Friday 5 June 2015

गौ हत्या बन्दी - ऐतिहासिक आंकलन

गाय का यूं तो पूरी दुनिया में ही काफी महत्व हैलेकिन भारत के संदर्भ में बात की जाए तो प्राचीन काल से यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। चाहे वह दूध का मामला हो या फिर खेती के काम में आने वाले बैलों का। वैदिक काल में गायों की संख्‍या व्यक्ति की समृद्धि का मानक हुआ करती थी। दुधारू पशु होने के कारण यह बहुत उपयोगी घरेलू पशु है। गाय न सिर्फ अपने जीवन में लोगों के लिए उपयोगी होती है वरन मरने के बाद भी उसके शरीर का हर अंग काम आता है। गाय का चमड़ासींगखुर से दैनिक जीवनोपयोगी सामान तैयार होता है। गाय की हड्‍डियों से तैयार खाद खेती के काम आती है। परन्तु इसका कतई मतलब यह नहीं है कि इन चीजो की प्रप्ति के लिए समय से पहले ही इसकी हत्या कर दी जाए और तर्क यह दिया जाए की इससे देश की अर्थव्यवस्था को फायदा हो रहा है। भारत और दुनिया के कई ऐसी जगह है जहां गायों की निर्मम हत्या कि जा रही है। हालाकि इसे रोकने के लिए हिन्दुओं के द्वारा कई वर्षों से प्रयास किया जाता रहा है। इसी संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण बाते।।
इस स्थिति के सही आकलन के लिए गोहत्या बन्दी पर चल रहे आन्दोलनों के इतिहास को विस्तार से समझना आवश्यक है।
ग़ौरतलब है कि देश में बड़े पैमाने पर गौकशी होती है। यह सब गौ मांस और उसके अवशेषों के लिए किया जाता हैजिससे भारी मुनाफ़ा होता है। मांस के लिए गायों को तस्करी के ज़रिए पड़ोसी देशों में भेजा जाता है। इस सबकी वजह से सवा अरब से ज़्यादा की आबादी वाले इस देश में दुधारू पशुओं की तादाद महज़ 16 करोड़ ही है। पिछने कई साल के आकड़ो में केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ़ एनिमल हसबेंडरी के मुताबिक़, 1951 में40 करोड़ की आबादी पर 15 करोड़ 53 लाख पशु थे। इसी तरह 1962 में 93 करोड़ की आबादी पर 20 करोड़ 45 लाख, 1977 में 19 करोड़ 47 लाख, 2003 में 18 करोड़ 51लाख 80 हज़ार पशु बचे और 2009 में यह तादाद घटकर महज़ 16 करोड़ रह गई। बरस दर बरस इस संख्‍या में गिरावट दर्ज की जा रही है। राजधानी दिल्ली में 19.13 फ़ीसदी दुधारू पशु कम हुए हैंजबकि गायों की दर 38.63 फ़ीसदी घटी है। फौरी तौर पर उपरोक्‍त आंकड़ों पर नज़रे फिराने भर से भी स्थिति स्‍पष्‍ट हो जाती है।
10 सितम्बर, 1952 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्री माधव सदाशिव गोलवलकर श्री गुरू जी’ ने गौहत्या बन्दी कानून पर देश भर से एकत्रित किए गए लगभग करोड से अधिक हस्ताक्षर तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद को सौंपा। 22 फरवरी, 1953 को आर्यसमाज की सार्वदेशिक प्रतिनिधि सभा में गौहत्या बन्दी पर प्रस्ताव पारित किया। 4फरवरी, 1954 को स्वामी प्रभूदत्त ब्रह्मचारी जी की प्रधानता में एक अखिल भारतीय गौहत्या विरोधी समिति बनी और देश भर में जनान्दोलन हुए। जनान्दोलन के भारी दबाव में 5सितम्बर, 1955 को उत्तरप्रदेश सरकार तथा अक्टूबर, 1955 को बिहार सरकार द्वारा गौहत्या निवारण कानून पारित कर दिया गया. देश की सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष गौहत्या बन्दी का विषय आया तो सर्वोच्च न्यायालय की पूरी पीठ ने 23 अप्रैल, 1958 को अपना निर्णय गौहत्या बन्दी के पक्ष में दिया। गायबछडे की हत्या को सम्पूर्णतया बन्द करने की कार्यवाही को वैध माना गया और मुसलमानों की गौहत्या करने की धार्मिक अधिकार वाली बात को अमान्य कर दिया गया. उपयोगी पशुओं की हत्या पर रोक स्वीकार कर ली गई परंतु अनुपयोगी पशुओं की हत्या पर छूट रही।

