Friday 10 November 2023

Dark side of election time welfare Promises

           Dark side of election time welfare Promises

The Narendra Modi government has been in office for about 10 years now. It has its share of hits and misses. If the Opposition was sincere and serious, it should have attacked the government for misses, though few and far between, and presented an alternative agenda to the public. Unfortunately, the Opposition has failed to come up with any positive alternative agenda. Instead, with elections on for five state assemblies, the opposition parties are making all sorts of promises in their manifestos.

Most of these poll promises (freebles) can't be fulfilled. These parties, probably, have no intention to fulfil them there are no provisions in the state budgets or off budget borrowings to fulfil these promises State finances are mostly in the doldrums. The federal structure in India has no provision for bankruptcy of a state, otherwise states such as Punjab and Rajasthan, reeling under heavy debt, may face bankruptcy. They are a big drag on India's fiscal consolidation roadmap. These election promises can be classified into four categories. One category would consist of such promises that the parties making them have no intention of fulfilment. Such promises could range from giving gold chains to women or the promise of blanket loan waivers to farmers.

The second would be those that need the diversion of precious public resources from productive developmental expenditure to wasteful expenditure. The Congress led government in Karnataka is diverting funds to the tune of 40,000 crore from developmental projects for poll promises. The deputy chief minister of that state is on record saying that the state will have no funds for development expenditure because the funds will go to fulfil poll promises. The extravagant promises by the Congress government in Rajasthan and the BRS government in Telangana, should these parties come back to form the government, will ensure that there would be no money left for capital expenditure.

 The third category of promise entails the creation of future liabilities for the public but hiding them from the public through financial jugglery. Delhi is a classic case where under-recovery on the supply of electricity is leading to the creation of regulatory assets Electricity distribution in the city was privatised long back. These private companies are not able to recover costs including a fixed rate of return on capital employed.  This under recovered amount constitutes "regulatory assets in the balance sheets of these private distribution companies. The total figure for FY 2021-22 for the three private power distribution companies comes to 18.578 crore. If we conservatively assume the carrying cost for this amount to be 8% per annum, the annual interest payable to the distribution companies would come to around 1,486 crore. This interest burden will be payable by the electricity consumers of Delhi in the future. During 2004 14,  the United Progressive Alliance government issued oil bonds to the oil marketing companies to the tune of 1.25 lakh crore.  Similarly, there was off bud get borrowing to the tune of 2 lakh crore by the Food Corporation of India These amounts were paid by the Modi government.

The fourth category of promises is a reversal of the measures of economic reform.  Reversion to the Old Pension System (OPS) is non -Bhartiya Janata Party (BJP) ruled states is a prime example of this. The New Pension Scheme (NPS) was a major economic reform of the Atal Bihari Vajpayee led National Democratic Alliance government and had moved the pension liability of the government from being unfunded to fully funded. The benefits of this far-sighted reform were to become evident a few decades down the line. However one state government after the other is jettisoning this together a few extra votes from government employees.

The BJP is working relentlessly to provide fiscally prudent and responsible social welfare schemes and expose the false promises of the Opposition. We believe in empowerment. not entitlement, and the difference is evident in sound current macroeconomic fundamentals like Gross Domestic Product growth, fiscal deficit, inflation and foreign exchange reserves.

 The point is fiscal resources should be utilised in a targeted way with provisioning in the budget, as government need to spend or diverse areas with fiscal prudence.

 Gopal Krishna Agarwal is the national spokesperson of the BIP for economic affairs.

Friday 6 October 2023

जी-20 के सफलतापूर्वक आयोजन से दिखी भारत की नेतृत्व क्षमता

       जी-20 के सफलतापूर्वक आयोजन से दिखी भारत की नेतृत्व क्षमता



यदि मजबूत इरादे को लेकर नेतृत्व को लेकर नेतृत्व किया जाए तो कुछ भी असंभव नहीं

हमारा यह दृढ़ विश्वास है कि जब भी और जहां भी उचित हो, श्रेय मिलना ही चाहिए। जी-20 का सफलतापूर्वक आयोजन व दिल्ली घोषणापत्र पर सर्वसम्मति का वैश्विक प्रभाव, भारत की वर्तमान एवं भविष्य की नेतृत्व के लिए भूमिकाओं के रूप में देख सकते है। चंद्रयान-3 की सफलता ने पहले ही भारत की प्रतिष्ठा में चार चांद लगाकर भारत को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में अग्रणी देश के रूप में प्रस्तुत किया है। हाल में हुई दोनों ही घटनाएं, यह प्रदर्शित करती है कि यदि नेतृत्व में दूरदर्शिता, प्रतिबद्धता व इच्छा शक्ति हो तो बड़ी- बड़ी चीजों को भी हासिल किया जा सकता है।

