Wednesday 17 March 2021

कृषि सुधार कानूनों पर बढ़ती राजनीति

 2020-21 की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की है। लेकिन जीडीपी के कृषि क्षेत्र में पुनः वृद्धि 3.4 प्रतिशत की हुई है, जो अच्छे संकेत दे रहे है। कृषि और ग्रामीण क्षेत्र ने अर्थव्यवस्था के सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कोविड-19 समस्या के परिणामों और कठिनाइयों से निपटने के लिए, मोदी सरकार ने मई 2020 में 'आत्मनिर्भर भारत' पैकेज की घोषणा की थी। इन घोषणाओं के अनूरुप, केंद्र सरकार 5 जून 2020 को 3 अध्यादेशों को लाई थी। और अब ये संसद से पारित कानून बन गये है। कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020, कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य अश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 है।

ये कानून पूर्ववर्ती सरकार के किसानों के कल्याण के नाम पर गलत हस्तक्षेप को सीधा विराम लगाने के लिए है।

कृषि क्षेत्र में आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने के लिए, खुदरा वितरण, वेयरहाउसिंग, कोल्ड स्टोरेज और परिवहन आवाजाही आदि में बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है। यह बड़ा निवेश निजी क्षेत्र से ही आ सकता है। लेकिन जब तक हम भंडारण की सीमा नहीं हटाते है निजी निवेश नहीं होगा। भारतीय कृषि, कम उपज से प्रचुरता की ओर बढ़ रही है इसलिए वर्ष 1955 से लागू आवश्यक वस्तुओं के कानून पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

कृषि क्षेत्र के यह सुधार, व्यापक अर्थव्यवस्था के विकास के लिए वर्ष 1991 के समय के मूलभूत बदलावों के समान ही हैं। सभी प्रमुख अर्थशास्त्रियों और कृषि विशेषज्ञों द्वारा इसका स्वागत भी किया गया है। इन सभी सुधारों की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी। पिछले 20 वर्षो का इतिहास देखेगें तो पता चलेगा कि 'राज्य मंत्रियों की समितिद्वारा कृषि बाजार सुधारों को लागू करने के लिए कृषि विपणन प्रणाली वाली अपनी रिपोर्ट में इन सभी आवश्यकताओं पर जोर दिया गया था। कृषि पर संसदीय स्थाई समिति की बासठंवी रिपोर्ट में भी यही बात दोहराई गई थी। चूँकि ये रिपोर्ट राजनीतिक पक्षपात में नहीं फंसी थी, इसलिए इसे लगभग सभी राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त हुआ था।

अब कांग्रेस एवं कुछ अन्य राजनीतिक दल और उनसे जुड़े किसान और बिचौलियों से संबंधित संगठन अपने नुकसान को ध्यान में रख कर कोलाहल मचा रहे हैं और लगातार गलत सूचना एवं अफवाहें फैलाई जा रही है। यह बहुत ही दुखद है कि इस प्रकार किसानों के हित को अनदेखा करके कहां जा रहा हैं कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को खत्म कर देगी जबकि सरकार द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया है कि एमएसपी सिस्टम को हटाने का कोई सवाल ही नहीं है। इस वर्ष की एमएसपी की बढ़ी हुई खरीद की दरों का भी ऐलान कर दिया गया है। और खरीदारी भी शुरु हो गई हैं।

मंडी अधिनियम भारतीय संविधान के अंतर्गत राज्यों के दायरे में आते हैं और इसलिए केंद्र का इसमें एकतरफा संशोधन करने का कोई अधिकार ही नहीं है। केवल अंतर-राज्यीय कमोडिटी ट्रेड ही केन्द्र के अधीन आते हैं। इसलिए मौजूदा मंडी संरचना को समाप्त नहीं किया जा सकता है। अब कृषि उपज के लिए व्यापार और वाणिज्य की वैकल्पिक बाजार सुविधा प्रदान करने के लिए नए अधिनियम के साथ कई नई संभावना बन रही हैं। निजी बाजारों से प्रतिस्पर्धा के कारण मंडियां अब किसानों की उपज खरीद का एकाधिकार नहीं कर सकेंगी ।

