Monday 6 July 2020

संसाधन जुटाने के लिए जरूरी है दाम बढ़ाना


अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर ही राष्ट्रहित के निर्णय मजबूत आर्थिक विकास के दूरगामी परिणाम ला सकते है। पेट्रोल एवं डीजल की कीमतों पर चर्चा आवश्यक है। सरकार यह जानती है कि इनकी बढ़ती कीमतों से जनता को असुविधा होती है। आर्थिक निर्णय इन सभी बातों को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं। सन 2002 से यह निर्णय लिया गया था कि तेल की कीमत को कंपनियां ही विश्व बाजार भाव के अनुसार पंद्रह दिन के अंतराल से तेल के नए भाव लागू करती हैं। अप्रैल माह में तेल के वैश्विक भाव लगभग 16 डॉलर  प्रति बैरल थे और अब यह 250 प्रतिशत बढ़कर 40 डॉलर प्रति बैरल हो गए हैं। लेकि उस अनुयात में अप्रेल से अभी तक तेल के भाव नहीं बढ़े है।

एक ओर हमारी सरकार ने कोरोना की वापस त्रासदी से निपटने और अर्थव्यवस्था को पटरी  पर लाने एवं गरीबों की सहायतार्थ बीस लाख करोड़ रुपये का आर्थिक सहायता पैकेज आत्मनिर्भर भारत अभियान तहत घोषित किया है, जिसके लिए भी संसाधन का जुटाना अति आवश्यक हैं। इसके अनन्तर सरकार किसानो को सीधे 1,500,00 करोड़ की सहायता, प्रवासी मजदूरों को 50,000 करोड़, पटरी रेहड़ी वालो को 3,10,000 करोड़ और लधु उद्योग आदि को 4,50,000 करोड़ की सहायता दे रही है। लगभग 41 करोड़ बैक अकाउंट में 53,000 को धन राशी दे दी गई है। एक देश एक राशन जैसी योजना में गरीबों को नवम्बर तक मुफ्त राशन दिया जाएगा। इस सभी योजनाओं से गरीब एवं किसान सभी को पारदर्शीता एवं सीधे तौर पर राशी उपलब्ध की जा रही है।  पिछले कुछ वर्षो में केंद्र सरकार ने प्रत्यक्ष करों में भारी छूट दी है और जीएसटी अप्रत्यक्ष करों में भी काफी कमी की है। खाद्यान्न पदार्थों में तो शून्य या पांच प्रतिशत कर ही लगता है। प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों की दरों में कमी से भी समाज के हर वर्गल को आर्थिक राहत ही मिलती है और इस कम दरो के कारण और कोरोना से अर्थव्यवस्था में कमी आने के कारण केन्द्र का कर संग्रहण काफी कम हो गया है। सरकार की समझदारी इसी में है कि जहां से संसाधन जुटाए जा सकते हैं, वहां से जुटाए और सरकार इसलिए अप्रेल से पहले पट्रोल पदार्थो से संसाधन जुटा रही थी। इसके अतिरिक्त भी  सरकार सीधे कर्ज लेकर एवं बजट के घाटे को बढाकर भी गरीबों के हितो को पूर्ण करने के लिए संसाधन जुटा रही है।

हमारे लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्र और प्रदेश सरकार, दोनों कर लागू करते हैं। एक्साइज के द्वारा और वैट के रूप में प्रदेश सरकार कर वसूलती है। केंद्र सरकार अपने सभी संग्रहित करों में से भी 42 प्रतिशत प्रदेश सरकारों को हर वर्ष चौदहवी फाईनेन्श कमीशन के निर्देश में संसाधन मुहैया कराती है। इसवर्ष प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में केंद्र सरकार के पास कर संग्रहण कर अप्रैल और मई माह में काफी कम हो गया है, फिर भी केंद्र ने पूर्व में घोषित अनुमानित बजट प्रावधान के अनुसार ही प्रदेशों को पूरी धनराशि प्रदान की है। लगभग 4.25 लाख करोड़ रुपये की धन राशी केन्द्र सरकार प्रदेशों को दे चुकी है। और इसके अतिरिक्त सीधे केन्द्र की योजनाओं के माध्यम से भी प्रदेशो को सहायता राशी दी जा रहीं हैं ।इसलिये प्रदेश सरकारों की ज्यादा जिम्मेदारी है कि अपने प्रदेश की स्थिति और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर पेट्रोल पदार्थो की कीमत कम करें। विपक्ष को सरकार कांग्रेस सरकार को तो अपने शासित राज्यों में यह पहल आन्दोलन करने से पहले करनी चाहिए।

पूर्व में UPA दो के कार्यकाल में श्री मनमोहन सिंह सरकार के समय में तेल कंपनियों को ऑयल बांड्स जारी किये गए थे जिनका प्रावधान तो कंपनियों से करवाया गया और ही सरकार ने अपने वार्षिक बजटो में किया। अर्थव्यवस्था को पूरी तरह ताक पर रखकर पिछली सरकार ने तेल की क़ीमतों को आप्राकृत कम से रोका अब वर्तमान मोदी जा की सरकार उस अघोषित तेल की कंपनियों को चुका रही है। यह ऋण 2025 तक चुकाना होगा। पिछले वर्ष लगभग सत्तर हजार करोड़ रुपये चुकाए गए थे।

हमारी सरकार अर्थव्यवस्था  एवं गरीबों के कल्याण जैसे सभी विषयों को ध्यान में रखकर निर्णय लेती है। सरकार दूरगामी वैकल्पिक उर्जा के स्त्रोतो की तरफ भी तेजी से  काम कर रही है ताकि हमारे देश की पेट्रोल पदार्थों के आयात पर निर्भरता कम की जा सके।आने वाले समय में हम तेल की क़ीमतों में कम उतार चढ़ाव देखेंगे । सरकार समाज की आवश्यकता और समाज के सभी वर्गो के हितो को साधती है। जैसे जैसे वैश्विक बाजार में तेल की कीमत कम होगी, भारत में भी कीमत कम होगी। और अगर कीमत और बढ़ती है और सरकार के पास अन्य कर संसाधन बढञता है तो पैट्रोल पर लागू करों को भी कम कर सकते है।

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