बचपन में हम पढ़ते थे कि भारत एक अमीर देश है, जहां गरीब रहते हैं इससे हमें यह पता चलता है कि तत्कालीन नेतृत्व किस प्रकार भारतीयों की वास्तविक क्षमताओं को उभारने में नाकाम हुआ था। मोदी के सत्ता में आते ही यह परिदृश्य पूरी तरह से परिवर्तित हुआ है। हमें कई बार महसूस हुआ कि प्रधानमंत्री की कुछ पहल बहुत महत्वाकांक्षी एवं असंभव सी है। तत्पश्चात हमने देखा की यदि मजबूत इरादे को लेकर नेतृत्व किया जाए तो कुछ भी असंभव नहीं है। हम देखते है की हर समय विपक्ष का रवैया आलोचनात्मक व नई पहलों के लिए रुकावट करने वाला रहा हैं, ऐसे में सभी उद्देश्य पूर्ति कोई छोटी उपलब्धियां नहीं हैं। कोविड संकट से निपटना तय समय में सफलतापूर्वक घरेलू वैक्सीन तैयार करना और 230 करोड़ लोगो तक वैक्सीन पहुचाना एक सुचारू प्रशासनिक दक्षता का ही प्रमाण है। कोविड के बाद आर्थिक विकास, आर्थिक सुधार को सटीक समय पर लागू करना, राजकोषीय प्रोत्साहन व महंगाई का सफल प्रबंधन, सरकार की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ है। कोविड के बाद विश्व के अमेरिका, यूरोप और चीन जैसे राष्ट्र भी आर्थिक संकट से जूझ हैं जबकि भारत इससे अलग तीव्र गति से आर्थिक विकास पर अग्रसर है। भारत द्वारा डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (यूपीआई) का विकास, जिसका गुणगान आज दुनिया कर रही है, आधुनिक मानव इतिहास में अद्वितीय साबित हो रहा है।

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट कहती है कि भारत के वित्तीय समावेशन कार्यक्रम ने 47 साल के काम को मात्र 6 साल में पूरा कर दिखाया है। दिल्ली घोषणापत्र में जी-20 देशों द्वारा यूपीआई को अपनाना इस बात की ओर संकेत करते हैं कि वसुधैव कुटुंबकम (विश्व एक परिवार है) और आनो भद्राः क्रतवो: यंतु विश्वतः (हर दिशा से नेक विचार हमारे पास आएं) की हमारी प्राचीन अवधारणा मात्र दार्शनिक कथन नहीं हैं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी ने इन्हें अपनी इच्छाशक्ति और दूरदर्शिता से ज़मीन पर लागू करके दिखाया है। विकासशील देशों को वैक्सीन मैत्री कार्यक्रम के तहत मुफ्त टीके उपलब्ध करवाना हो या वैक्सीन पर आईपीआर प्रतिबंधों को दूर करना, प्रधानमंत्री जी का हर एक कदम सराहनीय रहा है। अब जी-20 के माध्यम से भारत अपने डिजिटल इन्फास्ट्रक्चर मॉडल को विश्व के लिए पब्लिक गुड के रूप में प्रस्तुत कर रहा है । इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि किसी वित्तीय कार्यक्रम को आईटी दिग्गजों के व्यक्तिगत लाभ व व्यवसाय के लिए नहीं बल्कि सबकी भलाई के लिए सार्वजानिक रूप से पेश किया जा रहा है। यह एक महत्वपूर्ण भारतीय उपलब्धी है जो कि वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व के लिए प्रस्तुत किया गया है। मेरे लिए यह न सिर्फ प्रधानमंत्री का जन कल्याण कार्यक्रम है जो एक राष्ट्र, एक परिवार, एक भविष्यका संदेश देता है बल्कि यह कार्यक्रम हमारा ध्यान इसलिए भी आकर्षित कर रहा है क्योंकि यह भारतीय नेतृत्व को वैश्विक पहचान देने का एक जरिया है। घरेलू कनेक्टिविटी वाला बुनियादी ढांचे के निर्माण में निवेश हो या अभी जी-20 समूह के अंतर्गत भारत- मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारे की घोषणा यह भारत में निवेश की सम्भावनाओं को तो बढ़ा रहा है और हमारी व्यापर एवं रणनीतिक सुरक्षा की आवश्यकतों को भी मजबूत करेगा। यह आर्थिक गलियारा न सिर्फ प्रधानमंत्री की दूरदृष्टि और मेहनत का परिचायक है बल्कि स्वेज कैनल व बंदरगाहों के माध्यम से व्यापार मार्ग को सुरक्षित करने के लिए इजरायल और ग्रीस जैसे यूरोपिय देशों से वार्तालाप करने की उनकी सूझबूझ का भी परिचायक है।

