Friday 5 April 2019

कांग्रेस और उसका राफेल भ्रम!

राफेल लड़ाकू विमान सौदे के पूरे मामले को लेकर कांग्रेस पार्टी का रैवया राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति उसकी उपेक्षा और राष्ट्रीय हितों पर निजी हितों की प्राथमिकता को दर्शाता है । राफेल सौदे का राजनैतिक विरोध करने में कांग्रेस पार्टी ने इस बात को नजरअंदाज कर दिया कि भारतीय वायु सेना को अपनी ताकत बढ़ाने के लिए इन आधुनिक विमानों की सख्त आवश्यकता है क्योंकि मौजूदा बहुत से विमानों को वायु सेना ने सेवा से बाहर करने का निर्णाय ले लिया है। हाल में भारतीय वायु सेना और पाकिस्तान वायु सेना के बीच नियंत्रण रेखा पर हुई झड़पों में इस कमी को स्पष्ट देखा गया। गौरतलब है कि 126 लड़ाकू जेट की खरीद की सैद्धांतिक मंजूरी साल 2001 में ही दे दी गई थी।

राफेल सौदे पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का हमला झूठ पर आधारित है और पिछले कुछ महीनों में उन्होंने बहुत सारे ऐसे झूठ बोले हैं। उन्होंने पहले आरोप लगाया कि राफेल सौदे में कोई इंडो-फ्रेंच सीक्रेसी क्लॉज नहीं था, लेकिन फ्रांसीसी राष्ट्रपति द्वारा इसका खंडन किया गया था। फिर उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी ने डसॉल्ट पर अनिल अंबानी के साथ अनुबंध करने का दबाव डाला, जिसे डसॉल्ट एविएशन ने नकार दिया। संसद में राफेल पर बहस के दौरान उन्होंने एक नकली ऑडियो टेप भी पेश किया और जब उनसे इसकी सत्यता की पुष्टि करने के लिए कहा गया, तो उन्होंने इसे वापस ले लिया। इस सूची के नवीनतम आरोप, राहुल गांधी ने स्वर्गीय श्री मनोहर पर्रिकर के साथ अपनी बातचीत के हवाले से लगाया, जबकि तथ्य यह है कि उस बैठक के दौरान ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई थी।

मूल्य निर्धारण पर बार-बार सवाल उठाने का प्रयास किया गया हैं। मूल्य निर्धारण के बारे में आंकड़े लगभग हर रक्षा रिपोर्टर द्वारा लंबे समय से बताए जा रहे हैं। राफेल के साथ (MMRCA) की बातचीत में 550 करोड़ रुपये की बुनियादी कीमत के साथ मुद्रास्फीति और विनिमय दर में उतार-चढ़ाव की बात की गई थी। एमएमआरसीए के तहत एक बुनियादी विमान का मौजूदा समायोजित मूल्य रु 737 करोड़ होता जबकि मोदी सरकार के सौदे के तहत यह कीमत रु 650 करोड़ है, जो कि 9 प्रतिशत सस्ता है। रक्षा मंत्रालय ने बार-बार इस बात को कहा कि विमानों की कुल लागत और संख्या को पहले से ही सार्वजनिक किया जा चुका है, लेकिन उपकरणों और उनके मूल्यों का विवरण गोपनीय रखा गया है जो साल 2008 के भारत-फ्रांस सुरक्षा समझौते के अंतर्गत आता है। इन विमानों के साथ आने वाले हथियारों और गोला बारूद का खुलासा करना, देश की सुरक्षा के हित में नहीं है। सरकार ने मौदूजा सौदे में इन विमानों के बेहतर रखरखाव और सर्विसबिलिटी जैसे मुद्दो को भी सफलतापूर्वक सुलझा लिया हैं।

कांग्रेस राफेल सौदे के ऑफ़सेट धारा पर भी जनता को गुमराह कर रही है, क्योंकि इस धारा के तहत खरीद, प्रति भुगतान पर आधारित है और इसके कई उत्पादो को लिया जा सकता है। यह केवल राफेल स्पेयर पार्ट्स के लिए नहीं है। अनिल अंबानी समूह की कंपनियों को दिवालियेपन के मुद्दे पर अब एक आसान शिकार बनाया जा रहा, जबकि डसॉल्ट के ऑफसेट भागीदारों की संख्या 120 हैं। मैं यह याद दिलाना चाहता हूं कि वह कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार थी जिसने अनिल अंबानी समूह को अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट (यूएमपीपी) के तहत केवल कैप्टिव प्रयोग के लिए आंवटित खदानों से कोयला बाहर बेचने की अनुमति दे दी थी - यह अपवाद केवल उसके लिए किया गया था। यह वह समय था जब कोयले की कीमतें आसमान छू रही थीं। भ्रष्ट पूंजीवाद कांग्रेस के खून में है।