शत प्रतिशत एमएसपी की खरीद के सवाल पर शांता कुमार की रिपोर्ट उठाकर देखेंगे तो पहले कुल उत्पादन का सिर्फ छह प्रतिशत फसल ही सरकार खरीदती थी। अब मोदी सरकार में सरकारी खरीद बढ़कर 15 प्रतिशत हो गई है। यानी कि मोदी सरकार किसानों के कल्याण के लिए बेहतर कर रही है। केंद्र सरकार सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है, जबकि राज्य सरकारें खरीद करती है।

जब नए कानून का एमएसपी से कोई संबंध नहीं है, तो फिर लिखकर देने की बात ही नहीं है। एमएसपी अलग विषय है, उस पर दूसरे स्तर से चर्चा हो सकती है। आज ke vakt में एपीएमसी की मोनोपाली (एकाधिकार) किसानों की सबसे बड़ी समस्या है। आढ़तिये लोकल मंडी में किसानों को फसल बेचने के लिए मजबूर करते हैं। क्योंकि उन्हें साढ़े आठ प्रतिशत कमीशन मिलता है। जबकि नए कानून से जहां लाभ मिलेगा, किसान वहीं फसल बेच सकेंगे।

जहां तक किसानों के अपनी जमीन को कॉरपोरेट के पास खोने की बात है। मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता कानून, 2020. कृषि उत्पाद के खरीद का समझौता है ना कि किसान की भूमि के बारे में समझौता है। इस कानून में किसानों के लिए उनकी भूमि पर कई सुरक्षा के नए उपाय भी है। उपज के नुकसान के मामले में किसानों को ही बीमा क्षतिपूर्ति का लाभ मिलेगा और उनकी भूमि पर उपयोग किए जाने वाले उपकरणों को उनके लिए ही संरक्षित किया गया है। कानून के अन्दर विवाद समाधान की प्रक्रिया को भी जिला स्तर पर जिला बोर्ड के माध्यम से निर्धारित किया गया है। किसानों को न्याय पाने के लिए एक अदालत से दूसरे अदालत में अब चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे।

2014 के बाद से जिम्मेदार विपक्ष का अभाव भारतीय राजनीति का एक हिस्सा बनता जा रहा है। यह सोच पूर्णतः गलत है, जब की कांग्रेस ने खुद सत्ता में रहते हुए इन नीतियों की पैरवी की थी। कांग्रेस पार्टी ने अपने 2014 और 2019 के चुनाव घोषणापत्र में तो एपीएमसी प्रणाली को खत्म करने का ही वादा किया था। इन उपायों का जनता से वादा भी किया था।

सभी तीन कानून कृषि बाजारों के सुधार के लिए ही हैं। नए और राष्ट्रीय बाजारों के विकल्प देना, बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए निजी निवेश को आकर्षित करना, बेहतर मूल्य के निर्धारण में मदद करना, सूचना प्रसार तंत्र स्थापित करना और किसानों को उनकी उपज के लिए उचित मूल्य आश्वासन प्रदान करना इनका लक्ष्य है।

प्रधानमंत्री श्री मोदी जी किसानों के हित के लिए दिन-रात प्रयासरत हैं, और सही सूचना जन-जन तक पहुंचाने के लिए भारतीय जनता पार्टी सतत कार्य कर रही है। किसी को भी यह दुविधा नहीं रहनी चाहिए कि हमारी सरकार के लिए किसानों का हित ही सर्वोपरि है।

 

गोपाल कृष्ण अग्रवाल

राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा आर्थिक मामलों

gopalagarwal@hotmail.com

पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों का सच

 आधिकारिक तौर पर पेट्रोल और डीजल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल से तय होती है। पेट्रोल की कीमत अंतरराष्ट्रीय और ग्लोबल वजहों से तो बढ़ती है, लेकिन इसमें कई कारण घरेलू भी होते हैं। पेट्रोल प्राइसेज और फेडरल स्ट्रक्चर को हमें समझने की जरूरत है।