भारत मध्य पूर्व यूरोप गलियारा, चीन के बीआरआई का जवाब है। बीआरआई के तहत एक के बाद एक देश जैसे पाकिस्तान, श्रीलंका व केन्या कर्ज के बोझ तले दबे जा रहे हैं । अब भारत दक्षिण एशियाई देशों की मजबूत आवाज भी बन रहा है और अफ्रीकी देशों के विकास और एकीकरण के स्वर को बुलंद कर रहा है।


गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

राष्ट्रीय प्रवक्ता भाजपा


Wednesday 4 October 2023

वैश्विक आर्थिक विकास का इंजन बन रहा भारत

 

       वैश्विक आर्थिक विकास का इंजन बन रहा भारत


अभी हाल में मोदी जी की सफल अमेरिका एवं इजिप्ट की दो देशीय यात्रा सपन्न हुई। जिस तरह का सम्मान प्रधानमंत्री जी को मिला यह हमारे देशवासियों के लिए बहुत गर्व का विषय है एलन मस्क सुंदर पिचाई ने कहा कि मोदी जी का डिजिटल इंडिया विजन अपने समय से बहुत आगे का है। रे डेलिओ ने भारत में निवेश का आश्वासन दिया है।

नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था ने नई ऊँचाइयों को छुआ है। आज भारत देश वैश्विक आर्थिक विकास का इंजन बन गया है। यह पूरे देश के लिए बेहद ही हर्ष का विषय है कि भारतीय सकल घरेलू उत्पाद ५ ट्रिलियन अमरीकी डालर की ओर तीव्र गति से बढ़ रहा है। मोदी जी के नेतृत्व में न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर कर रही है. बल्कि यह लगातार दो वर्षों से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन चुकी है और आने वाले वर्ष में भी ऐसा ही रहने की उम्मीद है। भारतीय अर्थव्यवस्था में आए इस सकारात्मक परिवर्तन ने देश में भी ऊर्जा का संचार किया है।

अर्थव्यवस्था पर झूठे आंकड़े प्रस्तुत करने वाले और कयामत की भविष्यवाणी करने वाले अर्थशास्त्री और कुछ राजनेता लगातार जनता की नजरो में गिर रहे हैं। मोदी सरकार के प्रयत्नों का फल सामने आना ही था। २०१४ में सत्ता में आने के वक्त हमारी अर्थव्यवस्था द्विन बेलेंस शीट की समस्या का सामना कर रही थी. बैंक बेहद कमजोर थे और कॉर्पोरेट क्षेत्र अत्यधिक कर्जदार था और कर्ज चुकाने की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं था। मोदी सरकार की कई सुधारक पहलों के कारण बैंकिंग और कॉर्पोरेट क्षेत्र मजबूत हुआ है। बैंकिंग क्षेत्र में सुधार जैसे एनपीए का समाधान, आईबीसी, नई पूंजी निवेश इसके प्रमुख स्तंभ में हैं। मोदी सरकार के दूर दृष्टिकोण से सक्षम मैक्रोइकॉनॉमिक प्रबंधन पर लगातार जोर देती रही है। आज मुद्रास्फीति नियंत्रण में है, अर्थव्यवस्था मंदी से बाहर हैं और राजकोषीय घटा नियंत्रित और अनुमानित पथ पर है। सफल आर्थिक प्रबंधन का प्रमाण यह है कि भारत आर्थिक मोर्चे पर मजबूती से आगे बढ़ रहा है जबकि हमारे पड़ोसी देश जैसे श्रीलंका कर्ज चुकाने में असफल हैं. बांग्लादेश आईएमएफ से मदद मांग रहा है और पाकिस्तान बर्बादी के कगार पर है।

सरकार वित्तीय संस्थानों, विशेषकर आरबीआई और वित्त मंत्रालय के साथ टीम भावना से काम कर रही है। किसी संस्था की स्वतंत्रता की परीक्षा सरकार के साथ विरोधात्मक संबंध नहीं है बल्कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने के लिए मिलकर काम करना है। आरबीआई और अन्य मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदमों और राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज (PLI) एवं आत्मनिर्भर भारत पैकेज जैसे दूरगामी परिणाम वाले कदमों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को कोविड के बाद उबरने और महंगाई. मंदी और राजकोषीय घाटे का प्रबंधन करने में मदद की है। मोदी सरकार के कार्यकाल में आर्थिक और नीतिगत सुधारों के कारण जैसे जीएसटी. ई मूल्यांकन, डीबीटी, वित्तीय समावेशन, आईबीसी, पीएलआई. फिनटेक, यूपीआई डिजिटल इंडिया. ऑडिट ट्रेल की महत्वपूर्ण पहल सामने आई हैं।

