Friday 30 January 2015

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल – मेरा अनुभव

रचनात्मक विधाओं में साहित्य ऐसा क्षेत्र है जिसे संगीत, नाटक, पेन्टिंग और मूर्तिकला आदि आदि से ज्यादा प्रतिष्टा हासिल है। शायद इसकी वजह है मीडिया से जुड़े लोग साहित्य सृजको के मुखातिब रहते आए है। दुनिया के सारें लोकप्रिय साहित्य मेलों में से जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की एक अपनी अलग ही पहचान बन गई है।

आयोजको के अनुसार हेरीटेज रिसोर्ट डिग्गी पैलेस के छह आयोजन स्थलों पर आयोजित हुए। इस महोत्सव में करीब 240 लेखकों ने 175 से अधिक सत्रों में हिस्सा लिया। 15 से अधिक देश के लेखकों एवं विशेषज्ञों की समारोह में मौजूदगी रही। महोत्सव की संस्थापक निदेशक नमिता गोखले ने बताया कि विभिन्न मुद्दों के ही साथ डेमोक्रेसी डायलाग्सविषयों पर चर्चा द्वारा राजनीतिक एवं सामाजिक बदलाव के बड़े मुद्दों पर भी प्रकाश डाला गया। 

समारोह में क्षेत्रीय भाषाओं के इतिहास पर भी प्रकाश डाला गया। इसमें मुझे दो दिन भाग लेने का मौका मिला। जिन विचारकों को मुझे सुनने और बातचीत करने का मौका मिला इसमें प्रमुख थे। डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम, एन आर नारायण मूर्ती, राजीव मलोहत्रा आदी। अब्दूल कलाम जी को सुनने का युवाओं में काफी उत्साह था।

महोत्सव में महत्वपूर्ण बात लगी की उसका स्वरुप ऐसा रखा गया है कि सम्मेलन में 80 प्रतिशत भागीदीरी 30/35 वर्ष से कम के लोगों आयु की थी। और वे बहुत बड़- चड़ कर भागीदारी ले रहे थे। चर्चा के बाद सभी में प्रस्न उत्तर जरुर रखें गए थे। उन प्रश्नों का स्तर बहुत अच्छा था। जानने और सुनने की जिज्ञासा सभी में बहुत थी। विदेशी साहित्याकारों की काफी संख्या में मौजूदगी थी।

सत्रों में भागीदारी निशुल्क थी। यह महत्वपूर्ण उपलब्धी थी क्योंकि आयोजन की विशालता को देखकर ही समझ आता था कि खर्च काफी किया गया था लेकिन प्रयोजक मिल गए थे। यह साहित्यिक गतिविधियों के लिए शुभ संदेश है।

संस्कृत भाषा पर भी एक महत्वपूर्ण सत्र था। इस दौरान पौराणिक ग्रंथो रामायण और महाभारत पर भी चर्चा की गई। दर्शन पर एक सत्र bettany hughes की किताब, Socrates, Athens and Search for good life पर बड़ा अच्छा था Socrates के विचार और उनके जिवन एंव मृत्यु सभी प्रेरणादायी है। Socrates ने अपने आप कुछ भी नहीं लिखा है। उन्हें जहर इसलिए पीना पड़ा क्योंकि उनपर इल्जाम था कि वे युवाओं को सोचने के लिए प्रेरित कर रहें है।

एक सत्र बड़ा अच्छा लगा जिसमें इंगलैंड की lunar societies के बारे में काफी विस्तार से जानकारी दी गई और चर्चा की गई कि कैसे इस समूह ने इंगलैंड में नए नए आविश्कारों के लिए  महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह समूह हर पंद्रह दिन में परिवारों से मिलता और नए नए विचारों के द्वारा आविश्कार कर पाया।


अन्तिम सत्र में जो चर्चा का विषय था culture is the new politics जिसमें online poll भी था। इसमें लगा कि आयोजकों ने जानबूझ कर शाजिया इलमी को भाजपा/संघ विचार की प्रष्टभूमी पर बुलवा कर पूरी विचारधारा को कटघरें में खड़ा करने का प्रयास किया। सुहैलसेठ आक्रामक तरीके से बोल कर शाजिया की कमजोर विचारधारा की पकड़ कों उभारने का काम कर रहें थे।

हमारी तरफ से कोई प्रखर विचारक होना चाहिए था। जो विषय की गहराई को समझ कर ठीक ढ़ग से अपने पक्षको रख सकता। श्री राजीव मलहोत्रा ने जरुर अपना पक्ष मजबूती से रखा।

कुल मिलाकर आयोजन अच्छा एंव सफल था। युवाओं की इसमें उत्साहपूर्ण भागीदारी महत्वपूर्ण थी। और मुझे लगता है कि मोदी जी का Read India Campaign आने वाले समय में युवाओं को पढने और लिखने की तरफ तेजी से प्रेरित करेगा। उनमे पूर्ण जिज्ञासा है। ऐसे कारयक्रमों का आयोंजन भाजपा और संघ की वैचारिक संस्थाओ को भी समय समय पर करने चाहिए।

एक बात का जरुर खतरा नजर आया कि अगर आयोजन की दिशा पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में यह आयोजन साहित्यिक कम और मौज मस्ती का अड्डा बनने का खतरा रहेगा। 

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