जितनी भी हमारी पेट्रोल की आवश्यकता है उसका 85 फीसदी हम इंपोर्ट करते हैं। हमारे पूरे इंपोर्ट का 70 फीसदी बिल पेट्रोलियम पदार्थो के इंपोर्ट पर खर्च हो जाता है। भारत की पेट्रोलियम पदार्थो की खपत को लेकर स्थिति काफी सीमित है इसीलिए हमें अपनी उर्जा की खपत के लिए पेट्रोलियम स्रोतो के अलावा अन्य वैकल्पिक स्रोतो को भी अपनाना पड़ेगा।

वास्तव में प्रदेश सरकार और राज्य सरकार दोनों ही इस पर एक्साइज और वैट टैक्स लगाते हैं और इस टैक्स का कॉम्पोनेंट काफी ज्यादा है। जहां तक प्रदेश सरकारों की बात है, केंद्र सरकार राज्य सरकार को अपने टैक्स कलेक्शन का 42 फीसदी भाग सीधा ट्रांसफर करती हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार की जितनी भी जनकल्याणकारी योजनाएं हैं उसका पैसा भी केंद्र सरकार राज्य सरकारों को देती है। तो ऐसे में केंद्र सरकार के कलेक्शन का ज्यातर हिस्सा राज्य सरकारों को चला जाता है। इसलिए हमारा ऐसा मानना है कि राज्य सरकारों को अपना वैट कम करना चाहिए, जिससे तेल की कीमतों पर नियंत्रण किया जा सके।

अगर तेल की कीमतों पर नियंत्रण करना है तो इसका लॉन्ग टर्म सॉल्यूशन यही है कि इसे भी जीएसटी के अंदर ही लाया जाए। केन्द्र सरकार इसके लिए राज्य सरकारों से अग्रह भी किया है। केंद्र सरकार राज्य सरकारों को जीएसटी के अन्तर्गत भी पूरा कंपनसेशन दे रही है।

 

सबसे महत्वपूर्ण बात है कि रिन्यूएबल एनर्जी की तरफ सरकारों को ध्यान देना आवश्यक है। बीजली आपूर्ति के लिए जो डिसकॉम कम्पनियां है उनकी माली हालत भी काफी खराब है, हमारी सरकार ने उनकी हालत दुरुस्त करने के लिए बजट में काफी प्रावधान किए है। देश का बिजली डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क काफी पुराना और खस्ता हालत में पड़ा हुआ है। हम उसको मजबूत करने की तरफ भी कार्य कर रहे हैं। इसके अलावा बैटरी ऑपरेटेड गाड़ियां ज्यादा से ज्यादा सड़कों पर आए इस संबंध में एक दीर्घकालिक नीति बनानी होगी जिसपर भी पिछली सरकारो ने ध्यान नहीं किया।

पुरानी सरकारें तेल कंपनियों को सब्सिडी ऑईल बॉड के रुप में दे दिया करती थी, मोदी सरकार अब उसका भुगतान कर रही है। पिछली सरकारों ने पेट्रोल-डीजल को सब्सिडाइज किया, उस राशि को तेल कम्पनियों को भुगतान भी नहीं किया और बजट में उसका प्रावधान भी नहीं किया। अब वह हमारी सरकार को भुगतान करना पड़ रहा है। यह वजह भी है कि आज हम पेट्रोल प्राइस को लेकर बुरी स्थिति में फंसे हुए हैं। इन सारी चीजों को जनता को समझना पड़ेगा।

इसके अलावा कोविड-19 महामारी की वजह से भी इनकम टैक्स का कलेक्शन काफी कम हुआ है। कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत टैक्स लगभग 26 फीसदी घटा है, जबकि केंद्र सरकार ने प्रदेशो को फंड ट्रांसफर में कोई कमी नहीं की है और अपना वार्षिक खर्च भी कम नहीं किया है। केंद्र सरकार कोरोना वायरस से लड़ने के लिए आत्मनिर्भर भारत के अन्तर्गत कई नई जन कल्याणकारी योजनाएं लेकर आई है।

