Thursday, 11 April 2019

सेना से ज्यादा आतंकवादियों के मानवाधिकार की चिंता

 सेना से ज्यादा आतंकवादियों के मानवाधिकार की चिंता

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,
राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा।

अपने चुनावी घोषणापत्र में कांग्रेस ने कहा है कि अगर वह सत्ता में आती है तो जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (आफ्रया) पर मानवाधिकारों के मद्देनजर पुनर्विचार करेगी। शायद कांग्रेस को सेना से ज्यादा आतंकवादियों के मानवाधिकारों की चिंता है। कांग्रेस जी. के. अग्रवाल यह नजरअंदाज कर रही है कि इसका कितना बुरा असर सेना के जवानों के कार्य पर पड़ेगा जो वहां आतंकवादियों के साथ हर रोज सीधा मुकाबला करते हैं। इस कानून में कोई भी छेड़छाड़ पाकिस्तान की तरफ से चलाए जा रहे छग्य युद्ध में सेना को कमजोर ही करेगी। कांग्रेस का आतंकवादियों, अलगाववादियों और देशविरोधी शक्तियों के प्रति हमेशा से सहानुभूतिपूर्ण रवैया रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने टाडा हटाया, बाद की कांग्रेस सरकार द्वारा पोटा हटाया गया।

इसी तरह कांग्रेस द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 124 से राजद्रोह के प्रावधान को हटाए जाने का वादा देश के अंदर चुन की तरह लगी राष्ट्रविरोधी ताकतों को समर्थन और मजबूती देना है। इससे माओवाद और उन्हें समर्थन देने वाले छद्म प्रबुद्ध वर्ग के विरुद्ध संघर्ष कमजोर होगा। सीआरपीसी के तहत भी अभियोगाधीन आपराधिक मामलों में जमानत की बात इसी श्रृंखला की कड़ी है। अपने घोषणापत्र में कांग्रेस कोई मजबूत आर्थिक नीति नहीं प्रस्तुत कर पाई है। जिस 'न्याय' योजना की बात वह कह रही है, उसके लिए जरूरी संसाधन जुटाने को लेकर उसके पास तो जवाब है और ही भविष्य की कोई रणनीति। कांग्रेस 72000 करोड़ रुपये की आर्थिक योजना के लिए मध्यवर्ग पर कर का और ज्यादा बोझ डालने की बात कर रही है। इसके लिए वह कितनी अन्य योजनाओं को निरस्त करेगी, यह अभी नहीं बता रही। इसका बोझ प्रदेश सरकारें भी वहन करेगी। बिना उनकी सहमति के केंद्र यह घोषणा नहीं कर सकता।

किसानों की समस्याओं को लेकर क्या रोडमैप है, कुछ नहीं बताया गया। अलग किसान बजट की घोषणा करने से क्या होगा, स्पष्ट नहीं है। वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) को लेकर भी कांग्रेस एक रेट की बात करके आम जनता पर बोझ ही बढ़ाएगी। क्या शराब और खाद्यान्न पर एक ही टैक्स होना चाहिए? बीजेपी ने जीएसटी के अंतर्गत आम

जनता की आवश्यकता की वस्तुओं पर टैक्स दर काफी कम की है जो कांग्रेस बदलना चाहती है। 22 लाख सरकारी नौकरियों की संख्या बेमानी है। केंद्र में केवल 4 लाख नौकरियां है और सरकारी उद्यमों में केंद्र किसी को रखवा नहीं सकता। रोजगार की समस्या का यह कोई समाधान नहीं है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि वह न्यायपालिका व्यवस्था में व्यापक बदलाव करेगी। उसकी योजना है कि एक बिल लाकर सुप्रीम कोर्ट को संवैधानिक अदालत में बदल दिया जाए और एक अपीलीय अदालत का निर्माण करके हाई कोटों में फैसला पा चुके मामलों को सुना जाए। ऐसी व्यवस्था का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि सारे मामले अंततः सुप्रीम कोर्ट में ही आकर समाप्त होंगे। 

इस नए प्रावधान से न्याय प्रक्रिया लंबी और जटिल हो जाएगी। कांग्रेस हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए न्यायिक आयोग स्थापित करना चाहती है। ऐसा कोई भी प्रावधान न्यायपालिका में हस्तक्षेप जैसा होगा। कांग्रेस कानून बदलेगी और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया से कहेगी कि पत्रकारों के लिए कोड ऑफ कंडक्ट लाए। यह पत्रकारों की स्वंतत्रता पर सीधा प्रहार होगा। बिना व्यापक विमर्श के यह खतरनाक होगा। आज हजारों अखबार, न्यूज चैनल और वेबसाइट हैं जिनकी पहुंच वैश्विक है। बहुत सी चीजें सेल्फ रेगुलेटरी होती जा रही हैं। कांग्रेस को समझना चाहिए कि लोकतंत्र में मीडिया की स्वतंत्रता कितनी महत्वपूर्ण होती है। पार्टी को उन चीजों से दूर रहने की जरूरत है जो देश हित में नहीं हैं।

"जिस 'न्याय' योजना की बात कांग्रेस कह रही है, उसके लिए संसाधन जुटाने उसके पास कोई को लेकर जवाब नहीं है"|

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