मोदी सरकार के प्रयासों का ही यह परिणाम है कि आज सम्पूर्ण विश्व में भारतीय अर्थव्यवस्था के दर्द है। वर्तमान में भारत में मुद्रास्फीति की बात करें तो २०१४ में यह दोहरे अंक से अब ५% से कम पर आ गया है। खुदरा मुद्रास्फीति दर ४. २३% पर एवं खाद्य मुद्रास्फीति दर मात्र २.९१% पर हैं। यह एक दिन का प्रयास नहीं है। मोदी सरकार पिछले नौ वर्षों से इस पर काम कर रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में विपरीत परिस्थितियों के बावजूद आकड़ो के अनुसार भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की विकास दर ७.२% है और Q4 सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर ६.१% YOY है। PMI सूचकांक की यदि बात की जाए तो मई महीने २०२३ के दौरान भारतीय विनिर्माण क्षेत्र का पीएमआई ५८ ७ पर पहुंच गया। यह अक्टूबर २०२० के बाद विनिर्माण क्षेत्र की सबसे जबरदस्त तेजी है। यह बताता है कि २०२३ के मई महीने के दौरान भारत में कारखानों का आउटपुट करीब ढाई साल में सबसे बेहतर रहा है। ऐसे ही PMI सर्विस सेक्टर के डाटा में बताया गया कि अप्रैल में पीएमआई ६२.० पर पहुंच गया है जो कि मार्च में ५७.८ था। २०१० के बाद पिछले १३ सालों में अब तक दर्ज की गई ये सबसे अधिक बढ़ोतरी है। यह लगातार २१वां महीना है. जब सर्विस सेक्टर के डाटा में उछाल देखने को मिला है। जो निरंतर हो रहे औद्योगिक विकास को दर्शाता है।

आरबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार औसत जीएसटी दर अब ११.६% के कम स्तर पर होने के वजूद अप्रैल महीने में जीएसटी संग्रह १.८७ लाख करोड़ रुपये रहा। इसका सीधा अर्थ है कि आर्थिक विकास का हमारा लक्ष्य सार्थक हुआ है। मोदी सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स में कमी और व्यक्तिगत कर में छूट की है उसके बावजूद वर्ष २०२२-२३ में प्रत्यक्ष कर में १६६८ लाख करोड़ रुपये का हुआ जो पिछले वर्ष के अनुपात में १७.६३% अधिक है। इसका ही प्रतिफल है कि आर्थिक मंदी से देश सुरक्षित रहा है। करों में छूट देने से देशवासियों का भार कम हुआ है और करदाता और सरकार की जिम्मेदारी से करो के संग्रह में वृद्धि हुई।

इन्फा डेवलपमेंट खर्च में ३३% की भारी-भरकम वृद्धि हुई है। यह कुल जीडीपी का ३३ प्रतिशत है। सरकार ने लगातार तीसरे साल इस क्षेत्र में पूंजीगत निवेश में बड़ी बढ़ोतरी की है। इस क्षेत्र को मोदी सरकार कितना अधिक महत्व दे रही है. इसका प्रमाण यह है कि २०१९-२० में किए गए कुल खर्च के मुकाबले पिछले दिनों माननीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी ने इसपर लगभग तीन गुना खर्च का वादा किया है। इन्फ्रा पर यह खर्च सरकार के इस दृष्टिकोण का प्रमाण है कि मोदी सरकार निरंतर मंदी जैसी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है और भविष्य में बड़े पैमाने पर इससे रोजगार सृजन भी होंगे ही।

आंकड़ों पर यदि हम ध्यान दें तो यह पूरी तरह से मजबूत अर्थव्यवस्था की ओर इशारा कर रहे हैं। वर्ष २१-२२ में एफडीआई ८४.८ बिलियन अमेरिकी डालर रहा है। सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में एफडीआई के मामले में भारत ने बड़ी छलांग लगाई है और यहां यह सिर्फ अमेरिका से पीछे है। अमेरिका की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में ३३.८ बिलियन डॉलर एफडीआई के मुकाबले भारत को २६.२ बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मिला है। वहीं चीन की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में एफडीआई गिरकर महज ०.५  बिलियन डॉलर रह गया है।

 

२०२२-२३ के दौरान देश का निर्यात लगभग ६ प्रतिशत बढ़कर रिकॉर्ड ४४७ बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। देश का आयात भी २०२२-२३ में १६.५ प्रतिशत बढ़कर ७१४ बिलियन अमेरिकी डालर हो गया है। मोदी सरकार ने अपना प्रतिद्वंद्वी स्वयं को ही माना है। पिछले २ साल में स्टार्टअप्स की संख्या में भारी वृद्धि देश में देखी गई है। बहुत कम वर्षों में ही भारत, अमेरिका और चीन के बाद ११५ यूनिकॉर्न के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन गया है। आज विश्व में सर्वाधिक डिजिटल भुगतान की बात करें तो भारत का एकतरफा डंका इस क्षेत्र में बज रहा है। सरकारी वेबसाइट के अनुसार २०२२ के कुल डिजिटल लेनदेन का ४६ फीसदी हिस्सा रियल टाइम पेमेंट से हो रहा है। यह भी वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक है। रियल टाइम पेमेंट में यूपीआई की मदद से भारत में क्रांतिकारी बदलाव हुए हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि इनोवेटिव समाधानों को बड़े स्तर पर अपनाने से यह बदलाव आया है और देश कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है।

