Thursday 1 December 2022

गुजरात में महाविजय सतत सेवा का फल

गुजरात में महाविजय सतत सेवा का फल

दो प्रदेशो  और ऍमसीदी के चुनाव परिणामो का अगर विश्लेषण करे तो कुछ विषय सामने आते हैं ! भाजपा  को गुजरात में अप्रितम सफलता प्राप्त  हुई हैं ! अब तक इतनी सीट किसी भी दल को नहीं प्राप्त हुई थी !

भाजपा के लिए भी ये जन-समर्थन गौरवानवंती करने वाला हैं ! 27 वर्षो से लगातार सत्ता में रहने के बावजूद जनता का विश्वास सत्ताधरियो में बरकरार रहना अपने आप में मिसाल हैं! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश भाजपा के नेतृत्व के प्रति जनता में विश्वास बने रहना भविष्य में राजनीति के मापदंड तय करेगा !

गुजरात की सफलता गुड गवर्नर्स और समायोजित विकास का एक मॉडल पेश करती हैं ! अभी तक यह माना जाता रहा हैं की भारत की रजनीति में यह मह्त्वपूर्ण पहलू नहीं हैं ! जनता इस विषय के आधार पर सकारात्मक वोट नहीं डालती, बल्कि वोट के लिए महत्वपूर्ण विषय जातिवाद, अलगाववाद, व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति के झूठे या सच्चे  आश्वासन ही हैं! आप ने पूरा प्रयास की वह मुफ्त की रेवड़ी के आश्वासन पर चुनाव जीत  ले पर जनता को पता हैं की सुशासन, भ्रष्टाचार मुक्त शासन और आर्थिक विकास की नीतिया ही प्रदेश की दूरगामी व स्थायी विकास करने में सक्षम हैं और इसी सोच क साथ अगर जनता वोट डालेगी, तो प्रजातंत भी मजबूत होगा ! स्थायी और सफल सरकार का संचालन जनता के हिट में हो सकेगा !

गुजरात में खोखले वादों की राजनीति की हार स्पष्ट हैं ! यह भाजपा के 27 सालो के कार्यो की सराहना हैं और राजनीति के नए मुद्दों, जैसे गुड इकोनॉमिक्स, अच्छी राजनीति, भ्रष्टाचार मुक्त शासन, योजनाओ का सक्षम क्रियान्वयन का कमाल हैं ! परिवारवाद की राजनीति का निराकरण राजनीति के आने वाले समय में मुद्दे के रूप में उभरकर आएगा !

कांग्रेस की हार उसकी परिवारवादी सोच, दिशाहीन राजनीति और भ्रमित नेतत्व की हार हैं ! उन्होंने मुफ्त की रेवड़ियों को बाटने का आश्वासन दिया, इसके बावजूद उनका पराभव दर्शाता हैं की जनता झूठे और भ्रमित आश्वासन से बरगलाइ नहीं जा सकती ! प्रधानमंत्री ने   इस बात को अपने वयक्तवय में रखा हैं ! गुजरात का परिणाम आने वाले समय में राजनीति का परिदृश्य ही बदल देगा! इस जीत के बाद भाजपा का गुजरत में 32 वर्ष का लगातार कार्यकाल हो जायेगा ! यह अपने आप में  प्रजातंत्र में एक ऐतिहासिक कार्य रहेगा !

भाजपा हर चुनाव को एक चुनौती के रूम ले लेती हैं साथ में हर चुनाव हमारे लिए जनता के साथ संवाद का महत्वपूर्ण अवसर भी हैं! इसीलिए चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा हो, गृह मंत्री अमित शाह हो या केंद्रीय मंत्रीगण  या सभी केंद्र व राज्य के पदाधिकारी या सामान्य कार्यकर्ता, सभी पूरी लगन, मेहनत से चुनाव में जुट जाते हैं! बड़ा चुनाव हो या छोटा चुनाव हम पूरी तत्परता से समवाद स्थापित करते हैं ! प्रजातंत्र के उत्सव में भागीदारी सुनिश्चित करते हैं ! यह समय होता हैं जब हम अपने कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड जनता के बीच में रखते हैं ! उनसे सरकारी योजनाओ पर विचार ग्रहण करते हैं उनकी आकांशाओ और उपेक्षाओ को जानने समझने के प्रयास करते हैं और उसे अपने विचार में शामिल करते हैं !