हेल्थ सेक्टर और आत्मनिर्भर भारत में काफी खर्च बढ़ाया गया है। यह टैक्स का कलेक्शन कम होने के बावजूद भी पूरा खर्च केन्द्र सरकार की तरफ से किया गया है।

केन्द्र सरकार के इस वर्ष के बजट में लगभग 14.5 प्रतिशत आय घटने के बावजूद अपने खर्च को, अर्थव्यवस्था की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए 34 प्रतिशत से बढाया है। इसके परिणाम स्वरुप ही हमारी अर्थव्यवस्था कोविड के बाद तेजी से पटरी पर आ रही है।

सरकार ने राजकोषीय घाटे को बढ़ाकर और ऋण आपूर्ति के द्वारा संसाधन जुटाने का मार्ग चुना है जिसे सभी के द्वारा सराहा गया है हालांकि सभी तरफ से यही सुझाव आ रहे थे कि डायरेक्ट टैक्स बढ़ाया जाए। तमाम चुनौतियों के बावजूद मोदी सरकार ने जनता पर कोई अतिरिक्त भार नहीं डाला है। समय की मांग थी कि सरकार अपने व्यय को बढाए और अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करें। सरकार ने हर तरह से अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने की कोशिश की है।

अगर आज हम देखें तो देश की अर्थव्यवस्था पुनः विकास पथ पर अग्रसर हो गई है। रिजर्व बैंक के रिपोर्ट हो या वित्त मंत्रालय की मासिक आर्थिक रिपोर्ट, सभी आर्थिक मोर्चे पर देश की मजबूत होती स्थिति को दर्शाती हैं। पर्चेज मैनेजर इंडेक्स भी उद्योगों की बढ़त ही दर्शा रहा है। इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन सूचकांक आठ क्षेत्रों में विकास की अच्छी दर दर्शा रहा है। जीएसटी का कर संग्रह पिछले तीनों महीनों में एक लाख करोड से ऊपर रहा है। इन से इतर आईएमएफ रिपोर्ट के अनुसार भी भारत की जीडीपी अगले वर्ष 11.5 प्रतिशत से बढ़ेगी और भारत विश्व की सबसे तीव्र गति से बढ़ने वाले अर्थव्यवस्था बना रहेगा।

पिछली सरकारो की गलत नीतियों को ठीक करने के लिए और वर्तमान में अर्थव्यवस्था की आवश्यकता को ध्यान में रखकर सरकार सभी महत्वपूर्ण निर्णय ले रही है। विश्व स्तर पर भी सरकार तेल उत्पादन को बढ़वाने के लिए प्रयास कर रही है।

गोपाल कृष्ण अग्रवाल

राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा आर्थिक मामलो

gopalagarwal@hotmail.com

Friday 12 March 2021

Reform 2.0 Labour Codes

 After Atma Nirbhar Bharat stimulus package our government has embarked on two major reforms in agriculture and labour laws. These policy reforms are market orientated, bringing efficiency, transparency and easy of compliances in both the segments.

There is hue and cry about agriculture reforms in certain sections. But little is being discussed about labour laws reform, which are to be notified in April 2021. As these are also very important, a larger debate is welcome at this juncture.

India had 67 percent of population in the working age (15-64 years) in 2019 according to the World Bank. This high ratio of working to non-working age population, gives us an opportunity to reap the demographic dividend, if we are able to gainfully employ this population. The window is small and closing fast because of falling fertility rates in India. If we as a country miss this opportunity, we will be old before we get rich. With this and the fact that employment is poverty alleviating in mind, Modi government is in overdrive to set an enabling environment.

Indian labour laws are considered complex and restrictive. One of its defining characteristics is job security of workers covered under it. Complexity also implies huge compliance burden for the companies. As a consequence of this, the labour to capital ratio is low despite the fact that India is a labour abundant and capital scarce country. Rigidities in the labour market have also ensured that the employment elasticity of Indian economy has remained low. Therefore GDP growth does not lead to commensurate employment generation.