 

कोविड के कारण जब लॉकडाउन लगा और स्मार्टफोन की पैठ भारत में बहुत बढ़ी तो देश में डिजिटल भुगतान प्रणालियों में भी उछाल आया। आरबीआई ने २०२२ में ई-रुपया का पायलट प्रोजेक्ट भी लॉन्च किया था। २०२२ में ८९.५ मिलियन डिजिटल लेनदेन के साथ भारत पांच देशों की सूची में शीर्ष पर है। भारत के बाद ब्राजील में २९.२ मिलियन, चीन में १७.६ मिलियन, थाईलैंड में १६.५ मिलियन और दक्षिण कोरिया में ८ मिलियन डिजिटल लेनदेने हुआ है। अगर बाकी के चारों देशों के आंकड़ों को मिला भी दिया जाए, तो भी भारत इनसे आगे है।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी कह चुके हैं कि भारत के डिजिटल भुगतान से देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्थ भी बदल रही है। भारत उन देशो मे है. जहा मोबाइल डाटा सबसे सस्ता है और इसका सकारात्मक प्रभाव भी अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। पिछले वर्ष १५.४६८ लाख करोड़ रुपये मूल्य का डिजिटल लेनदेन हो चुका है। पीडब्ल्यूसी इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष २०२६-२७ तक प्रतिदिन एक अरब यूपीआई लेन-देन होगे और कुल डिजिटल भुगतान में इसका हिस्सा बढ़कर ९० फीसदी हो जाएगा। वर्तमान में यह सालाना ५० फीसदी की दर से बढ़ रहा है।

पिछले पांच वर्षों में भारत में ६७ प्रतिशत से अधिक फिनटेक कंपनियों की स्थापना की गई है। भारत के फिनटेक विभाग मे फंडिंग में जबरदस्त वृद्धि देखी गई है. २०२१ में निवेश के विभिन्न चरणों में ८ बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के निवेश प्राप्त हुए। इसने भारत में फिनटेक बाजार विकास क्षमता ओ बेहतर बनाया है। २०२२ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत पहले से ही दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा फिनटेक बाजार है। वाणिज्य मंत्रालय के हवाले से मैं आपको यह बता दूँ कि भारत की फिनटेक अपनाने की दर ७% है. जबकि वैश्विक औसत ६४% है, जो चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि जिस मोबाइल के बिना हमारे काम नही हो पाते भारत उन्हीं मोबाइल फोन का दुनिया का दूसरा शीर्ष निर्माता है। भारत मे अब तक २०० से अधिक मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स सेट अप हो चुकी हैं। भारत में ३३० मिलियन से ज़्यादा मोबाइल हैडसेट्स बनाए जा चुके हैं। साल २०१४ से अगर इसकी तुलना की जाए तो उस वक्त देश ने ६० मिलियन स्मार्टफोन बनाए गए थे और सिर्फ दो मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग प्लांट भारत मे थे। वहीं २०१४ में भारत में बने मोबाइल फोन की वैल्यू भी मात्र ३ बिलियन डॉलर थी जो कि अब ३० बिलियन डॉलर से भी अधिक हो चुकी है।

एयर इंडिया का विनिवेश पूरा होने पर सरकार को विनिवेश में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त हुई हैं जिससे अर्थव्यवस्था की नींव को और भी मजबूती प्राप्त हुई है। कई तथाकथित विशेषज्ञों ने यह अनुमान लगाया था कि जीडीपी विकास दर आगे जाकर नीचे आएगी, लेकिन वे गलत ही साबित हुए हैं क्योंकि आंकड़े स्पष्ट बता रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था सही दिशा में आगे बढ़ रही है और इसमें काफी गति है।

 

२०२२-२३ की पहली छमाही में, कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन का उत्पादन पूर्व महामारी के स्तर १०.८ प्रतिशत अधिक था। सरकार के क्रेडिट प्रोत्साहन पैकेज को कृषि क्षेत्र में वृद्धि का कारण कहा जा सकता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि से इस क्षेत्र को और बढ़ावा मिला है। खेती बाड़ी की विकास दर ४.५ फीसदी दर्ज की गई तो वहीं सेवा क्षेत्र ने बेहतरीन प्रदर्शन किया जिसमें ट्रेड, होटल्स, ट्रांसपोर्ट एंड कम्युनिकेशन में सबसे ज्यादा २५.७% की वृद्धि दर्ज की गई

