अमेरिका की प्रतिष्ठित
टाइम मैगजीन में आतिश तासीर ने पीएम मोदी पर एक लेख लिखा। जिसमें लेखक तासीर की
तरफ से सवाल हुआ है कि, क्या विश्व का सबसे बड़ा
लोकतंत्र फिर से मोदी को पांच साल का मौका देने को तैयार हैं?
आतीश तासीर नें मोदी जी को
डिवाइडर इन चीफ बताया और मोदी जी की जम कर आलोचना कि हालांकि उन्होने यह भी
स्वीकारा है कि 2019 के इलेक्न में मोदी जी की जीत तय है। तासीर ने मोदी जी को
विभाजित सोच का बताते हुए कई बातों को रखा है पर क्या वो बातें सही है।
नरेंद्र मोदी की
(अपेक्षित) जीत को वे "भारत के लिए विपत्ति" के रूप में वर्णित करते है।
अगर वह वास्तव में भारतीयों द्वारा लोकतांत्रिक, स्वतंत्र
और निष्पक्ष जनादेश का सम्मान करते हैं, तो उनका यह विचार
प्रजातांत्रिक मुल्यो के खिलाफ है और भारतीय जनमानस की सोच पर प्रश्न चिन्ह खड़ा
करने का प्रयास करता है।
अगर तासीर के इस लेख का
अवलोकन किया जाए तो इस लेख में इस बात का जिक्र है कि पिछले 5
सालों में मोदी अपनी नाकामी छुपाने के लिए राष्ट्रवाद का सहारा लिया
है। लेकिन अगर पिछले पांच वर्षों में मोदी जी का कार्यकाल देखेगें तो देश में सर्वांगीण
विकास के कई महत्वपूर्ण कार्य हुए है। आज हमारी अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तेज
गती से आगे बढ रही है। आधारभूत ढांचा जैसे सड़क, रेल, हवाई जहाज के क्षेत्र में
विशेष प्रगति हुई है। गरीब कल्याण और उत्थान बहुत तेजी से हुआ है। भारत में आज
मिडल क्लास का उद्भव हो रहा है जो नई सोच एवं आत्मविश्वास के साथ आगे प्रगति पर
है। विश्व पटल पर भारत की साख बहुत मजबूत हुई है।
लेखक ने इन प्रगति को
नजरअंदाज करके 1947 का जिक्र किया है। वे कहते है
कि भेद भाव की भावना तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने शुरु की थी। देश का
विभाजन हिन्दु और मुसलमान के तर्ज पर हुआ था। पाकिस्तान ने अपने को मुस्लिम
राष्ट्र घोषित किया लेकिन भारत धर्मनिरपेक्ष रहा। नेहरु जी द्वारा फिर, भारत में
मुसलमानों और हिन्दुओ को दो अलग – अलग कानून अपनाने को क्यों कहा गया। मुसलमानो के
शरिया को समान नागरिक संहिता के उपर रखा गया और हिन्दुओं के कानून में कई बदलाव
किये गए।
उनका कहना है मोदी जी के
कार्यकाल में हिंदू-मुस्लिम के बीच दूरियां बढ़ी, जबकी मोदी जी ने हिन्दु मुसलमानो में
कभी भेद भाव पैदा करने की कोशिश नही की है मोदी जी ने “सबका साथ सबका विकास” से सबको समान रुप से फायदा
पहुंचाने का प्रयास किया है।
तासिर ने तीन तलाक को खत्म
करने का जिक्र किया है। एक तरफ आप यह कहते है। महिलाओ के लिए सुरक्षा नहीं है। तो
फिर यह बताईए क्या तीन तलाक को खत्म करना मुसलिम महिलाओं का विकास का हिस्सा नहीं
है। मुसलिम महिलाओं को उनका हक मिलना चाहिए या नहीं है।
वह इस तथ्य की अनदेखी करते
हैं कि नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता के समर्थकों ने शाह बानो के पक्ष में सर्वोच्च
न्यायालय के फैसले को निष्प्रभावी कर दिया और डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था कि
अल्पसंख्यकों का देश के संसाधनों पर पहला अधिकार है।
धार्मिक संघर्षों पर भी,
उन्होंने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि पिछले पांच वर्षों में
भारत में कोई बड़ी घटना नहीं हुई थी। महिलाओं के मुद्दों पर, वह महिला सशक्तीकरण के लिए विभिन्न सरकारी पहलों, जैसे
बढ़े हुए प्रसूति मातृत्व अवकाश, छात्राओं के लिए अलग शौचालय,
रसोई गैस कनेक्शन आदि सरकार की पहल की अनदेखी की हैं। उज्जवला योजना
से गाँव धुएँ मुक्त की तरफ़ बढ़ रहे हैं, कच्चे मकानों में
रहने वालों को पक्के मकान दिए जा रहे हैं, ये सब योजनाएँ
बिना किसी जातिगत भेदभाव और बिना किसी धार्मिक भेदभाव के लागू की जा रही हैं और इन
योजनाओं की ख़ासियत है कि जो सुपात्र हैं वो इन योजनाओं के लाभार्थी हैं। भारत
जैसे विशाल देश में किसी योजना को उसके सच्चे हितग्राही तक पहुँचा देना ख़ुद में
एक कामयाबी है|
मैं प्रश्न पूछता हूँ कि देशहित
और राष्ट्रवाद में फरक क्या है। क्या देश हित की भावना जगाना गलत है। क्या देश के
नागरिकों में यह भावना नहीं होनी चाहिए की देश सर्व प्रथम है।
मोदी जी ने आतंकवाद पर
लगाम लगाई है। पुलवामा के बाद दिखा दिया कि पाकिस्तान कि हजार घाव वाली थ्योरी को
नहीं सहेगें। हमारी सेना पाकिस्तान को उसके घर में घुस कर मारेंगी।
मोदी जी ने स्वतंत्र देश
का हर फैसला कैसे होता है इसको पुरी दुनिया के सामने रखा है।
और तासीर जी बताए क्या
पहले की अपेक्षा भारत में विकास कम हुआ है। आप कांग्रेस के विकास को कतार में लाइए
जिसने 70 साल देश पर राज किया और फिर मोदी सरकार के विकास को कतार में लाइए आपको
फरक साफ दिखाई देगा। आपने भारत को समझने के लिए सलेक्टिव अप्रोच का चयन किया है आप
अपने लेख में निष्पक्ष पत्रकार कम नज़र आते हैं आपके विश्लेषण पर आपके पूर्वाग्रह
भारी पड़ते दिखाई दे रहे हैं।
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