Unemployment problem is challenging in India because it emerges from structural rigidities of our labour market. Therefore, amending and consolidating 29 central labour laws into four codes figured prominently on the agenda. The four codes cover, i. wages, ii. industrial relations, iii. occupational safety, health and working conditions  and iv. social security. The code on minimum wages was made into law in 2019 and the remaining three in September, 2020.

A disturbing feature of Indian labour sector is its very high degree of informality. 93 percent of India’s labour force works informally. About 80 percent of it works in the unorganised sector and the remaining is employed informally in the organized sector of the economy. Therefore a lot of focus in these codes has been to promote formal employment. The definition of ‘employees’ in the code on social security has been expanded to include workers employed through contractors, self employed migrant workers, additional categories of platform workers etc. It also provides for a registration of unorganised workers, gig workers and platform workers and says that the Central government will set up a social security fund for such workers. These provisions together with measures like making appointment letters compulsory and allowing business enterprises to hire workers directly on contract are aimed at reducing informality.

One of the most significant changes brought through the new industrial relations code is the introduction of fixed term contracts. The first time fixed term contracts were introduced was in 2016 but it was only for the apparel industry. Though in 2018 it was allowed for other industries as well, the effect was limited because this new form of employment was introduced through changes in rules made under the Standing Orders Act which applies only to industrial establishments with 100 or more workers. In the absence of such an enabling provision, companies were forced to hire workers informally. Thus, this change is expected to boost employment in industries that experience seasonality in production. Workers will be eligible for all statutory benefits available to a permanent worker proportionately, according to the period of service rendered by them and the minimum qualifying period would not apply to them.

Focus of the current codes on self certification, reduced compliance and simplification will lead to a lower cost of doing business. Closure, lay-offs and retrenchment in factories employing up to 300 workers would now not need prior approval of the concerned Government. This, coupled with the fact that even the Standing Orders has been made applicable to establishments with over 300 workers means that smaller companies would not be hobbled by regulatory cholesterol. Not only this, the code on occupational safety, health and working conditions has increased the threshold of its applicability to 20 workers  where the manufacturing process is carried out using power and 40 workers without using power. Government rightly believes that when enterprises grow up to a certain size only then they would be in a position to bear higher compliance burden. The biggest beneficiary of the new codes would be the Micro, Small and Medium Enterprise (MSME) Sector. This sector produces 40 percent of India’s GDP and employs a higher number of people per unit of invested capital.

With other supportive measures like production linked incentives, globally competitive corporate tax rate and balanced free trade agreements, we can safely say that the Central government has almost solved the jigsaw puzzle that Indian manufacturing sector had become and with the coming Budget 2021 and the years that follow, would see exponential growth in manufacturing and employment.

Economic reforms require expending political capital by the governments, as the benefits of reforms are spread thin and apparent only with a time lag and seemingly adverse impact on certain stakeholder are felt immediately. Therefore, India has not seen many major reforms since 1991 and even then important areas like land, labour and agriculture were left out of agenda. The biggest take away from these codes and the recent reforms in the agricultural sector, is a confirmation that a reformist government is at the helm of affairs that will get Indian economy rid of its socialist vestiges. That, for me, is a very reassuring feeling.

Gopal Krishna Agarwal

National Spokesperson Of BJP

9810019753

gopalagarwal@hotmail.com

बजट – 2021 – नए भारत का आधार

 यह बजट असाधारण परिस्थितियों में पेश किया गया है जब देश कोरोना संक्रमण के दौर से जूझ कर हर क्षेत्र में विकास के लिए आगे बढ़ने के लिए तैयार है। यह सभी वर्गों खास कर युवाओं, बुजुर्गों, महिलाओं, संगठित एवं असंगठित क्षेत्र के मजदूरों और छोटे बड़े उद्यमियों की आशाओं व आकांक्षाओं को पूरा करने वाला बजट है।