देश की तरक्की में ऑटोमोबाइल सेक्टर का भी बड़ा हाथ है। दरअसल बीते वर्ष ही भारत जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल मार्केट बन गया था। भारत में साल २०२२ में कुल ४२.५ लाख नई गाड़ियां बिकी हैं जबकि जापान में २०२२ के दौरान कुल ४२ लाख यूनिट्स गाड़ियों की बिक्री हुई। वैश्विक ऑटो बाजार में भारत ने जापान के दबदबे को पीछे छोड़कर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑटो मार्केट होने का रुतबा भी हासिल किया है, यह हम सबके लिए गर्व की बात है।

भावास बाजार में भी बदलाव देखे गए हैं, आवास ऋण की मांग में तेजी आई है, और इसने असंख्य बैकवर्ड और फारन का प्रोत्साहित किया है। आवास के अलावा, निर्माण गतिविधि, सामान्य रूप से वित्त वर्ष २०२३ मे उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है क्योंकि केंद्र सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के बढ़ाए गए पूजीगत बजट (केपेक्स) का तेजी से उपयोग किया जा रहा है। आने वाले समय में देश का उत्पादन पूजीगत व्यय के कारण से कम से कम चार गुना और बढ़ेगा। राज्य भी अपनी पूंजीगत व्यय योजनाओं के साथ अच्छा प्रदर्शन कर रहे है। राज्यों के पास पूंजीगत कार्यों के लिए केंद्र की अनुदान सहायता और ५० वर्षों में चुकाने वाला ब्याज मुक्त ऋण का एक बड़ा बजट है।

भविष्य निर्माण को लेकर बजट में एआई, अक्षय ऊर्जा, ब्लॉक चेन, ग्रीन हाइड्रोजन, कनेक्टिविटी. सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था (कला, संस्कृति, संगीत, नृत्य, भोजन, त्योहार, वास्तुकला, पर्यटन) इत्यादि को ध्यान में रखकर बजटीय प्रावधान किया गया है, जिसका दूरगामी परिणाम आ रहा हैं।

 

जब २०१४ में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई तो वैश्विक जीडीपी में भारत का हिस्सा २.६ फीसदी पर था। आज इसे देखें तो ये बढ़कर ३.५ फीसदी पर आ चुका है। ये आंकड़ा देश का हौसला बढ़ाने का काम कर रहा है। पिछले दिनों निजी खपत में मजबूती भी देखी गई जिसमें उत्पादन गतिविधियों को बढ़ावा दिया है।

सार्वभौमिक टीकाकरण कवरेज ने संपर्क आधारित सेवाओं के लिए लोगों को सक्षम किया है। श्री नरेंद्र मोदी की प्रमुख उपलब्धि कोविड महामारी का प्रबंधन और उसके बाद आर्थिक सुधार पैकेज रही है। महामारी ने प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच वैश्विक व्यवधान पैदा किया है। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका अभूतपूर्व बढ़ी हुई मुद्रास्फीति का सामना कर रहा है, जो पिछले ४० वर्षों के इतिहास में नहीं देखी गई। यूरोप में एक के बाद एक देश मंदी की चपेट में हैं। चाहे वह इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस आदि हों और यहां तक कि चीन भी कोविड- १९ के दौरान लॉकडाउन से मिले सदमे से बाहर नहीं आ पाया है। जबकि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जो सबसे अधिक एफडीआई आकर्षित कर रहा है। अमेरिका और यूरोप में एक के बाद एक बैंक विफल हो रहे हैं और दिवालियेपन की ओर बढ़ रहे हैं। वहां केंद्रीय बैंकों के पास स्थिति से निपटने के लिए कोई रोड मैप नहीं है। उनके पास संकट की निगरानी के लिए संस्थागत क्षमता की कमी है। जबकि हमारी सरकार और केंद्रीय संस्थाओं ने इन समस्याओं को बेहतरीन तरीके से निपटाया है। ददर्शी दृष्टि कोण और संकटों से निपटने के लिए संस्थागत प्रयासों के कारण, सभी तीन प्रमुख मैक्रो इकोनॉमिक पैरामीटर जैसे मुद्रास्फीति, मंदी और राजकोषीय घाटा भारत में नियंत्रण में हैं

