Thursday 22 January 2015

दिल्ली की राजनीति

एक साल राष्ट्रपति शासन में गुजारने के बाद दिल्ली में विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है. तीन बड़े दावेदारों में बीजेपी और आम आदमी पार्टी रेस में आगे नजर आ रहे है। तो वहीं 15 साल तक दिल्ली की सत्ता में रही कांग्रेस अब सर्वहारा की तरह अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है. दिल्ली का दंगल कहने को तो त्रिकोणीय है मगर असल लड़ाई नई नवेली आप और सियासत की बारीकियां जानने वाली बीजेपी के बीच ही होगी।

देश की पहली महिला आइपीएस अधिकारी किरण बेदी के भाजपा में शामिल होते ही सियासी गतिविधिया जोर पकड़ने लगी है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की मौजूदगी में उन्होंने पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। सदस्या ग्रहण करने पर बेदी ने कहा कि वह अब मिशन मोड पर हैं। उन्होंने इसके लिए भाजपा को धन्यवाद भी दिया। किरण बेदी के भाजपा में शामिल होने से भाजपा को दिल्ली चुनाव में मजबूती मिलेगी। दिल्ली चुनाव के बाद बनने वाली भाजपा सरकार में बेदी की रचनात्मक भूमिका रहेगी। किरण बेदी का पूरा जीवन भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में बीता है। वह दिल्ली में विभिन्न पदों पर तैनात रही हैं। उनकी छवि का लाभ भाजपा को चुनाव में मिलेगा।

तो वहीं पार्टीयों की बात की जाए तो पिछले चुनाव में दिल्ली में अधिकतर सीटों पर बीजेपी पहले स्थान पर रही लेकिन कांग्रेस विरोधी आप, कांग्रेस का ही सहारा लेकर बीजेपी को बाहर करने में सफल रही।  इस बार बेदी के बीजेपी में शामिल होने से घबराई आप ने सत्ता हासिल करने के लिए नए- नए हथकंडे अपनाने शुरु कर दिए है। कभी रोड शो की तैयारी कर रहे है तो कभी स्वच्छता अभियान चला रहे है। देखना बेहद दिलचस्प होगा की यह कोशिश कितनी काम आती है केजरीवील के लिया। अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी बनाई और अपनी राजनीति कर रहे हैं, जिसके चलते वह पहली ही बार में दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए थे, अपनी राजनीति के चलते महज 49 दिनों में इस्तीफा देने पर वह लोकसभा चुनावों में उम्मीदों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाए... वह आज भी दिल्ली की जनता को अपने बेवजह इस्तीफे की सफाई दे कर कह रहे हैं कि अबकी बार मौका दो, तो पांच साल तक इस्तीफा नहीं दूंगा... अब यह तो जनता तय करेगी कि वे, मौका देने लायक हैं या नहीं...

दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की डूबती नाव को पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी का सहारा भी नहीं मिल रहा है। प्रदेश कांग्रेस ने राहुल से पांच सभाओं की मांग की थी, लेकिन मंजूरी महज दो की मिली। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी भी महज एक रैली करेंगी। यह हाल तब है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अकेले आधा दर्जन रैलियां कर सकते हैं। ऐसे में भाजपा और आम आदमी पार्टी के आक्रामक प्रचार की काट खोजना कांग्रेस के लिए मुश्किल हो गया है। ज्यादा जोगी मठ उजाड़ की तर्ज पर कांग्रेस में नेताओं की बहुतायत चुनाव संचालन में बाधा बन रही है। प्रदेश अध्यक्ष की नाराजगी और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के असहयोग के कारण प्रचार अभियान शुरू होना तो दूर पार्टी चुनाव अभियान समिति तक की घोषणा नहीं कर सकी है। कांग्रेस का अभियान पार्टी के केंद्रीय मुख्यालय तक सिमट गया है। मुद्दों को लेकर संघर्ष कर रही कांग्रेस प्रेस वार्ताओं के जरिये भाजपा की आड़ में आप और आप के सहारे भाजपा पर हमलावर होने की कोशिश कर रही है। दोनों पार्टियों पर अपने वादों से हटने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस ने पहले के आरोपों को ही दोहराया है।

आजकल सबसे बड़ी बहस यह है कि मोदी लहर से दिल्ली में सत्ता हासिल करने वाली भाजपा और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की 49 दिनों की सरकार में कौन बेहतर है। दिल्ली का मूड क्या है और 10 फरवरी को किसे बहुमत मिलेगा। इसी पर जी न्यूज ने तालीम रिसर्च फाउंडेशन के माध्यम से एक ऑनलाईन सर्वे किया है। सर्वे के अनुसार, दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा 37 सीटें जीत सकती हैं जबकि आम आदमी पार्टी 29 सीटों के साथ दूसरी बड़ी पार्टी होगी। चार सीटों के साथ कांग्रेस तीसरे स्थान पर रहेगी।
सर्वे के अनुसार, दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 में भाजपा को 45% वोट मिलेगा जबकि आम आदमी पार्टी को 34.2% वोट हासिल होगा। कांग्रेस को मात्र 13.7% वोट।
जब मतदाताओं से पूछा गया कौन सी पार्टी दिल्ली में अच्छा प्रशासन दे सकती है, तब 45.1% मतदाताओं ने बताया कि भाजपा अच्छा प्रशासन दे सकती है। 34.6% मतदाताओं ने बताया कि आम आदमी पार्टी जबकि 14.7% मतदाताओं ने कांग्रेस को अपनी पसंद बताया।
हालांकि दिल्ली में 84.3% मतदाताओं का मानना है कि महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा है। 70.8% मतदाताओं ने रोड और बिजली को सबसे बड़ा मुद्दा बताया। 69.9% ने भ्रष्टाचार को। 60.9% ने महिला सुरक्षा को।

54.1% मतदाताओं ने बताया कि दिल्ली में भाजपा की सरकार बनने से केंद्र की भाजपा की सरकार से पूरा सहयोग मिलेगा। खैर देखना यह है कि दिल्ली के जनता के दिलों में कौन सी पार्टी राज कर पाती है।

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