कौरोना की त्रासदी से हम सभी के ध्यान में आया कि स्वास्थ्य एवं आर्थिक विकास ऐसे दो क्षेत्र का देश के विकास में महत्वपूर्ण स्थान है। सरकार की पहली प्राथमिकता में जनजीवन के स्वास्थ पर ध्यान देना था जिसके फलस्वरुप आज हम कौरोना की मार से काफी हद तक निकलने की स्थिति में आ गए हैं। सरकार ने इसकी भी चिंता की है कि गरीब, ग्रामीण लोगों तक लाभ धनराशि के रूप में सीधे पहुंचे। आत्मनिर्भर भारत योजना ने इस कार्य को तीव्रता से आगे बढ़ाया। अगला कदम था जो कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था को धक्का लगा उसे दुरुस्त करना। मोदी जी ने अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने का काम किया और आज अगर हम देखें तो देश की अर्थव्यवस्था पूनः विकास पथ पर अग्रसर हो गई है। रिसर्व बैंक की रिपोर्ट हो या वित्त मंत्रालय की मासिक आर्थिक रिपोर्ट सभी देश की आर्थिक पहलुओं की मजबूत स्थिति दर्शाती है। परचेस मैनेजर इंडेक्स भी उद्योगों की बढ़त ही दर्शाता है। इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन सूचकांक भी आठ क्षेत्र में विकास की अच्छी दर दर्शा रहा है। जीएसटी का कर संग्रह पिछले तीनों माह में एक लाख करोड से ऊपर रहा है। इन से इतर आईएमएफ रिपोर्ट के अनुसार भी भारत की सकल घरेलु अर्थव्यवस्था अगले वर्ष 11.5 प्रतिशत से बढ़ेगी और भारत विश्व की सबसे तीव्र गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा।

इस बजट में इस मजबूत आर्थिक आधार को और समर्थन देने की आवश्यकता थी जिसको वित्त मंत्री जी ने बखूबी निभाया है।

यह छः स्तंभो को रेखांकित करने वाला नए दशक का बुनियादी दृष्टि -पत्र है। कोविड संक्रमण की विषम परिस्थिति में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने भारत की क्षमता को पहचानते हुए आत्मनिर्भर भारत का संकल्प देश के सामने रखा। यह बजट आत्मनिर्भरता के उसी संकल्प को सिद्ध करने की कड़ी है।

ऐसे सर्वस्पर्शी, सर्व-समावेशी एवं देश के सर्वांगीण विकास के प्रति समर्पित बजट 2021-22 में में स्वास्थ और कल्याण, वित्तीय पूंजी, समावेशी विकास, मानव पूंजी का विकास, अनुसंधान एवं विकास और न्यूनतम सरकार और अधिकतर शासन पर विशेष ध्यान दिया गया है।

इस बजट के मूल्यांकन में इसकी मूल भावना को समझना जरुरी है। महीनों तक लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों के रुकने की चुनौती के बावजूद आगे बढ़ने की इच्छाशक्ति वाले सशक्त भारत की यह तस्वीर प्रस्तुत करता है। और इस बजट में मजबूत भारत की आकांक्षा रखने वाली संकल्पशक्ति भी नजर आती है। हम सब जानते है कि दूरदर्शी और संकल्पवान नेतृत्व ही आपदा को अवसर में बदल सकता है।

इस बजट में ढ़ाचागत सुधारों पर विशेष जोर दिया गया है। पिछले बजट में कैपिटल एक्सपेंडिचर के लिए 4.21 लाख करोड़ रुपए दिए गए थे जबकि इस वर्ष 5.54 लाखों रुपए खर्च किए जाने का प्रावधान किया गया है जो कि पिछले बजट से 34 फ़ीसदी अधिक है। व्यापक रूप से अचल संपत्ति जैसे सड़क मार्ग, रेल, हवाई अड्डा, पुल आदि के निर्माण में खर्च धनराशि से व्यापार में सुविधा एवं दैनिक जीवन यापन में सहूलियत होती है। इस बढे हुए खर्च से अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ेगी स्टील, सीमेंट, कंसट्रक्शन का सामान सभी क्षेत्र में तेजी आएगी और उद्योग एवं नौकरियों का सृजन भी होगा।