राफेल सौदे से संबंधित सभी पहलूओं को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक सीलबंद कवर में दिया गया। कोर्ट को यह भी बताया गया कि राफेल सौदे से संबंधित सभी फाइल नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) को उपलब्ध करवाई गई है और कैग रिपोर्ट को संसदीय समिति के समक्ष रखा जाएगा। मूल्य निर्धारण और अन्य नियमों एवं शर्तों को देखने के बाद, सर्वोच्च न्यायलय ने कहा था कि खरीद की उचित प्रक्रिया का पालन किया गया और इस संबंध में जांच की मांग को भी खारिज कर दिया था। इस मामले में दायर की गई समीक्षा याचिकाओं पर भी ऐसा ही फैसला आने की उम्मीद है। नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक ने भी अपनी रिपोर्ट में सरकार को क्लीन चिट दे दी है।

हाल ही में एक समाचारपत्र में छपी खबर में उन तथ्यों का जिक्र किया गया जो आधिकारिक राफेल फ़ाइल का हिस्सा भी नहीं हैं। मीडिया में छपी खबरों के बाद सरकार द्वारा एक स्पष्टीकरण भी जारी किया गया। सवाल पूछा जा रहा है कि केवल 36 जेट ही क्यों पर सरकार ने अतिरिक्त राफेल के विकल्प को कब बंद किया? आरोप यह भी लगाया जा रहा है कि सरकार ने यूरोफाइटर कंपनी के नए प्रस्ताव पर गौर क्यों नहीं किया है। इस बाबत सरकार ने कहा है कि उस समय नए प्रस्ताव पर गौर करना 2016 की रक्षा खरीद नीति के तहत अस्वीकार्य था और इससे केन्द्रीय सतर्कता आयोग के दिशानिर्देशों का उल्लंघन होता। इससे नए विमानों की खरीद में भी और देरी होती।

राफेल सौदे के बारे में बहुत शोर मचाया जा रहा है कि इस सौदा की स्वीकृति 4-3 के फैसले से हुई है। भारतीय दल के फैसले का स्पष्टीकरण संसद में रक्षा मंत्री ने दिया, जिसमें उसने कहा था कि सिविल सेवाओं की परंपराओं के तहत सभी विचारों को प्रस्तुत किया जाता है और विमर्श के बाद ही एक निर्णय लिया जाता है। साथ ही सभी निर्णय रक्षा खरीद प्रक्रिया के अनुसार अंतर-मंत्रालयी परामर्श की प्रक्रिया के बाद लिए गए।
राफेल पर कांग्रेस के अभियान की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि दो सरकारो के मध्य बातो को एक अंतर सरकारी समझौते (IGA) की तुलना एसी निविदा प्रक्रिया से की जा रही है जो कि अमल में ही नहीं लाई गई। एक निविदा प्रक्रिया में कई सम्मिलित किया जा सकता है, जिनमें अंतिम स्वरुप बातचीत के पश्चात उभरता है और इन शर्तों पर सहमति नहीं बनने से वार्ता टूट सकती है। आईजीए ने बिचौलियों और कमीशन एजेंटों को भी समाप्त कर दिया, जो पूर्व में निविदा प्रक्रिया और के माध्यम से सभी रक्षा खरीद सौदो का हिस्सा बन गए थे।

इस सौदे की जांच के लिए कांग्रेस ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की मांग की है जो उचित नहीं है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस मुद्दे पर सरकार को क्लीन चिट दे दी है और समीक्षा याचिका कोर्ट के समक्ष लंबित है, कैग की रिपोर्ट पहले से ही संसदीय स्थायी समिति के पास है और वर्तमान में कोई प्रतिकूल रिपोर्ट भी नहीं है। कांग्रेस और उसके सहयोगी ऐसे किसी भी सबूत को पेश करने में कामयाब नहीं हुए है जो इस पूरे सौदे में सरकार की भूमिका को संदेह के घेरे में लाते हो। राफेल सौदे से संबंधित सभी सवालों का जवाब संसद के पटल से दिया जा चुका है लेकिन कांग्रेस और उसके सहयोगी अभी भी इस मामले में झूठ बोलकर, जनता को गुमराह कर रहे है।

कांग्रेस के संदेहास्पद आचरण से स्पष्ट था कि 2012 में राफेल विमानो के चयन हो जाने के बाद भी नए लड़ाकू विमानो की आपूर्ति का कोई अनुबंध नहीं हो सका। हर एक दिन की देरी हमारी रक्षा तैयारियों और राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता कर रही थी।

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