इस सारी प्रक्रिया में केवल चुनाव परिणाम मतलब नहीं रखते हैं ! हाँ, हम एक राजनितिक पार्टी हैं ! जीतने की आकांशा से चुनाव लड़ते हैं जरूर , लकिन परिणाम के आधार पर अपनी शक्ति या अपने कार्य को सीमित नहीं करते हैं हमारे कार्यकर्ता का मनोबल इसी आधार पर बढ़ता रहता हैं सफलता भी मिलती हैं ! कभी पूरी अपेछित सफलता न भी मिले, तो भी पुरे मनोयोग से जनता को धन्यवाद एवं आभार हमारे लिए मह्त्वपूर्ण हैं ! दिल्ली और हिमाचल के चुनाव परिणाम इसी परिपेरक्षय में हमारे लिए महत्व के विषय हैं! प्रजातान्त्रिक मूल्यों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता हमें आत्म-समीक्षा और अधिक कड़ी मेहनत के लिए प्रोत्साहित करती हैं ! हिमाचल में हमारे और कांग्रेस के बीच सीटों का अंतर होने के बावजूद वोटो का अंतर एक प्रतिशत से भी कम हैं, जो हमें आश्वस्त करता हैं की हिमाचल की जनता भाजपा पर विश्वास करती हैं हमारे अध्यक्ष ने कहा हैं की हम परिणाम की व्यापक समीक्षा करेंगे और अगर पार्टी में किसी स्तर पर समस्या होगी तो उसे तत्काल दूर करेंगे !

बिहार और उत्तर प्रदेश में उप-चुनाव की जीत भी हमारे लिए सुखद हैं हम अभी से पूर्ण विश्वास एवं मेहनत से अगले चुनावो की तैयारियां में जुटने वाले हैं प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता, मेहनत और जनता का उन पर प्रेम व विश्वास पूरी तरह बरक़रार हैं !



Tuesday 3 May 2022

वैश्य समाज ने मांगी राजनीतिक भागीदारी

                   वैश्य समाज ने मांगी राजनीतिक भागीदारी

By Gopal Krishna Agarwal

उत्तर  प्रदेश में आगामी निकाय चुनावों को लेकर वैश्य समाज ने अपनी राजनैतिक भागीदारी एक मीटिंग आयोजित की। जिसमें गौतमबुद्धनगर और बुलंदशहर के वैश्य समाज के नगर पार्षद, नगर पंचायत अध्यक्ष और निकाय अध्यक्षों ने भागीदारी की। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल कार्यक्रम मुख्य अथिति रहे।
कार्यक्रम में आए सभी वैश्य समाज के प्रतिनिधियों की मांग थी कि आगामी निकाय चुनावों में वैश्य समाज को हितों को ध्यान में रखा जाए तथा भाजपा से निकाय चुनावों में वैश्य समाज के जुड़े लोगों को प्रत्याशी बनाया जाए। वैश्य समाज के लोगों को राजनैतिक दलों पर अपनी उपेक्षा का आरोप लगाया, और कहा कि उन्हें केवल वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। जबकि पूरा समाज राजनैतिक दलों को सबसे ज्यादा चंदा देता है। गौतमबुद्ध नगर और बुलंदशहर दोनों जिलों में वैश्य समाज की राजनैतिक प्रतिनिधित्व नगण्य है। केवल बुलंदशहर में ही मेयर वैश्य समाज के हैं। जबकि दोनों जिलों में चुनाव से निर्वाचित होने वाले पार्षदों की सख्या में संतोषजनक नहीं है। भाजपा प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल मांग करते हुए वैश्य समाज के प्रतिनिधियों ने कहा कि वह समाज की इस मांग से भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की अवगत कराएं।

वहीं कार्यक्रम के मुख्यअथिति भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने कहा कि भाजपा वैश्य समाज की महत्वता को पहचानती है। उन्होंने कहा कि वैश्य समाज अपनी सामाजिक भागीदारी को बहुत अच्छे से निर्वहन कर रहा है परन्तु राजनैतिक भागीदारी के लिए राजनैतिक पहचान भी जरूरी है। इसलिए वैश्य समाज अगर अपनी राजनैतिक भागीदारी सुनिश्चित करना चाहता है तो राजनीति में आना होगा और समाज से जुड़े लोगों को आगे बढ़ाना होगा। उन्होंने कहा कि मेरे संज्ञान में जो बातें लाई गई हैं मैं उन्हें पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक जरूर पहुंचाउंगा।

इस अवसर पर वैश्य समाज के खुर्जा से दो सभासद और पूर्व चैयरमैन, सिकंद्राबाद से एक सभासद और एक पूर्व चैयरमैन प्रत्याशी, गुलावठी से 3 सभासद और पूर्व चैयरमैन प्रत्याशी, दादरी से एक सभासद और पूर्व सभासद, जेवर से दो पूर्व सभासद एवं पूर्व चैयरमैन,जहांगीरपुर से एक सभासद , रबूपुरा से एक पूर्व सभासद, ककोड़ सभासद और दनकौर से सभासद, बुलंदशहर से सभासद स्याना से सभासद बुगरासी से सभासद ने कार्यक्रम में शिरकत की।