7 मेगा टैक्सटाइल पार्क बनाने की घोषणा की गई है जो देश में रोजगार सृजन में बहुत बड़ी भूमिका निभाएगा। स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार को भी आगे बढ़ाया गया है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार ने अपने खर्च को 137 प्रतिशत बढ़ाया है। आज कोरोना की दो वैक्सीन भारत में बनी है। भारत वैक्सीन एवं दवाइयों के क्षेत्र में एक विश्व शक्ति बनकर आने वाले समय में उभरेगा। इसका इस बजट में पूरा ख्याल रखा गया है।  

शिक्षा एवं रिसर्च पर विशेष ध्यान दिया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में मोदी सरकार ने कई कदम उठाए हैं। 100 से ज्यादा सैनिक स्कूलों और हायर एजुकेशन काउंसिल (HECI) का गठन तथा 15,000 स्कूलों को आदर्श स्कूल बनाए जाने का प्रस्ताव स्कूली शिक्षा को मजबूत करेगा। रिसर्च के लिए भी 50,000 करोड़ रुपए अलग से रखे गए हैं। आदिवासी इलाकों में 38,000 करोड़ रुपए की लागत से 750 एकलव्य स्कूल खोले जाने का प्रयास भी काफी उत्तम है। शिक्षा की दृष्टि से यह काफी सराहनीय कदम है।

किसानों की आय दोगुना हो, उसकी उपज का उन्हें सही मूल्य मिले, उन्हें अपनी फसल बेचने में कठिनाई न हो, किसानों की मेहनत आढ़तियों तथा बिचौलियों की भेंट न चढ़े, इसको लेकर सरकार लगातार सुधारवादी कदम उठा रही है। फसलों पर एमएसपी बढ़ाकर उसे उत्पादन लागत का डेढ़ गुना किया गया है। साथ ही मोदी सरकार ने कांग्रेस की यूपीए सरकार से करीब 3 गुना अधिक राशि देश के किसानों के खाते में अब तक पहुंचा दी है।

मोदी सरकार जन-जन तक स्वच्छ पीने का पानी पहुंचाने के लिए कटिबद्ध है। स्वच्छ जल के लिए देशभर में अगले 5 वर्षों में 2.87 लाख करो रुपए का प्रवधान किया गया है। शहरी इलाकों के लिए भी जल जीवन मिशन शुरू किया जाना एक अच्छा कदम है।

1938 से चले आ रहे इंश्योरेंस एक्ट में बदलाव किया गया है। इंश्योरेंस सेक्टर में एफडीआई की नीति में बदलाव लाया गया है। इसकी चर्चा बहुत दिनों से चली आ रही थी, लेकिन यह परिवर्तन माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने किया है। वीनिवेश की नीति पर स्पष्ट पॉलिसी लाकर सरकार धनार्जन प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त कर रही है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजिकरण के द्वारा सरकार का प्रयास है कि जिन क्षेत्रों में सरकार का कोई विशेष औचित्य नहीं है उन्हें विनिवेश करना उचित होगा। सरकार ने राजकोषिय घाटे को बढ़ाकर और ऋण आपूर्ति के द्वारा संसाधनों को जुटाने का मार्ग चुना है जिसे सभी के द्वारा सराहा गया है। जबकी सभी तरफ से यही सुझाव आ रहे थे की डायरेक्ट टैक्स बढाया जा सकता है लेकिन अनेक चुनौतियों के बावजूद मोदी सरकार ने जनता पर किसी प्रकार का कोई अतिरिक्त भार नहीं डाला है। समय की मांग थी कि सरकार अपने व्यय को बढ़ाए और अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करें ।

सरकार ने हर तरह से अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त किया है। सभी लोगों ने मुक्त हृदय से स्वागत किया है।  

 

गोपाल कृष्ण अग्रवाल

राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा आर्थिक मामलों

gopalagarwal@hotmail.com