दिखवाया । पूरा कार्यक्रम यथावत रहा कहीं कोई तनाव या उदासीनता नहीं थी ।

पानी के विषय पर मैं काफी कार्य कर रहा हूं । पानी के निजीकरण एवं व्यवसाईकरण पर मेरा विरोध है, लेकिन विचारों की भिन्नता पर भी  मेरे काम को रोका नहीं। इनका सोचना है कि वैचारिक आधार पर समय की आवश्यकता को देखते हुए हमें अपने को संक्रीणता में नहीं अवरूद्ध करना है । निजी सम्पत्ति की देश को विकास के लिए आवश्यकता है।  निजीकरण करना ही चाहिए यह निजी निवेश को प्रोत्साहित करता है इसी सोच के चलते राष्ट्रीय राजमार्ग, जलमार्ग आदि में बिना संसाधनों की सीमितता के हम तीव्र विकास देख रहे हैं। अभी हाल में गडकरी जी ने कहा कि मैं वर्कहोलिक हूं जिस काम को करता हूं उस पर ही पूरा ध्यान देता हूं । पिछले पांच सालों में एक भी ऐसा काम नहीं है जो मैंने कहा हो और नहीं किया हो । एक जगह उन्होंने कहा कि मैंने कई ठेकेदारों से कहा कि यदि उनके द्वारा बनाई गई सड़कों की गुणवत्ता खराब निकली तो मैं उन्हें बुलडोजर के नीचे डलवा दूंगा। उन्होंने पारदर्शिता पर चिंताओं को दूर करते हुए कहा कि किसी ठेकेदार को ठेकों के लिए दिल्ली आने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जो सड़क निर्माण दर यूपीए के शासनकाल में दो किमी प्रतिदिन हो गई थी अब वो 37 किमी प्रति दिन हो गई है उनके अनुसार जिस तरह एनडीए सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में सड़क नेटवर्क पर अच्छा काम किया उसी तरह दूसरे कार्यकाल में पानी के नेटवर्क को सुधारा जाएगा

संसाधनों की सीमितता के कारण आधारभूत ढांचे में निजी निवेश की आवश्यकता और महत्व को उन्होंने कभी भी अस्वीकार नहीं किया। आज देश में एक सफलतम मंत्रालय का पिछले पांच वर्ष में संचालन किया I feel that Really he is the man of the moment and men for the all the Moment .  उनके विचारों में एक ताजापन है , एक बेबाकी है, शब्दों को कभी तोड़ मरोड़ कर नहीं कहा और व्यक्ति एवं समय देखकर कभी बदला नहीं। मुझे खुशी है कि ऐसे व्यक्तित्व के साथ मेरा सम्बंध रहा।  इनसे बहुत कुछ सीखा, इनकी जीवन इसी प्रकार लक्षित बना रहे। जीवन के उतार चढ़ाव से अन उद्देलित, अपने मार्ग पर मुक्तसर अग्रसित  आदरणीय श्री नितिन गडकरी जी एक निष्ठावान कार्यकर्ता हैं अपनी जिम्मेदारियों को सकुशल निभाते हुए आगे बढ़ रहे हैं। समाज की समस्याओं का गहराईयों से चिंतन और उसके निदान के मार्ग का अन्वेषण और अगर मार्ग स्पष्ट हो गया तो फिर उस पर तीव्र गति से बिना झिझक अग्रसर होने का गडकरी जी का स्वभाव बन गया है और यहीं उनकी सफलता की कुंजी भी है। सब समाज को लिए साथ में आगे है बढ़ते जाना।