वहीं कार्यक्रम में शिरकत करने वालों में रवि जिंदल, जिला उपाध्यक्ष भाजपा, मोनू गर्ग, जिला उपाध्यक्ष भाजयुमो, जगमोहन गर्ग, नवीन कुमार गुप्ता, डीके मित्तल , अंशुल अग्रवाल , विष्णू ऐरन,  उमेश तायल , रिषभ अग्रवाल, मुके मुकेश सिंघल, संभ्रान्त कृष्ण आदि उपस्थित रहे।


Tuesday 26 April 2022

डिजिटल अभियान से सशक्त हो रहे हैं श्रमिक

               डिजिटल अभियान से सशक्त हो रहे हैं श्रमिक

गोपाल कृष्ण अग्रवाल
राष्ट्रीय प्रवक्ता
भारतीय जनता पार्टी

भारत में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की स्थिति विकट है,जो महामारी के दौरान और बदतर हो गई। इस दौरान पलायन करने वाले मजदूरों की दुर्दशा सामने आई। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) 2018-19 के अनुसार, करीब 88 प्रतिशत कामगार इसी क्षेत्र से आते हैं,जबकि इस क्षेत्र का जीडीपी में योगदान 52 फीसदी है। इसके विपरीत संगठित क्षेत्र का जीडीपी में योगदान 48 फीसदी है, जबकि यह कुल कार्य शक्ति के बमुश्किल 12 प्रतिशत कामगारों को ही रोजगार देता है। साफ तौर पर यह घरेलू कार्य बल के बीच असमानता दर्शाता है। अभी तक इस संबंध में मजदूरों को समय पर राहत ही नहीं मिल पाती, सामाजिक सुरक्षा देने के विषय में तो भूल ही जाइए। समय-समय पर करवाए जाने वाले राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के सर्वे से भी इस संबंध में वास्तविक व सम्पूर्ण स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाती। इस दिशा में ई-श्रम पोर्टल उपयुक्त कदम है। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा बनाया गया ई-श्रम पोर्टल असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए डेटा बेस है,जो आधार से जुड़ा है। पोर्टल पर रजिस्टर करने के बाद असंगठित कामगारों को डिजिटल फॉर्म पर ई-श्रम कार्ड/आइडी मिलता है। वे पोर्टल या मोबाइल एप के माध्यम से अपनी प्रोफाइल को अपडेट भी कर सकते हैं। यह एप विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं और असंगठित क्षेत्र में कर्मचारियों की पात्रता संबंधी जागरूकता लाने का काम करता है।
ई-श्रम कार्ड का यूनिवर्सल अकाउंट नम्बर(यूएएन) देश भर में मान्य होगा। इसके आधार पर कार्डधारक को सामाजिक सुरक्षा, जैसे बीमा कवर, मातृत्व लाभ, पेंशन, शिक्षा, प्रोविडेंट फंड, आवास योजना आदि लाभ मिलेंगे। सामाजिक सुरक्षा लाभ पाने के लिए कर्मचारियों को अपनी पहचान संबंधी जानकारियां पोर्टल पर उपलब्ध करवानी होंगी, जैसे नाम, व्यवसाय, पता, शैक्षणिक योग्यता, कौशल आदि। साथ ही, ई-श्रम कार्ड के आधार पर प्रवासी मजदूर अपने बच्चों को निकटवर्ती स्कूल में प्रवेश दिलवा सकते हैं। यह उनकी मुख्य समस्याओं में से एक बड़ी समस्या है। ई-श्रम आइडी को वे पहचान पत्र के तौर पर इस्तेमाल कर सकेंगे। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाय) के अनुसार, लाभार्थियों की मृत्यु होने या स्थाई रूप से दिव्यांग होने की स्थिति में 2 लाख रुपए व आंशिक रूप से दिव्यांग होने पर 1 लाख रुपए की आर्थिक मदद का प्रावधान है।
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले सभी पात्र कर्मी ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्टर कर सकते हैं। इनमें शामिल हैं निर्माण क्षेत्र के मजदूर, प्रवासी मजदूर, गाड़ी व प्लैटफॉर्म मजदूर, ठेले-रेहड़ी वाले, घरेलू कर्मचारी, कृषि कर्मी, दूध वाले, मछुआरे, ट्रक चालक वगैरह। पात्र कर्मचारी चार लाख से भी अधिक साझा सेवा केंद्रों (सीएससीएस) के माध्यम से रजिस्टर कर सकते हैं। यह केंद्र डिजिटल सेवा अदायगी के केंद्र हैं। गत 30 दिसम्बर तक पोर्टल पर रजिस्टर करने वालों की संख्या 27 करोड़ पहुंच गई।
नीति निर्माण और उसके लक्षित क्रियान्वयन के लिए सही व प्रामाणिक क्षेत्रीय व संबंधी डेटा बहुत महत्त्वपूर्ण है। पोर्टल असंगठित क्षेत्र के कर्मियों के व्यवसाय के आधार पर भी उनका डेटा संग्रह करता है। जैसा कि हम जानते हैं भारतीय अर्थव्यवस्था तीन क्षेत्रों पर निर्भर है-कृषि (प्राथमिक), औद्योगिक (द्वितीय) और सेवा (तृतीय)। ई-श्रम पोर्टल के अनुसार, 52 फीसदी नामांकन प्राथमिक क्षेत्र में हुए हैं, जो बाकी क्षेत्रों से अधिक है। असंगठित क्षेत्र में सर्वाधिक मजदूर निर्माण व कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं। इसके अलावा पोर्टल पर रजिस्टर करने वाले अन्य मजदूर हैं-घरेलू नौकर, वस्त्र उद्योग कर्मी, ऑटोमोबाइल व परिवहन क्षेत्र, खुदरा एवं खाद्य उद्योग कर्मचारी। लैंगिक आधार पर देखा जाए, तो पोर्टल पर रजिस्टर करने वाली महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है। महिलाओं की यह संख्या 53 फीसदी है, बाकी 47 फीसदी पुरुष हैं। निश्चित रूप से महिलाओं का ज्यादा रजिस्ट्रेशन होना और श्रम शक्ति में उनकी कम भागीदारी आश्चर्यजनक है। पोर्टल के डेटा अनुसार, पंजीकृत मजदूरों में से 94 फीसदी की मासिक आय 10,000 रुपए या इससे कम है। इसके अलावा ज्यादातर मजदूर युवा हैं। करीब 61 फीसदी मजदूर 18 से 40 वर्ष वाले आयु वर्ग के हैं। पोर्टल पर मजदूरों का प्रवासी स्टेटस भी दर्ज है।
यह पोर्टल भारत की श्रम शक्ति को सशक्त बनाएगा। ई-श्रम पोर्टल सरकार के लिए अति आवश्यक था, क्योंकि यह सरकार को एक ही मंच पर असंगठित क्षेत्र के सारे कामगारों की जानकारियां उपलब्ध करवाएगा, ताकि वह उनकी चिंताओं का समाधान कर सके। असंगठित क्षेत्र के अंतिम छोर तक खड़े मजदूर को ई-श्रम पोर्टल का सही लाभ तभी मिलेगा, जब ज्यादा से ज्यादा श्रमिक इस पर स्वयं को रजिस्टर करेंगे।

