Wednesday 17 March 2021

कृषि सुधार कानूनों पर बढ़ती राजनीति

 2020-21 की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की है। लेकिन जीडीपी के कृषि क्षेत्र में पुनः वृद्धि 3.4 प्रतिशत की हुई है, जो अच्छे संकेत दे रहे है। कृषि और ग्रामीण क्षेत्र ने अर्थव्यवस्था के सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कोविड-19 समस्या के परिणामों और कठिनाइयों से निपटने के लिए, मोदी सरकार ने मई 2020 में 'आत्मनिर्भर भारत' पैकेज की घोषणा की थी। इन घोषणाओं के अनूरुप, केंद्र सरकार 5 जून 2020 को 3 अध्यादेशों को लाई थी। और अब ये संसद से पारित कानून बन गये है। कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020, कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य अश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 है।

ये कानून पूर्ववर्ती सरकार के किसानों के कल्याण के नाम पर गलत हस्तक्षेप को सीधा विराम लगाने के लिए है।

कृषि क्षेत्र में आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने के लिए, खुदरा वितरण, वेयरहाउसिंग, कोल्ड स्टोरेज और परिवहन आवाजाही आदि में बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है। यह बड़ा निवेश निजी क्षेत्र से ही आ सकता है। लेकिन जब तक हम भंडारण की सीमा नहीं हटाते है निजी निवेश नहीं होगा। भारतीय कृषि, कम उपज से प्रचुरता की ओर बढ़ रही है इसलिए वर्ष 1955 से लागू आवश्यक वस्तुओं के कानून पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

कृषि क्षेत्र के यह सुधार, व्यापक अर्थव्यवस्था के विकास के लिए वर्ष 1991 के समय के मूलभूत बदलावों के समान ही हैं। सभी प्रमुख अर्थशास्त्रियों और कृषि विशेषज्ञों द्वारा इसका स्वागत भी किया गया है। इन सभी सुधारों की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी। पिछले 20 वर्षो का इतिहास देखेगें तो पता चलेगा कि 'राज्य मंत्रियों की समितिद्वारा कृषि बाजार सुधारों को लागू करने के लिए कृषि विपणन प्रणाली वाली अपनी रिपोर्ट में इन सभी आवश्यकताओं पर जोर दिया गया था। कृषि पर संसदीय स्थाई समिति की बासठंवी रिपोर्ट में भी यही बात दोहराई गई थी। चूँकि ये रिपोर्ट राजनीतिक पक्षपात में नहीं फंसी थी, इसलिए इसे लगभग सभी राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त हुआ था।

अब कांग्रेस एवं कुछ अन्य राजनीतिक दल और उनसे जुड़े किसान और बिचौलियों से संबंधित संगठन अपने नुकसान को ध्यान में रख कर कोलाहल मचा रहे हैं और लगातार गलत सूचना एवं अफवाहें फैलाई जा रही है। यह बहुत ही दुखद है कि इस प्रकार किसानों के हित को अनदेखा करके कहां जा रहा हैं कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को खत्म कर देगी जबकि सरकार द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया है कि एमएसपी सिस्टम को हटाने का कोई सवाल ही नहीं है। इस वर्ष की एमएसपी की बढ़ी हुई खरीद की दरों का भी ऐलान कर दिया गया है। और खरीदारी भी शुरु हो गई हैं।

मंडी अधिनियम भारतीय संविधान के अंतर्गत राज्यों के दायरे में आते हैं और इसलिए केंद्र का इसमें एकतरफा संशोधन करने का कोई अधिकार ही नहीं है। केवल अंतर-राज्यीय कमोडिटी ट्रेड ही केन्द्र के अधीन आते हैं। इसलिए मौजूदा मंडी संरचना को समाप्त नहीं किया जा सकता है। अब कृषि उपज के लिए व्यापार और वाणिज्य की वैकल्पिक बाजार सुविधा प्रदान करने के लिए नए अधिनियम के साथ कई नई संभावना बन रही हैं। निजी बाजारों से प्रतिस्पर्धा के कारण मंडियां अब किसानों की उपज खरीद का एकाधिकार नहीं कर सकेंगी ।

शत प्रतिशत एमएसपी की खरीद के सवाल पर शांता कुमार की रिपोर्ट उठाकर देखेंगे तो पहले कुल उत्पादन का सिर्फ छह प्रतिशत फसल ही सरकार खरीदती थी। अब मोदी सरकार में सरकारी खरीद बढ़कर 15 प्रतिशत हो गई है। यानी कि मोदी सरकार किसानों के कल्याण के लिए बेहतर कर रही है। केंद्र सरकार सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है, जबकि राज्य सरकारें खरीद करती है।

जब नए कानून का एमएसपी से कोई संबंध नहीं है, तो फिर लिखकर देने की बात ही नहीं है। एमएसपी अलग विषय है, उस पर दूसरे स्तर से चर्चा हो सकती है। आज ke vakt में एपीएमसी की मोनोपाली (एकाधिकार) किसानों की सबसे बड़ी समस्या है। आढ़तिये लोकल मंडी में किसानों को फसल बेचने के लिए मजबूर करते हैं। क्योंकि उन्हें साढ़े आठ प्रतिशत कमीशन मिलता है। जबकि नए कानून से जहां लाभ मिलेगा, किसान वहीं फसल बेच सकेंगे।

जहां तक किसानों के अपनी जमीन को कॉरपोरेट के पास खोने की बात है। मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता कानून, 2020. कृषि उत्पाद के खरीद का समझौता है ना कि किसान की भूमि के बारे में समझौता है। इस कानून में किसानों के लिए उनकी भूमि पर कई सुरक्षा के नए उपाय भी है। उपज के नुकसान के मामले में किसानों को ही बीमा क्षतिपूर्ति का लाभ मिलेगा और उनकी भूमि पर उपयोग किए जाने वाले उपकरणों को उनके लिए ही संरक्षित किया गया है। कानून के अन्दर विवाद समाधान की प्रक्रिया को भी जिला स्तर पर जिला बोर्ड के माध्यम से निर्धारित किया गया है। किसानों को न्याय पाने के लिए एक अदालत से दूसरे अदालत में अब चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे।

2014 के बाद से जिम्मेदार विपक्ष का अभाव भारतीय राजनीति का एक हिस्सा बनता जा रहा है। यह सोच पूर्णतः गलत है, जब की कांग्रेस ने खुद सत्ता में रहते हुए इन नीतियों की पैरवी की थी। कांग्रेस पार्टी ने अपने 2014 और 2019 के चुनाव घोषणापत्र में तो एपीएमसी प्रणाली को खत्म करने का ही वादा किया था। इन उपायों का जनता से वादा भी किया था।

सभी तीन कानून कृषि बाजारों के सुधार के लिए ही हैं। नए और राष्ट्रीय बाजारों के विकल्प देना, बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए निजी निवेश को आकर्षित करना, बेहतर मूल्य के निर्धारण में मदद करना, सूचना प्रसार तंत्र स्थापित करना और किसानों को उनकी उपज के लिए उचित मूल्य आश्वासन प्रदान करना इनका लक्ष्य है।

प्रधानमंत्री श्री मोदी जी किसानों के हित के लिए दिन-रात प्रयासरत हैं, और सही सूचना जन-जन तक पहुंचाने के लिए भारतीय जनता पार्टी सतत कार्य कर रही है। किसी को भी यह दुविधा नहीं रहनी चाहिए कि हमारी सरकार के लिए किसानों का हित ही सर्वोपरि है।

 

गोपाल कृष्ण अग्रवाल

राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा आर्थिक मामलों

gopalagarwal@hotmail.com

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