गौहत्या बन्दी को लेकर वर्ष 1962 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेतृत्व में देश भर में पुन: आन्दोलन शुरू किया गया परंतु चीन द्वारा भारत से युद्ध छेड देने पर इस आन्दोलन को वापस लेना पडा परंतु नवम्बर, 1966 देश की संसद के सामने लाखों लोगों द्वारा प्रदर्शन किया गया परंतु सरकार ने गौहत्या बन्दी को लेकर आन्दोलन कर रहे प्रदर्शनकारियों पर सरकार ने गोली चलवा दिया. गौहत्या बन्दी को लेकर पुरी के शंकराचार्य महाराज जी और आचार्य विनोबा भावे के अनशन को सरकारी आश्वासन देकर खत्म करा दिया गया. 1जनवरी, 1994 से आन्ध्रप्रदेश के यांत्रिक कत्लखाने अलकबीर के विरुद्ध व्यापक जनान्दोलन चला. परिणामत: 27 सितम्बर, 1994 को अलकबीर यांत्रिक कत्लखाने के मालिकों को उसे बन्द करने का फैसला करना पडा. 28 सितम्बर, 2009 से विश्व मंगल गौ – ग्राम यात्रा शुरू हुई जो कि 108 दिन में लगभग 28 हजार कि.मी. की दूरी तय कर 17 जनवरी, 2010 को नागपुर में सम्पन्न हुई.

31 जनवरी, 2010 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा पाटिल को देश भर के लगभग 10करोड से अधिक हस्ताक्षरित ज्ञापन सौंपा गया जिसमें से लगभग 11 लाख मुस्लिम तथा लगभग 76 हजार ईसाई प्रतिनिधियों के भी हस्ताक्षर थे। गाजियाबाद के ग्लोबल फूड्स लिमेटेडडेराबस्सी जैसे अनेक कत्लखानों के विरुद्ध अभी भी गौहत्या बन्दी को लेकर देश भर में आन्दोलन चल रहा है।

तो वहीं भाजपा की सरकार आने से देशवासीयों में एक आशा की किरण जगी है। इसकी वजह यह है कि जन्माष्टमी के अवसर पर मोदी जी ने लोगों से आग्रह किया था कि वे गौहत्या को बढ़ावा दे रही गुलाबी क्रांति’ (मांस व्यापार प्रसार) को अस्वीकार कर दें।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने गुजरात जैसे कुछ राज्यों द्वारा अपने यहां लागू किए गए गौहत्या प्रतिबंध कानून पर आधारित मॉडल बिल को अन्य राज्यों के विचार के लिए जारी करने के संबंध में विधि मंत्रालय से राय मांगी है। इस मॉडल बिल को प्रसारित करने के पीछे प्रधानमंत्री कार्यालय का मकसद अन्य राज्यों में भी इसी प्रकार के कानून को लागू करने पर विचार करने के लिए राज्यों को कहना है।
सरकार की विधि शाखा को भेजे गए पत्र में पीएमओ ने संविधान के एक ऐसे ही प्रावधान का हवाला दिया है जो गौ वध और अन्य दुधारू पशुओं के वध को प्रतिबंधित करता है। संविधान का अनुच्छेद 48 कहता हैराज्य को आधुनिक और वैज्ञानिक तरीकों से कृषि एवं पशुपालन के प्रयासों को आगे बढ़ाना चाहिए और विशेष रूप से नस्लों में सुधार और उनके संरक्षणगायोंबछड़ों तथा अन्य दुधारू पशुओं और मवेशियों के वध पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। प्रधानमंत्री द्वारा भेजे गए पत्र में यह उल्लेख भी किया गया है कि वर्ष 2005 में उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार द्वारा गौ वध पर प्रतिबंध लगाने के लिए लागू किए गए कानून की वैधता को बरकरार रखा था।
उत्तर प्रदेशझारखंड और गुजरात जैसे कई राज्य हैं जिन्होंने गौवध को प्रतिबंधित किया हुआ है। महाराष्ट्र ने हाल ही में इस प्रकार का प्रतिबंध लगाया है। जिसमें यह तय किया गया है कि
·         गायों के खरीद बिकरी पर रोक लगा दि जाएगी।
·         गायों को मार कर उसके मांस के आयात निर्यात पर रोक होगी।
·         और इस कानून को न मानने, गायों की हत्या, और खरीद बिकरी करते पाए जाने वालों को 5 साल की सजा और 10000 रुपए जुर्माना देना होगा, साथ ही यह कानून के अन्तर्गत दोषी को जमानत भी नहीं मिलेगी।
देश को पूर्ण विकसित बनाने का सपना पूरा करना है तो हमें सबसे पहले गौवंश का विकास एंव सेवा का संकल्प लेना होगा। गौ माता की रक्षा के लिए पूरे समाज को आगे आना चाहिए ताकि गौ हत्या न हो सके।हमें गाय से केवल दूध लेना ही नहीं बल्कि उसकी सेवा करना भी सीखना चाहिए। समय रहते अगर चेता नहीं गया तो खराब परिणाम ही मिलेंगे।इसमें फिर कोई आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए। किसी भी बेजुबान की बेवजह या फिर अपने निजी स्‍वार्थ के लिए उसकी हत्‍या कर देना कायरता का दूसरा रूप है। और अन्त में गौहत्या बन्दी का मूल्यांकन केवल आर्थिक आधार पर नहीं हो सकता यह करोड़ो हिन्दुओं की आस्था का सवाल है।
लेखक

गोपाल अग्रवाल

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