Friday 8 April 2022

Smoking Can Cause Infertility Among Women, Premature Birth Say Doctors

 Smoking Can Cause Infertility Among Women, Premature Birth Say Doctors

By Gopal Krishna Agarwal

Smoking in women can cause infertility and premature baby birth, warn doctors as they called for stricter tobacco control policy to save over 1.3 million lives which meet untimely death due to consumption of the deadly product every year in India.

Dr. Uma Kumar, Professor and Head of the Department of Rheumatology, AIIMS New Delhi said that smoking habits among women are on the increase which is a matter of concern. It may result in infertility, cases of which are also rising these days. Also, smoking may lead to premature birth, she warned.

In fact, the doctor said, contrary to the general notion, tobacco consumption affects not only the lungs but many major parts of the body like teeth and bones are seriously damaged. Dr Kumar said that first-hand smoke and secondhand smoke both are equally harmful to health. Kumar was sharing her views at a webinar on the “Prevention of deaths caused by tobacco” organized by Tobacco Free India on the occasion of World Health Day observed recently.

Economist and BJP’s national spokesperson Gopal Krishna Agarwal while participating in the discussion too called for a stricter tobacco-control policy such as increasing the tax on such harmful products which, he said, would not only generate more revenue for the Government’s welfare schemes but also prove beneficial to those who use them by reducing the consumption of these products.
Along with this, the additional revenue earned therefrom could be utilized for the welfare and alternative employment of the poor and tribal who are engaged in tobacco-related business and are victims of exploitation. With this fund, tobacco-cessation centers could also be set up.

He further said that in the case of addictive products like tobacco, awareness among people is not enough, but in such cases, the pricing factor has a big impact. According to the principle of economics, if their price is increased through tax, then it will help in reducing consumption, which will also benefit those who use them. The existing taxes on tobacco products are not enough, he argued.

Agarwal also said that Prime Minister Narendra Modi has taken the resolution to make a healthy India, and in order to fulfill it, along with treatment, preventive measures are also very important. Twenty-eight percent of the adult population of the country is using tobacco products. As various tactics are being adopted by the producers of sin goods to lure students of the age group of 13 to 15 years, the Government has decided to make the tobacco-control laws more stringent.