मॉर्गन स्टैनले की रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले समय में भारत में आर्थिक विकास, सरकार की सही नीतियों के कारण और तेजी से बढ़ेगा। गूगल ए-कोनोमी रिपोर्ट भी इंटरनेट इकॉनमी को देश की जीडीपी में १२-१३% का योगदान करने का लक्ष्य दर्शाती है। जिसके लिए आधार UPI, डीजी लॉकर. ONDC, यूनिफार्म हेल्थ इंटरफ़ेस, इंडिया स्टेक, NPCI, रुपे कार्ड, ये सभी देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान करेंगे। अगले एक दशक में भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। भारत की अर्थव्यवस्था में लचीलापन है, क्योंकि देश की आर्थिक स्थिति काफी सुदृढ़ है। भारत का मकसद है कि अगले पांच वर्षों में दुलाई (Logistic) की लागत को १४% से घटाकर आठ फीसदी तक लाया जाए। इससे भी विकास में तेजी आने की उम्मीद है। इससे भारत के २०४७ तक विकसित देश बनने के सपने को निश्चित ही बल मिलेगा। एशियाई देशों में आर्थिक महाशक्ति वाला पहला देश चीन इस समय आर्थिक मोर्चेपर कठिनाइयों से जूझ रहा है। ऐसे में भारत की एशियाई देशों में वर्तमान में सबसे अच्छी स्थिति है। भारत में वैश्विक रुचि इसलिए बढ़ रही है कि आने वाले दशकों में भारत आर्थिक गतिविधि का प्रमुख केंद्र होगा। भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करेगा। यह सब इसलिए होगा क्योंकि हमारे पास श्री नरेंद्र मोदी जी के रूप में एक दृढ और दूरदर्शी नेतृत्व है।


गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

राष्ट्रीय प्रवक्ता भाजपा 

Friday 4 August 2023

कुशल नेतृत्व से आगे बढ़ता देश

 कश्मीर में अनुछेद 370 की समापति के साथ वहां शांति कायम करना और अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण इन दो बड़ी चुनौतियों से निपटने में वर्तमान नेतृत्व सक्षम साबित हुआ है। 

इस अगस्त 2023 में हम अपनी आजादी की 76वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। भारत अब आंतरिक और बाह्य दोनों रूप से मजबूत राष्ट्र बन चुका है। यह हमारे वर्तमान नेतृत्व द्वारा दिखाए गए दृढ़ संकल्प और दूरदर्शिता से संभव हुआ है। अपने ऐतिहासिक महत्व के अलावा अभी पिछले वर्षों में मोदी जी के नेतृत्व में एवं श्री अमित शाह जी के कुशल मार्गदर्शन में अगस्त महीने में किए गए महत्वपूर्ण कार्य देश की आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा के लिए मील के पत्थर साबित हो रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि हमारा देश इस महीने का बेसब्री से इंतजार करता है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हमेशा राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए मजबूत राष्ट्रवाद के लिए खड़ी रही है। चाहे वैश्विक कूटनीति हो, बाह्य या आंतरिक सुरक्षा हो, या आर्थिक प्रबंधन हो हमारी प्राथमिकता हमेशा राष्ट्रहित रहा है। मोदी सरकार की प्रमुख सफलताओं मे से एक, घरेलू शांति और स्थिरता की स्थापना और आतंकवाद के संकट को जड़ से खत्म करना है और देश के गृह मंत्री के रुप में अमित शाह जी प्रधानमंत्री के लिए सक्षम सहयोगी साबित हुए हैं। घरेलू समस्याओं पर उनका कड़ा रुख जो भारत की आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित कर रहे थे, जिससे देश में लगातार अनिश्चितताएं और संप्रदायिक तनाव पैदा हो रहे थे, और जो भाजपा के मूल एजेंडे में थे, वे अनुकरणीय रहे हैं।

आजादी के बाद कई दशकों तक संसद कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते हुए अनुच्छेद 370 को खत्म करने का संकल्प लेती रही है, लेकिन वहां की जमीनी हकीकत निराश और हताश करने वाली थी, यहां आतंकवाद को बढ़ावा मिल रहा था। पाकिस्तान चिल्ला रहा था कि वह भारत को हजार घाव देकर इसकी अखंडता को क्षत्-विक्षत कर देगा, प्रदेश की युवा निराश होकर पथराव कर रहे थे। भारत का नेतृत्व इस बात को जानता तो था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अनुच्छेद 370 को हटाना आवश्यक है, और यहीं सही कदम होगा लेकिन उसमें साहस और दृढ़ संकल्प की कमी थी। ऐसी धारणा बनी हुई थी कि अगर अनुच्छेद 370 हटा दिया गया तो इस क्षेत्र में रक्तपात हो जाएगा और अनुच्छेद 370 को हटाना असंभव लग रहा था, यहां तक कि इसे कमजोर करने का प्रयास भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की आलोचना का कारण बन जाता था। धारा 370 को हटाने का कार्य जिस निपुणता के साथ किया गया वह अभूतपूर्व था। 5 अगस्त 2019 के पूर्व एवं बाद में जिस सुचारुता से संपूर्ण स्थिति से निपटा गया; भले वह सीमा के पार से होने वाली झड़पे हों, अंतरराष्ट्रीय परिपेक्ष में कश्मीर के मुद्दे पर भारत के पक्ष की स्वीकार्यता हो, या जमीनी स्तर पर कानून व्यवस्था हो, यह एक राजनेता की दृढ इच्छाशक्ति को दिखाता है।