Wednesday 6 April 2022

Not Just Lungs, Smoking Affects Every Cell Of Human Body

    Not Just Lungs, Smoking Affects Every Cell Of Human Body

By Gopal Krishna Agarwal,

Not just lungs but also every cells of human body and the hard organs like bones and teeth get adversely affected by smoking, said Professor Uma Kumar, Head of Rheumatology at All India Institute of Medical Sciences (AIIMS), New Delhi.

Kumar said that the first hand smoke and second hand smoke both are equally harmful for health. 

Expressing concerns on rising smoking habits among women, she said that it may result into infertility, cases of which is also rising these days. Also, smoking may lead to premature birth. 

People generally think that smoking affects lungs only, but the case is different, it affects every parts and is one of the important risk factors for growing numbers cases related to autoimmune diseases, Kumar said while speaking on the prevention of deaths caused by tobacco on the occasion of World Health Day. 

The event was organized by Tobacco Free India. 

Dr Vishal Rao of HCG, Bangalore said that the reason for the rapidly increasing cases of oral cancer in India is tobacco products. 

To save the lives of 13 lakh Indians annually, it is need of the hour that the strictness on tobacco products should be increased, said eminent economist and BJP's national spokesperson Gopal Krishna Agarwal. 


Friday 25 March 2022

Strong Regulatory Frame Work Needed for Efficient Water Management

 

Strong Regulatory Frame Work Needed for Efficient Water Management


By Gopal Krishan Agarwal:

A strong regulatory framework is needed to ensure efficient water management in India, Bhartiya Janata Party (BJP) National Spokesperson Gopal Krishna Agarwal has said. Addressing a virtual event organized by Consumer Unity and Trust Society (CUTS), Agarwal called for the implementation of National Water Framework regulations.

Agarwal, who has co-authored the book, ‘Water an Element of Life: Price Sensitivity and Consumption by the Marginalized’ said water should be provided as a public good to all sections of the society.

Pradeep S Mehta, Secretary General, CUTS, called for putting in place an integrated approach to deal with the issues related to water management.

“Local governments play an essential role in water management. But they are not properly empowered. There is a need to empower local institutions,” said Mehta.

“As a consumer, we have the right to water but we need to exercise this right while simultaneously ensuring our responsibility to manage and conserve water,” said Vipul Chatterjee, Executive Director, CUTS.

Mathew Cherian, Chair, CARE India, said traditional knowledge is essential to recharge water. “There is great pressure on groundwater across the country and states like Rajasthan may face severe stress in coming years.





Wednesday 23 March 2022

भारत में पीने योग्य पानी: मूल्य निर्धारण,सर्वमान्य उपलब्धता एवं भारतीय संविधान जीवन के अधिकार के रूप में जल

 जल संसाधनों के प्रबंधन, आपूर्ति और स्वामित्व में सरकार के लिए पानी के विषय में संवैधानिक अधिकारों को समझना बहुत महत्वपूर्ण है। वर्तमान में, जल का अधिकार भारत में न्यायालयों के विभिन्न निर्णयों के माध्यम से ही निर्धारित किया जा रहा है। कई अदालती मामलों में दोहराया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के रूप में सरकार द्धारा देश के सभी नागरिकों को पीने का पानी उपलब्ध कराया जाना चाहिए।  अब तक सरकार ने पानी के प्रबंधन और वितरण के लिए मार्गदर्शक निर्देशन के रूप में तीन राष्ट्रीयजल नीतियां बनाई हैं। 

जल का उपयोग सभी क्षेत्रों द्धारा किया जाता है, चाहे वह कृषि, उद्योग, वाणिज्यिक सेवाएं और आवासीय क्षेत्र हो। हालांकि ये  सभी क्षेत्र एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं, परन्तु  व्यक्तिगत और घरेलू उपयोग के लिए पानी की उपलब्धता एक मानव अधिकार है। प्रत्येक मनुष्य को पानी का अधिकार है, जो पर्याप्त, सुरक्षित, स्वीकार्य, भौतिक रूप से सुलभ और वहनीय हो। भारत के शहरों में पानी के लिए मानव अधिकार एक बढ़ती हुई चुनौती है, जो तेजी से शहरीकरण के साथ साथ, बुनियादी सेवाओं में  गुणवत्ता के लिए नागरिकों की अधीरता का कारण भी है। 2019 तक, केवल दो करोड़ घरों में पानी के लिए नल के कनेक्शन थे, यह संख्या बढ़कर लगभग नो करोड़ घरों में नल  के द्धारा पानी की उपलब्धता हो गई है। बेशक, किसी के घर में या उसके आस पास केवल नल से पानी का स्रोत होना अच्छी गुणवत्ता या पर्याप्त मात्रा में पानी की कोई गारंटी नहीं है, फिरभी हर घर जल की योजना अति  महत्वपूर्ण हे।    

जहां बुनियादी पहुंच ही नहीं है, वहां स्वच्छता का आश्वासन नहीं दिया जा सकता है। इसलिए पानी और स्वास्थ्य क्षेत्रों के लिए बुनियादी स्तर की पहुंच प्रदान करना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। पानी की आपूर्ति के लिए लोगों कोcgqrऔर प्रयास करना पड़ता है। घर से दूरी पर पानी का स्रोत, कपड़े धोने, नहाने आदि जैसी गतिविधियों को सुनिश्चित नहीं कर सकता है। पीने के पानी के लिए भी असमानता देखी जाती है इसलिए, सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभ के लिए, पानी की उपलब्धता और उसका विस्तार किया जाना आवश्यक है।

भारत में पानी एक भावनात्मक मुद्दा है। बढ़ती आबादी, vkS|ksxhdj.k और शहरीकरण के कारण  पानी की मांग लगातार बढ़ रही है जबकि पानी का उपलब्ध स्तर स्थिर बना हुआ है। विभिन्न उपभोगकर्ताओं, उपयोगों, क्षेत्रों और राज्यों के बीच संघर्ष नियमित चलता रहता है।

हालांकि भारत के संविधान में पानी के अधिकार को स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं किया गया है, लेकिन अदालतों द्धारा इसकी व्याख्या की गई है कि जीवन के अधिकार में संरक्षित और पर्याप्त पानी का अधिकार शामिल है। अधिकांश देशों के राष्ट्रीय कानून में पानी के अधिकार के स्पष्ट संदर्भ की कमी के कारण अदालतों के माध्यम से  ही इस अधिकार को समावेश करने  की आवश्यकता होती है। इसलिए कई देशों में पानी  के  विषय  को पर्यावरण या सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून के तहत लाया गया है। अदालतों ने अन्य संवैधानिक अधिकारों, जैसे जीवन के अधिकार या स्वस्थ पर्यावरण के तहत पानी के अधिकार की भी व्याख्या की है।

भारत में जल के अधिकार के लिए न्यायिक दृष्टिकोण, स्पष्ट रूप से सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों के पानी के अधिकार को आश्रय देने के आग्रह को दर्शाता है, जिससे गरीब से गरीब व्यक्ति को जीवन की बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जा सकें। स्वच्छ पेयजल तक पहुंच का संवैधानिक अधिकार भोजन के अधिकार, स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार और स्वास्थ्य के अधिकार से लिया जा सकता है, ये सभी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के अंतर्गत संरक्षित हैं। संविधान अनुच्छेद 21 के अलावा, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 39ब में  भी समुदाय के भौतिक संसाधनों पर समाज के सभी वर्गों के लिए समान पहुंच के सिद्धांत को मान्यता दी गई है।

भारत में भूजल के अधिकार को भूमि के अधिकार के पालन के रूप में देखा जाता है। भारतीय सुगमता अधिनियम, 1882, भूजल के स्वामित्व को भूमि के स्वामित्व से जोड़ता है और यह कानूनी स्थिति तब से ही बरकरार है। लेकिन अधिकार की परिभाषा बताती है कि यदि आपका पड़ोसी बहुत अधिक पानी निकालता है और जल स्तर को कम करता है, तो आपको उसे ऐसा करने से रोकने का अधिकार है। इस प्रकार, भूजल के दोहन के किसी व्यक्ति के अधिकार की भी सीमाएं हैं।

अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में, 28 जुलाई 2010 को संकल्प 64/292 के माध्यम से, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने स्पष्ट रूप से पानी और स्वच्छता प्रदान  करने के मानव अधिकार को मान्यता दी हे, और स्वीकार किया है कि स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता का अधिकार मानवाधिकारों की प्राप्ति के लिए आवश्यक हैं। यह संकल्प राज्यों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से सभी के लिए सुरक्षित, स्वच्छ, सुलभ और किफायती पेयजल और स्वच्छ जीवन  प्रदान करने के लिए देशों से, विशेष रूप से विकासशील देशों की मदद करने के लिए वित्तीय संसाधन, क्षमता निर्माण और izkS|ksfxdhहस्तांतरण प्रदान करने का आह्वान करता है। 