यह भाजपा और देशवासियों के लिए एक सपने के साकार होने जैसा था। हालाकि मातृभूमि की अखंडता को बनाए रखने से अधिक बहुमूल्य कुछ भी नहीं है लेकिन यह जानकर बेहद संतुष्टि होती है कि हमने इस उद्देश्य को बिना किसी बड़ी क्षति के साथ हासिल किया। आज जम्मू कश्मीर में अमन-चैन है और वह आर्थिक विकास के पथ पर है। प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता और गृह मंत्री की कुशलता ने काम को सुचारू रूप से कर दिया।

राम मंदिर एक और महत्वपूर्ण मुद्दा है। ऐतिहासिक रूप से भारत में सदियों से बहुसंख्यक हिंदुओं द्वारा अयोध्या में भव्य राम मंदिर की मांग और उससे उत्पन्न संघर्ष से सांप्रदायिक तनाव बना रहता था। मंदिर का संबंध हिंदुओं की अस्मिता और स्वाभिमान से जुड़ा है। राम मंदिर के लिए हिंदुओं का संघर्ष और अन्य समुदाय द्वारा इसके विरोध के कारण देश में कई दंगे हुए और लाखों लोगों की जान चली गई। देश में सभी ने यह उम्मीद खो दी थी कि इस मुद्दे का हल निकाला जा सकता है, और यह मानसिकता बन गई थी कि आने वाली सदियों तक हमारे राष्ट्र जीवन में यही दुखदायी स्थिति बनी रहेगी। हम सभी ने अयोध्या में एक भव्य मंदिर का सपना देखा था जिसके पूरा होने की उम्मीद कम होती जा रही थी। न्यायालय के अंदर और बाहर की प्रक्रिया हो या सुप्रीम कोर्ट के मंदिर के पक्ष में आदेश से पहले और बाद में कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी, जिस निपुणता से निभाई गई, यह प्रमाण है कि किसी उद्देश्य के प्रति दूरदर्शी सोच एवं प्रतिबद्धता एक दुर्लभ गुण है लेकिन एक बार यह नेतृत्व में जाए तो कुछ भी असंभव नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी जीऔर गृह मंत्री अमित

शाह जी ने वह राजनीतिक कौशल अपने कार्यों में के प्रति दिखाया है। देश में कहीं कोई विशेष सांप्रदायिक तनाव नहीं हुआ। राम मंदिर के लिए भूमि पूजन 5 अगस्त 2020 को किया गया था और अब हर गुजरते दिन के साथ अयोध्या में भव्य राम मंदिर हकीकत में तब्दील होता जा रहा है।

मैं ऐसे कई उदाहरणों के बारे में बात कर सकता हूं, लेकिन मैं तीन तलाक के मुद्दे तक सीमित रहूंगा। तीन तलाक की कुप्रथा मुस्लिम महिलाओं के अस्तित्व के लिए अभिशाप है। वे दशकों से अल्पसंख्यक तुष्टीकरण और छद्म धर्मनिरपेक्षता की राजनीति की शिकार थी। कांग्रेश के वोट बैंक की राजनीति इस हद तक आगे बढ़ गई थी कि महिलाओं की सामाजिक समानता एवं उनका सशक्तिकरण और हमारे संविधान के अंतर्गत निर्देशित समानता को स्पष्ट रूप से नजरअंदाज कर दिया गया। संसद में भारी बहुमत के साथ सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक को पलट दिया गया, जैसा कि शाह बानो मामले में हुआ था। 1 अगस्त 2019 को पारित विधेयक के माध्यम से तीन तलाक को अवैध बनाए जाने से भारत की मुश्किल महिलाएं सशक्त हुई हैं।

भारत वास्तव में एक मजबूत राष्ट्र के रूप में उभर रहा है। अब भारत एक शांतिपूर्ण और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सशक्त राष्ट्र है, जिसके कई विवादास्पद मुद्दे सुलझ गए हैं; अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भारत के विचारों को विश्व मंच पर सम्मान के साथ माना जाता है, एक मजबूत राष्ट्र के रुप में हमारी छवि अब अच्छी तरह स्थापित हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी जी एवं श्री अमित शाह जी की सक्षम कार्यशीलता भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जा रही है। देश आशान्वित है कि यह गतिशील जोड़ी एक विकासशील राष्ट्र के रूप में हमारे सामने आने वाली दुर्गम चुनौतियों को सफलतापूर्वक काबू कर के हमें सदा सुखद आश्चर्य देती रहेगी।

गोपाल कृष्ण अग्रवाल

राष्ट्रीय प्रवक्ता भाजपा