भारत में जल अधिकारों और कानूनों का दायराव्यापक हो गया है और भारतीय न्यायपालिका द्धारा एक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया गया है, जो अंतरराष्ट्रीय मानदंडों और मानकों को दर्शाता है। भारतीय संविधान की समीक्षा करने वाले राष्ट्रीय आयोग ने अपनी रिपोर्ट में संवैधानिक प्रावधान द्धारा स्पष्टता लाने के लिए सुरक्षित पेयजल के अधिकार के रूप में एक नए अधिकार को शामिल करने की सिफारिश भी की हे। राष्ट्रीय जल कानून 2016 सही दिशा में एक कदम था, लेकिन दुर्भाग्य से यह संसद में पास नहीं हो पाया। पानी के प्रावधान के लिए विभिन्न सरकारों और संस्थाओं के अधिकारों और कर्तव्यों को स्पष्ट रूप से रखने वाला एक कानून समय की आवश्यकता है।

पानी के मूल्य निर्धारण संरक्षण एवं केहाशिएवर्ग की खपत

भारत पानी की कमी वाला देश नहीं है। हमारे पास पानी की पर्याप्त उपलब्धता है। फिर भी, हमारे दैनिक जीवन में हम इस उपलब्धता को महसूस नहीं करते हैं। मुद्दा जल संसाधनों का अकुशल वितरण और प्रबंधन, विशेष रूप से शहरी जल प्रबंधन है।

पानी, जीवन के लिए आवश्यक होने के कारण, एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है और इसकी चुनौतियां और विभिन्न आयाम हैं, जैसे समान पहुंच, प्रतिस्पर्धी उपयोगए गुणवत्ता के मुद्दे, विकास के साथ विस्थापन, व्यावसायीकरण, निजीकरण, शहरीकरण और अंतर-राज्यीय संघर्ष। सरकार के पास इन मुद्दों के समाधान की बड़ी चुनौती है।

घरेलू पानी का उपयोग गरीब परिवार के जीवन यापन का एक अभिन्न अंग है। यह गरीबी उन्मूलन का महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। पानी और स्वास्थ्य सेवाओं को बुनियादी स्तर तक पहुंचाना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। सभी नीतिगत निर्णयों का लक्ष्य हैं की पर्याप्त स्तर पर जल संसाधन मिलने वाले घरों की संख्या मेंo`f)करना और हाशिए के वर्गों की खपत पर विशेष ध्यान केंद्रित करना।

पूर्ववर्ती सर्वे के अनुसार प्रति व्यक्ति घरेलू पानी की खपत और भारतीय मानक (BIS), 2001, दिल्ली मास्टर प्लान, केंद्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग और पर्यावरण संगठन, और जापान इंटरनेशनल द्धारा दिए गए अनुशंसित मानदंडों के बीच तुलनात्मक विश्लेषण में कम आय वाले क्षेत्रों में खपत की धूमिल तस्वीर दिखाई देती है।  

श्इंडिया-अर्बन स्लम सर्वे: (एनएसएस), 69 वें राउंड’ के अनुसार, अखिल भारतीय स्तर पर,  हालांकि स्लम क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों में पीने के पानी का स्रोत बढ़ा हुआ दिखता है, लेकिन दूसरी ओर, गैर-झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों के पीने के पानी के बेहतर स्रोत का प्रतिशत उस के अनुपात से काफी अधिक दिखता है। इससे पता चलता है कि समाज के आर्थिक रूप से निचले और ऊपरी तबके के बीच पानी की उपलब्धता और उपयोग में असमानता बढ़ रही है।

वर्तमान सरकार की जल जीवन मिशन योजना लगभग देश में सभी उन्नीस करोड़ घरों को नल के द्धारा पानी उपलब्ध कराने: हर घर ty) की महत्वपूर्ण पहल है और संविधान के अंतर्गत सरकार की प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना है। इसे हासिल करने से पहले हमें और भी बहुत कुछ कार्य करना होगा। पानी की गुणत्त्ता, उसका मूल्य और मात्रा सुनिस्चित करना होग।  

नीति स्तर पर प्रतिस्पर्धी विचारधाराएं और विभाजित विचार हैं, विशेष रूप से मूल्य निर्धारण और संरक्षण को लेकर  स्पष्टता नहीं है, हमें पानी के विषय पर गहन चर्चा और पारदर्शिता की आवश्यकता है। व्यक्तियों या घरों के व्यावहारिक उपभोग पर पानी के मूल्य निर्धारण के प्रभाव के संबंध में विविध विचार चल रहे हैं। पानी जैसे घरेलू उपभोग्य वस्तुओं  की कीमत के प्रभा पर कई अध्ययनों से पता चलता है कि उपभोग पूरी तरह मूल्य पर आधारित नहीं है। इस अंतर्निहित असमानता के बावजूद भी कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि कीमत एक अच्छा जल-मांग प्रबंधन उपकरण हो सकता है। आर्थिकfl)kar के आधार पर कीमतों मेंo`f) के साथ अधिकांश वस्तुओं की मांग की मात्रा कम हो जाती है, कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि कुशल जल प्रबंधन के लिए स्पष्ट मूल्य संकेतों की आवश्यकता होती है जो घरों में पानी के कुशल उपयोग के लिए प्रोत्साहन प्रदान करते हैं ओर परिणामस्वरूप पानी की  प्रतिस्पर्धी मांगो के बीचकुशल आवंटन भी होता है।

हम ये जानते हे की, कीमत के बारे में जागरूकता और घरों द्धारा पानी की कीमत में बदलाव के आधार पर उपभोग में बदलाव, मूल्य संवेदनशीलता को मापने के लिए एक संकेतक माना जाता हैए लेकिन हमारे वर्तमान अध्ययन में पाया गया है कि कम आय वाले लगभग 90 प्रतिशत घरों की खपत पानी के मूल्य बढ़ने से कम नहीं होगी, क्यूंकी मूल रूप से उन घरों में पानी के उपभोग का स्तर पहले से ही आवश्यकता के अनुपात में बहुत कम पाया गया है।

पानी पर खर्च की गई ब्यक्तिगत  आय कुल आय के अनुपात को एक और पैरामीटर माना जाता है। प्राथमिक आंकड़ों का उपयोग करते हुए हमारे अध्ययन की गणना के अनुसार पानी पर खर्च की गई मात्रा आय के अनुपात का 4.93 प्रतिसत ही है, जिसका अर्थ है कि घरों में पानी के उपभोग पर खर्च मात्रा उनके कुल आय के अनुपात  में बहत कम है।  इसलिए परिवारों में पानी का उपयोग पानी की कीमत पर कम आधारित हैं। और जैसे  जैसे हम निम्न आय वर्ग से उच्च आय वाले उपनिवेशों में जाते हैं, उनका पानी पर खर्च की जाने वाली आय का अनुपात ओर भी कम हो जाता ह। इसलिए निम्न आय वर्ग की कीमतों की संवेदनशीलता उच्च आय समूहों की तुलना में कहीं अधिक है। जिससे यह स्पष्ठ होता है की कीमतो का पानी की खपत पर प्रभाव हाशिए पर रहनेवाली वर्ग पर ही अधिक होगा।

निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि पानी की खपत की मांग अत्यधिक मूल्य-संवेदी नहीं है। मुख्य कारण यह है कि लोग पानी का उपयोग  एक आवश्यकता के रूप में देखते हैं, न कि एक विलासिता के रूप में। इसका तात्पर्य यह भी है कि कीमत बढ़ाने से घरेलू पानी की खपत में उल्लेखनीय कमी नहीं आ सकती है। घरेलू जल उपभोक्ताओं द्वारा भुगतान करने की सहमति के आधार पर अधिकांश साहित्य, पानी के बाजार मूल्य को उचित ठहराते हैं।  लेकिन इन अध्ययनों में एक महत्वपूर्ण पहलू नजरअंदाज किया गया है कि कमी की स्थिति में भुगतान करने की इच्छा हमेशा आवश्यकताओं के लिए बनी रहेगी। पानी जैसे आवश्यक तत्वों से संबंधित नीतियों को डिजाइन करने में सामर्थ्य को ही अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पानी का मूल्य निर्धारण एक महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय है। जिससे उच्च आय वर्ग की तुलना में गरीबवर्ग ही अधिक प्रभावित होंगे।  

घर में पानी की बर्बादी को कम करने का सबसे अच्छा तरीका है घर में पानी बचाने के उपायों के बारे में जागरूकता फैलाना। लापरवाही से पानी के उपयोग के परिणामों के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करने से लोगों को हम इस संसाधन का सही उपयोग करने में अधिक संवेदन शील होने में मदद मिलेगी। कुछ जल प्रबंधन के कुशल उपकरण जैसे कम प्रवाह वाले शावर और नल, दोहरी फ्लशिंग प्रणाली, कपड़े और बर्तन धोने के लिए पानी की बचत करने वाले उपकरण या पुनर्वास कॉलोनियों में सामूहिक नल आदि भी संरक्षण में बहुत मदद कर सकते है।

इस श्रृंखला में, हमने पानी के अधिकार, संरक्षण और समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों की खपत ओर पानी के मूल्य निर्धारण के प्रभाव को देखा। हमारी सरकार सभी के लिए पानी की उपलब्धता का प्रयास करती है और लागत वसूली के लिए मूल्य निर्धारण और इसके अत्यधिक उपयोग को रोकने में संतुलन बनाती है।

पानी जीवन कातत्व: हाशिए के वर्ग की मूल्य संवेदनशीलता और खपत

के लेखक 

गोपाल कृष्ण अग्रवाल (अध्यक्ष जलाधिकार फाउंडेशन और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता)

युथिका अग्रवाल (सहायक प्रोफेसर, अर्थशास्त्र, दिल्ली fo'ofo|ky;)